पारंपरिक ईंधन का उपयोग करके खाना पकाने से सांस की बीमारियों का खतरा

Edited By Kuldeep, Updated: 19 Feb, 2024 08:13 PM

mandi traditional fuel food disease danger

अगर आप पारंपरिक ईंधन का उपयोग करके खाना पकाते हैं तो सांस की बीमारियों सहित अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से ज्यादा ग्रस्त हो सकते हैं। इन खतरों का खुलासा आई.आई.टी. मंडी के शोधकर्त्ताओं ने किया है।

मंडी (रजनीश): अगर आप पारंपरिक ईंधन का उपयोग करके खाना पकाते हैं तो सांस की बीमारियों सहित अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से ज्यादा ग्रस्त हो सकते हैं। इन खतरों का खुलासा आई.आई.टी. मंडी के शोधकर्त्ताओं ने किया है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी.) मंडी के शोधकर्त्ताओं ने फ्रांस के इंस्टीच्यूट नैशनल डी रेचेर्चे एट डी सेक्यूरिटे (आई.एन.आर.एस.) और भारत के राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (सी.एस.आई.आर.-एन.पी.एल.) के सहयोग से देश के पूर्वोत्तर राज्य असम, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय के ग्रामीण रसोईघरों में पारंपरिक ईंधन के उपयोग से खाना पकाने के तरीकों से होने वाले वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों पर अध्ययन में स्वास्थ्य पर होने वाले खतरों का पता चला है। शोधकर्त्ताओं ने यह जानने का प्रयास किया कि हवा में वर्तमान हानिकारक कणों और रसायनों के संपर्क में आने से पूर्वोत्तर भारत के ग्रामीण लोगों को कितना स्वास्थ्य नुक्सान हो सकता है।

उन्होंने विशेष रूप से सांस की बीमारियों और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों पर ध्यान दिया और यह आकलन किया कि इन बीमारियों के कारण कितने लोगों की अकाल मृत्यु हो सकती है। उन्होंने इसके लिए पी.वाई.एल.एल. मीट्रिक का इस्तेमाल किया जो बताता है कि किसी बीमारी या स्वास्थ्य समस्या के कारण लोग कितने साल कम जीते हैं। शोध टीम में पीएच.डी. शोधकर्त्ता विजय शर्मा और स्कूल ऑफ सिविल एंड एन्वायरनमैंटल इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफैसर डा. सायंतन सरकार और उनके सहयोगी शामिल हैं जिन्होंने जलाऊ लकड़ी और मिश्रित बायोमास का उपयोग करके इंडोर खाना पकाने के दौरान उत्पन्न होने वाले हानिकारक उत्सर्जनों की मात्रा और परिणामों का विश्लेषण किया है।

इन 3 राज्यों के 50 प्रतिशत लोग पारंपरिक ठोस ईंधन का करते हैं इस्तेमाल
असम, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में ग्रामीण आबादी के 50 प्रतिशत से अधिक लोग खाना पकाने के लिए अभी भी पारंपरिक ठोस ईंधन जैसे जलाऊ लकड़ी और मिश्रित बायोमास का उपयोग करते हैं, जिससे रसोई की हवा में भारी मात्रा में प्रदूषक रह जाते हैं। हाल ही में किए गए शोध का उद्देश्य एल.पी.जी. आधारित खाना पकाने की तुलना में बायोमास ईंधन का उपयोग करने से जुड़ी गंभीरता और बीमारी के बोझ का आकलन करना था। ऐसे में शोधकर्त्ताओं ने एल.पी.जी. को अधिक सुलभ बनाने, बेहतर चूल्हों को बढ़ावा देने, ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता फैलाने, स्थानीय समाधानों के लिए धन उपलब्ध कराने और ग्रामीण महिलाओं के लिए स्वास्थ्य शिविरों के आयोजन के उपाय सुझाए हैं।

डा. सायंतन सरकार, सहायक प्रोफैसर आई.आई.टी. मंडी का कहना है कि यह अध्ययन खाना पकाने से होने वाले उत्सर्जनों के श्वसन तंत्र पर पड़ने वाले प्रभाव का मजबूती से अनुमान लगाने के लिए वास्तविक ग्रामीण रसोइघरों में एयरोसोल के मापन को डोजीमेट्री माॅडलिंग के साथ जोड़ता है। यह भारत में घर के अंदर खाना पकाने के उत्सर्जन के संपर्क में आने से होने वाली बीमारी के बोझ का अनुमान लगाने का पहला प्रयास है, जिसे खोए हुए संभावित जीवन वर्षों के रूप में मापा गया है। अध्ययन भारतीय संदर्भ में इस तरह के जोखिम के परिणामस्वरूप ऑक्सीडेटिव तनाव की क्षमता को पहली बार मापता है और स्वच्छ ईंधन एल.पी.जी. का उपयोग करने वालों की तुलना में बायोमास उपयोगकर्त्ताओं को होने वाले अतिरिक्त जोखिम को निर्धारित करता है।

 

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!