गोबिंद सागर झील हादसा : बेटे, भाई और 2 भतीजों के शव लेने चीखता हुआ ऊना पहुंचा रमेश

Edited By Vijay, Updated: 02 Aug, 2022 09:44 PM

gobind sagar lake incident

जिला ऊना के कुटलैहड़ क्षेत्र के अंदरोली की गोबिंद सागर झील में हुई 7 मौतों का कहर बनूड़ निवासी रमेश पर पहाड़ बनकर टूटा। रमेश अपने परिवार के 4 शवों को लेने के लिए मातम की चीखोपुकार और आंसू बहाता हुआ ऊना पहुंचा। क्षेत्रीय अस्पताल में शव लेने तक रमेश...

ऊना (विशाल स्याल): जिला ऊना के कुटलैहड़ क्षेत्र के अंदरोली की गोबिंद सागर झील में हुई 7 मौतों का कहर बनूड़ निवासी रमेश पर पहाड़ बनकर टूटा। रमेश अपने परिवार के 4 शवों को लेने के लिए मातम की चीखो पुकार और आंसू बहाता हुआ ऊना पहुंचा। क्षेत्रीय अस्पताल में शव लेने तक रमेश के आंसू और चीखो पुकार कुछ क्षण के लिए भी बंद नहीं हुई। एक तरफ शवगृह के अंदर रमेश के 17 वर्षीय बेटे लखबीर का शव पड़ा हुआ था, वहीं उसी शव गृह में उसके 2 सगे भतीजों रमन (19) और लाभ सिंह (17) के भी शव पड़े हुए थे। उसके सगे भाई पवन कुमार का शव भी उसी शवगृह में पड़ा हुआ था। रमेश ने इस हादसे में अपने सगे भाई, एक बेटे और 2 सगे भतीजों को खो दिया। रमेश कुमार के दोनों बेटे लखबीर और रमन इस यात्रा पर आए थे। लखबीर अन्य साथियों के साथ नहाने उतर गया जबकि रमन बाहर बैठा रहा। रमन के सामने ही उसका सगा भाई लखबीर सिंह, चाचा पवन कुमार और 2 चचेरे भाई रमन कुमार और लाभ सिंह गोबिंद सागर में डूब गए। मंगलवार को रमन अपने पिता रमेश कुमार के साथ दोबारा क्षेत्रीय अस्पताल पहुंचा तो इस दौरान रमेश का रो-रो कर बुरा हाल था।
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4 बच्चों की मौत के बाद नाजों से पाली थी 5वीं संतान, 18 साल बाद वह भी हुई मौत का शिकार
गोबिंद सागर झील में हुई 7 मौतों में से सबसे पहले डूबे विशाल कुमार के पिता राजकुमार उर्फ राजू पर सबसे अधिक कहर बरपा है। राजू अधिक पढ़ा-लिखा नहीं है और उसके बेटे ने भी सिर्फ 7वीं तक ही पढ़ाई की थी। बेहद निर्धन परिवार से संबंधित राजू इससे पहले अपने 4 बच्चों को काफी अर्से पहले खो चुका है। छोटी उम्र में उसके 4 बच्चे मौत के आगोश में समा गए थे, जिसके बाद 5वीं संतान के तौर पर विशाल कुमार पैदा हुआ। इकलौती संतान होने के चलते उन्होंने उसकी हर ख्वाहिश पूरी करने की कोशिश की थी। स्वयं राजू पोलियोग्रस्त है और दिव्यांग है। राजू परिवार को पालने के लिए एक ढाबे पर बर्तन धोने का काम करता है। पढ़ाई के बाद विशाल भी शादी समारोहों में वेटर का काम करता था। कुछ समय पहले राजू ने अपने बेटे विशाल को किश्तों पर नया मोबाइल लेकर दिया था और उसके बाद विशाल ने बाइक लेने की ख्वाहिश जाहिर की तो राजकुमार ने किस्तों पर 6 माह पहले बाइक भी लेकर दी। राजू अभी तक अपने मोबाइल और बाइकों की किस्तें भी पूरी अदा नहीं कर पाया है और उनका बेटा इस दर्दनाक हादसे में मौत की आगोश में समा गया। अब परिवार में केवल राजू और उनकी पत्नी ही रह गए हैं। क्षेत्रीय अस्पताल ऊना में जब राजू को पोस्टमार्टम की प्रक्रिया पूरी करने के लिए हस्ताक्षर करने के लिए ले जाया गया तो उनका रो-रोकर बुरा हाल हो गया। वह गम के मारे चल भी नहीं पा रहे थे और साथ आए अन्य लोगों ने उनको सहारा देकर पोस्टमार्टम रूम तक पहुंचाया। इस दौरान राजू की चीखों से पूरा शवगृह गमगीन हो गया। साथियों ने राजू को सहारा देते हुए उससे सारी प्रक्रियाएं पूरी करवाईं। 
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बेटे के मुंह से पापा शब्द सुनने से पहले ही मौत की आगोश में समा गया पवन
गोबिंद सागर झील में हुए हादसे में सबसे बड़े मृतक पवन कुमार (35) के परिवार पर दुखों की बिजली कौंध गई है। परिवार का मुखिया मौत के आगोश में समा गया है तो परिवार के समक्ष अब जीवन यापन की समस्या भी खड़ी हो गई है। पवन कुमार 3 बेटियों और एक बेटे का पिता था। शराब फैक्टरी में मजदूरी का कार्य करता था। अभी हाल ही में 2 माह पहले ही पवन कुमार के घर में बेटे ने जन्म लिया था। अभी पवन कुमार ने अपने बेटे के मुंह से पापा शब्द भी नहीं सुना था कि वह इस हादसे में डूबकर मौत के मुंह में चला गया। 
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बहनें कर रही थीं राखी की तैयारी और भाई की हुई मौत
गोबिंद सागर झील में हुए हादसे में 2 बहनों ने अपना इकलौता भाई और मां-बाप ने अपना इकलौता बेटा खो दिया है। लगभग 15 वर्षीय शिवा अपने भाई-बहनों में दूसरे नम्बर पर था। उसकी बहनें अभी रक्षाबंधन का त्यौहार मनाने की तैयारियां कर रही थीं कि शिवा की इस हादसे में मौत हो गई। शिवा का पिता अवतार कुमार पेशे से दिहाड़ीदार है और वह भी अपने लाडले का शव लेने के लिए गीली आंखों के साथ शवगृह ऊना पहुंचे हुए थे।
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अपने लाडलों के शवों का शवगृह के बाहर इंतजार करते रहे 3 पिता
क्षेत्रीय अस्पताल के शवगृह का माहौल सुबह से ही गमगीन रहा। इस दौरान मृतकों के पारिवारिक सदस्यों की आंखों से छलकते आंसुओं ने माहौल को पूरी तरह से गमगीन कर रखा। यहां मौजूद हर कोई इस त्रास्दी पर त्राहिमाम कर रहा था और परिवार के लोगों की चीखों से सबके कलेजे फट रहे थे। माहौल उस समय भी काफी दर्दनाक रहा जब पोस्टमार्टम प्रक्रिया के दौरान शवगृह के अंदर पोस्टमार्टम चल रहा था तो बाहर एम्बुलैंस के पास बैठकर 3 पिता अपने-अपने जिगर के टुकड़ों के शवों का बाहर आने का इंतजार रो-रो कर कर रहे थे। तीनों एक साथ टकटकी लगाए कभी एम्बुलैंस को देखते तो कभी शवगृह के अंदर झांककर अपने लाडलों की झलक पाने की नम आंखों से कोशिश करते। शवगृह और एम्बुलैंस के पास बैठे मृतकों के 17 वर्षीय लखबीर के पिता रमेश कुमार, 18 वर्षीय विशाल के पिता राजू और 16 वर्षीय शिवा के पिता अवतार चंद निवासी बनूड़ ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उन्हें अपने लाडलों के शवों को लेने के लिए कभी इस तरह से किसी शवगृह के बाहर बैठना पड़ेगा।

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