Edited By Rahul Rana, Updated: 26 Jul, 2024 01:09 PM
हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े जिला कांगड़ा में कोरोना काल में लोगों को जीवनदान देने वाले वेंटिलेटरों की आज बिना इस्तेमाल के सांसें फूल रहीं हैं। अस्पतालों में वेंटिलेटर मशीनें तो उपलब्ध हैं, लेकिन उन्हें संचालित करने के लिए आवश्यक प्रशिक्षित स्टाफ की...
हिमाचल: हिमाचल प्रदेश के सबसे बड़े जिला कांगड़ा में कोरोना काल में लोगों को जीवनदान देने वाले वेंटिलेटरों की आज बिना इस्तेमाल के सांसें फूल रहीं हैं। अस्पतालों में वेंटिलेटर मशीनें तो उपलब्ध हैं, लेकिन उन्हें संचालित करने के लिए आवश्यक प्रशिक्षित स्टाफ की कमी एक बड़ी चुनौती बन गई है। इस वजह से करोड़ों के वेंटिलेटर बंद कमरों में धूल फांक रहे हैं।
कोरोना काल के बाद इन वेंटिलेटरों का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इस वजह से कुछ वेंटिलेटर खराब हो चुके हैं। कोरोना काल में जिला कांगड़ा के स्वास्थ्य संस्थानों और मेडिकल कॉलेज टांडा को 185 वेंटिलेटर दिए गए थे। इसमें से अब 25 खराब हैं और बाकी धूल फांक रहे हैं। कांगड़ा जिला, जो कि हिमाचल प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है ।
वेंटिलेटर की संख्या
जोनल अस्पताल धर्मशाला में ही 19 वेंटिलेटर हैं। इसके अलावा कांगड़ा अस्पताल में तीन, देहरा में एक, नूरपुर में एक, नगरोटा बगवां में एक, इंदौरा में एक और पालमपुर अस्पताल में दो एनेस्थेटिक तैनात हैं। ऐसे में एक एनेस्थेटिक कैसे वेंटिलेटर को संभालेगा। टांडा मेडिकल कॉलेज में 100 से अधिक वेंटिलेटर हैं, जो बिना इस्तेमाल के कबाड़ बन रहे हैं।
हैरत है कि मेडिकल कॉलेज प्रशासन को जानकारी ही नहीं है कि उनके पास कितने वेंटिलेटर हैं और कितने इस समय काम करने लायक हैं। स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि वेंटिलेटर को गंभीर मरीजों के लिए ही इस्तेमाल में लाया जाता है। इसके लिए प्रशिक्षित स्टाफ जैसे एनेस्थेटिक और प्रशिक्षित वार्ड बॉय की जरूरत होती है।