चुनावी रण में सियासी योद्धाओं को उतारने की तैयारी, भाजपा देख रही सत्ता का सपना

Edited By Updated: 26 Apr, 2017 09:07 AM

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भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नगर निगम में सत्ता का सपना देख रही है। चुनावी रण के लिए पूरी तैयारियां की जा रही हैं।

शिमला: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नगर निगम में सत्ता का सपना देख रही है। चुनावी रण के लिए पूरी तैयारियां की जा रही हैं। पार्टी को उम्मीद है कि उसका बहुप्रतीक्षित सपना साकार हो जाएगा। मोदी रैली ने पार्टी की उम्मीदों को पंख लगा दिए हैं। देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर चल रही है। भाजपा इसे सियासी सुनामी करार दे रही है। पार्टी के लिए शिमला रैली कैटालिस्ट का काम करेगी। इसे सफल बनाने के लिए संगठन के प्रदेश नेतृत्व ने पूरी ताकत झोंक दी है। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल से लेकर केंद्रीय मंत्री जे.पी. नड्डा तक सब एकजुट होकर ‘एकता’ का नया संदेश देते दिखाई दे रहे हैं। शिमला के सांसद से लेकर विधायक तक व संगठन के मुखिया सतपाल सत्ती से लेकर प्रदेश के तमाम पदाधिकारी शिमला में कैंप किए हुए हैं। ये नेता रैली के लिए इसलिए भी पसीना बहा रहे हैं क्योंकि नगर निगम का ऐलान कभी भी संभव है। निगम चुनाव के लिए मोदी की रैली का जो संदेश जाएगा, उससे पार्टी को काफी लाभ होने के आसार हैं। चुनाव में सत्ता पर काबिज होने के लिए पार्टी अभी से जद्दोजहद में जुटी हुई है।


रण में चुनावी योद्धाओं को उतारने की तैयारियां
कार्यकर्ताओं से लेकर पदाधिकारी सब दोहरी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। एक तो रैली के जरिए आगामी विधानसभा चुनाव की सत्ता पर निशाना साधना है और दूसरा सत्ता के सैमीफाइनल के तौर पर देखे जा रहे निगम चुनाव पर पैनी नजर टिकी हुई है। प्रदेशभर के कार्यकत्र्ताओं को दोनों ही चुनाव के लिए कसर कसने के निर्देश हो चुके हैं। भगवा ब्रिगेड चुनावी रण में उतारने के लिए पूरी तरह से तैयार है। रण में चुनावी योद्धाओं को उतारने की भी जोरदार तैयारियां चल रही हैं। वार्डों पर फतेह करने के लिए पूरा खाका खींचा जा चुका है। चुनावी रणनीति का शुरूआती ब्लू प्रिंट्र खींच लिया गया है। सियासी नक्शे में विरोधियों पर भी निगाहें लगी हुई हैं। अंतिम लकीरें तभी खींची जा सकेंगी जब सरकार आरक्षण के रोस्टर पर कोई फैसला करेगी, साथ ही यह निर्णय भी होगा कि चुनाव पार्टी सिंबल पर होंगे या नहीं। भाजपा पार्टी सिंबल पर चुनाव करवाने की पक्षधर है लेकिन इस पर अंतिम निर्णय सत्ताधारी दल कांग्रेस को लेना है। नगर निगम का राजनीतिक इतिहास भाजपा के पक्ष में कभी नहीं रहा है। यहां कांग्रेस की ही तूती बोलती रही है। निगम में भगवा लहराने का पार्टी का सपना पहले साकार नहीं हुआ। अबकी बार जरूर पार्टी को यह सपना साकार होता साफ दिखाई दे रहा है।


27 अप्रैल की शिमला रैली के लिए संभाल पूरा मोर्चा
पार्टी के समर्पित सिपाहियों का मानना है कि इस दफा सपना रात को सोते हुए नहीं जागते हुए देखा है और इसे पूरा करने के लिए धरातल पर प्रयास भी चल रहे हैं। इन्हीं प्रयासों के तहत पार्टी ने निगम चुनाव के लिए कमेटी का गठन किया है। इस कमेटी की कमान तेजतर्रार नेता डा. राजीव ङ्क्षबदल को सौंपी गई है। महेंद्र धर्माणी और त्रिलोक जम्वाल टीम के अहम हिस्सा हैं। वे बिंदल के एक तरह से दाएं और बाएं बाजू हैं। बिंदल अलग मिजाज के लिए जाने जाते हैं। चुनाव से पूर्व 27 अप्रैल की शिमला रैली के लिए भी उन्होंने पूरा मोर्चा संभाल रखा है। उन्हें शिमला के विधायक सुरेश भारद्वाज के अनुभव का पूरा लाभ मिल रहा है। निगम चुनाव में भी भारद्वाज जैसे राजनीति के मंझे हुए नेता की बड़ी भूमिका रहने वाली है। शहर में पार्टी का जनाधार भी है।


निगम चुनाव में भी पार्टी को ड़ी उम्मीदें
इस जनाधार को बढ़ाने में विधायक उल्लेखनीय प्रयास कर रहे हैं। रोहड़ू क्षेत्र के सुरेश भारद्वाज ने शिमला को अपनी कर्मभूमि बनाया है। वह पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष भी रह चुके हैं। विधायक के तौर पर सफलतापूर्वक दूसरी पारी खेल रहे हैं। भारद्वाज भाजपा विधायक दल के चीफ व्हिप भी हैं। विधानसभा के भीतर सत्ता पक्ष पर तथ्यों के साथ गरजते रहे हैं। अब निगम चुनाव में भी पार्टी को उनसे बड़ी उम्मीदें लगी हुई हैं। फिलहाल मोदी की रैली को सफल बनाने के लिए पूरे दमखम के साथ उतरे हुए हैं। शिमला के सांसद वीरेंद्र कश्यप भी उनका बराबर साथ दे रहे हैं।  कश्यप भी सांसद के रूप में दूसरी पारी खेल रहे हैं। मोदी सरकार की नीतियों को घर-घर तक पहुंचाने के लिए कड़े जतन कर रहे हैं। 


कांग्रेस बयानों तक सीमित
फिलवक्त कांग्रेस चुनाव को लेकर बयानों पर ही सीमित है। पार्टी ने वार्डों में न कोई सर्वे करवाया है और न ही संगठन की कोई गतिविधियां आरंभ की हैं। बस पार्टी केवल और केवल मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और उनकी सरकार के भरोसे बैठी हुई है। कार्यकत्र्ताओं का नेतृत्व करने वाला कोई नहीं है। सब अपने हिसाब से चले हुए हैं। पार्टी की सामूहिक तौर पर कोई समझ और रणनीति नहीं बनी है। हां, मौजूदा पार्षद अपने स्तर पर जरूर सक्रिय हैं। इन्होंने निगम के सदन में भी 5 साल तक किसी न किसी मुद्दे के आसरे सक्रियता दिखाई है। ज्यादातर मामलों में विरोध का झंडा वामपंथियों के खिलाफ बुलंद किया। निगम प्रशासन के खिलाफ कुछ नहीं बोला। ठीक वैसे ही जैसे वामपंथी संगठनों ने जनता से जुड़े मुद्दों पर मेयर और डिप्टी मेयर पर कोई निशाना नहीं साधा। धरने-प्रदर्शनों के लिए चॢचत वामपंथी संगठन निगम की अपनी ‘सत्ता’ का विरोध करने की बजाय सलाम ही ठोंकते रहे। उनके साम्यवादी चेहरे को जनता बेहद नजदीकी से वाच करती रही। अब वामपंथियों को भी सत्ता सुख भोगने का जनता को जवाब देना होगा। जनता की अदालत में जाने को पार्टी पूरी तरह से तैयार बैठी है। बस इंतजार है तो राज्य चुनाव आयोग द्वारा चुनाव की तारीख का ऐलान करने का। पार्टी का दावा है कि मेयर संजय चौहान और डिप्टी मेयर टिकेंद्र पंवर ने वह सब कर दिखाया जो पहले कभी नहीं हुआ। पार्टी की नजर में ये दोनों ही उम्मीदों पर पूरी तरह से खरे उतरे हैं। अब जनता को फैसला करना होगा कि क्या कामरेडों ने जनता से किए वायदे वाकई पूरे किए या नहीं?


माकपा के खिलाफ सत्ता विरोधी रुझान
माकपा के बेशक ज्यादा पार्षद नहीं जीते थे लेकिन पार्टी ने सत्ता सुख जरूर भोगा। अब चुनाव में पार्टीको सत्ता विरोधी रुझान का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि इस बार मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव जनता के वोटों के माध्यम से नहीं होंगे। उधर, माकपा के नेताओं का कहना है कि पार्टी की ताकत शिमला में पहले से बढ़ी है। संगठन पूर्व के मुकाबले मजबूत हुआ है। अब चुनाव में माकपा की भी परीक्षा होगी। इस पार्टी के नेताओं का मानना है कि पहले 3 ही पार्षद थे और इस चुनाव में इनकी तादाद कहीं अधिक हो जाएगी। इनमें से चमयाणा वार्ड के पार्षद नरेंद्र ठाकुर ने बाद में कांग्रेस का दामन थाम लिया था। जब पार्टी सिंबल पर भी पार्षद अपनी असली पार्टी को अलविदा कह देते हैं तो अगर चुनाव बिना पार्टी सिंबल के हुए तो उसमें खरीद-फरोख्त की संभावना कहीं अधिक हो जाएगी। माकपा की शुरू से ही समझ रही है कि निगम चुनाव पार्टी सिंबल पर ही हो। 

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