Edited By prashant sharma, Updated: 14 Jan, 2021 02:39 PM
कुल्लू में मकर संक्रांति का त्योहार मनाने का अपना ही अंदाज है। सदियों से चली आ रही परंपरा के अुनसार कुल्लू में लोग अपने निकट संबंधियों को जौ (जूब) प्रदान कर सुरक्षित सर्द ऋतु गुजर जाने पर खुशियां मनाते हैं।
कुल्लू (दिलीप) : कुल्लू में मकर संक्रांति का त्योहार मनाने का अपना ही अंदाज है। सदियों से चली आ रही परंपरा के अुनसार कुल्लू में लोग अपने निकट संबंधियों को जौ (जूब) प्रदान कर सुरक्षित सर्द ऋतु गुजर जाने पर खुशियां मनाते हैं। लोग अपने घरों में कई प्रकार के व्यंजन भी बनाते हैं। यह त्योहार 7 दिनों तक मनाया जाता है। कुल्लू सहित इर्द-गिर्द के क्षेत्र में मकर संक्रांति को बड़े हर्षोल्लास एवं बड़ों को जूब देकर वर्षो पुरानी परंपरा को निभाई जा रही है। कुल्लू गांव में जिस प्रकार का माहौल अब देखने को मिल रहा है, पूर्व में किसी ने इसकी कल्पना भी नहीं की होगी। मकर संक्रांति न केवल खुशियां लेकर आती थी बल्कि निकट संबंधियों के कुशल क्षेम की जानकारी भी आसानी से मिल जाती थी।
बताया जाता है कि उस समय समय व्यतीत करने के लिए किसी प्रकार का कोई मनोरंजन साधन घाटी में उपलब्ध नहीं था। लिहाजा मेले एवं पर्व ही अपनों से मिलने व अपनी भावनाओं को प्रकट करने के मुख्य साधन होते थे। मकर संक्रांति कुल्लू घाटी में मिलने मिलाने व कुशलक्षेम पूछने से संपन्न होती है, वहीं अन्य क्षेत्रों में इस पर्व पर अधिकांश जनमानस तीर्थ स्थलों का रूख कर डुबकी लगाते हैं। बहुत से स्थानों पर मकर संक्रांति को ’खिचड़ी का साजा’ नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस दिन घर-घर में माश की खिचड़ी बनाई जाती है। भले ही आज घाटी के घर-घर में टेलीफोन व्यवस्था होने से उनके निकट संबंधी संपर्क में हों और कई प्रकार के परिवहन माध्यम होने से पूर्व के विपरीत कभी भी अपने चहेतों से मिला जा सकता है। लेकिन आज की यह आधुनिकता कई सदियों से चले आ रहे इस त्योहार की मिठास को कम नहीं कर पाई है।