सावधान! बच्चों के हाथ में देते हैं मोबाइल? ताे आप उन्हें बना रहे इन गंभीर बीमारियों का मरीज

Edited By Vijay, Updated: 10 Sep, 2025 04:10 PM

be careful do you give mobile phones to children

अगर आप भी बच्चों को खाना खिलाने या रोने पर चुप कराने या मनोरंजन के लिए मोबाइल फोन देते हैं तो सावधान हो जाइए। मोबाइल के अधिक प्रयोग से उनका बचपना तो खो ही रहा है, साथ ही वे कई प्रकार की बीमारियों से भी ग्रस्त हो रहे हैं।

घनारी (राणा): अगर आप भी बच्चों को खाना खिलाने या रोने पर चुप कराने या मनोरंजन के लिए मोबाइल फोन देते हैं तो सावधान हो जाइए। मोबाइल के अधिक प्रयोग से उनका बचपना तो खो ही रहा है, साथ ही वे कई प्रकार की बीमारियों से भी ग्रस्त हो रहे हैं। सिविल अस्पताल गगरेट के खंड चिकित्सा अधिकारी डॉ. पंकज पराशर ने बताया कि मोबाइल की लत 2 से 11 साल के बच्चों में ‘डोपामाइन’ बढ़ा रही है। उनका कहना है कि बच्चे इसके प्रभाव में आकर ज्यादा से ज्यादा मोबाइल पर समय बिता रहे हैं। इसके चलते 40 साल की उम्र के बाद होने वाली सर्वाइकल और डिप्रैशन जैसी बीमारियां कम उम्र में हो रही हैं। युवाओं को मोबाइल की लत कब लग जाती है ये उन्हें पता ही नहीं चलता, वे इसे अपने काम का एक पार्ट समझ रहे हैं। अस्पताल में 8 से 15 साल के बच्चों में डिप्रैशन और सर्वाइकल पेन जैसे केस आ रहे हैं। वहीं युवा डिप्रैशन और नींद न आने को बीमारी समझ रहे हैं, जबकि ये सब मोबाइल की लत की वजह से है।

खुशी का हार्मोन अगर लत बन जाए तो शरीर के लिए हानिकारक
डोपामाइन को खुशी के हार्मोन के रूप में परिभाषित किया गया है, लेकिन यह खुशी का हार्मोन अगर लत बन जाए तो शरीर के लिए हानिकारक है। मोबाइल की लत के कारण बच्चों में हाइपर एक्टिव डिसऑर्डर, टेक्स्ट नेक सिंड्रोम और डिस्फोरिया नाम की बीमारी सामने आ रही है। जहां पहले 3 से 4 केस आते थे अब यही केस बढ़कर 10 से 12 हो गए हैं। मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल के चलते बच्चों में गर्दन दर्द और हाथ सुन्न होने जैसी समस्याएं आ रही हैं। 2 से 5 साल तक के बच्चों के लिए 1 घंटे से कम समय का स्क्रीन टाइम होना चाहिए। वह भी तब, जब बेहद जरूरी हो।

हाइपरएक्टिव डिसऑर्डर (Hyperactive Disorder)
मोबाइल की स्क्रीन पर लगातार तेज रोशनी, रंग और आवाज के कारण बच्चों का ध्यान भटकाने वाली चीजाें के प्रति सहनशीलता कम हो जाती है। इसका मतलब है कि वे एक जगह बैठकर किसी काम पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते हैं। जब बच्चे घंटों मोबाइल पर कुछ न कुछ देखते रहते हैं, तो उनका दिमाग बहुत तेजी से जानकारी प्रोसैस करने का आदी हो जाता है। ऐसे में जब वे असल जिंदगी में धीमी गति वाली चीजाें का सामना करते हैं, जैसे कि स्कूल में पढ़ाई या शांत माहौल में खेलना, तो उन्हें बेचैनी महसूस होती है। यही वजह है कि वे हाइपरएक्टिव हो जाते हैं और एक जगह टिककर नहीं बैठ पाते हैं।

टेक्स्ट नेक सिंड्रोम (Text Neck Syndrome)
यह एक ऐसी समस्या है जो लंबे समय तक मोबाइल का इस्तेमाल करने से गर्दन और रीढ़ की हड्डी में होती है। जब बच्चे मोबाइल इस्तेमाल करते हैं, तो वे अक्सर अपनी गर्दन झुकाकर देखते हैं। इस स्थिति में उनकी गर्दन और कंधों पर बहुत ज्यादा दबाव पड़ता है, जिससे दर्द और अकड़न हो सकती है। लगातार ऐसा करने से बच्चों की रीढ़ की हड्डी पर भी असर पड़ता है। यह सिंड्रोम आगे चलकर मांसपेशियों में खिंचाव, गर्दन में दर्द और रीढ़ की हड्डी में स्थायी बदलाव का कारण बन सकता है।

डिस्फोरिया (Dysphoria)
डिस्फोरिया एक मानसिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति को उदासी और बेचैनी महसूस होती है। मोबाइल की लत के कारण बच्चे वर्चुअल दुनिया में ज्यादा रहते हैं। जब वे असल जिंदगी में अपने दोस्तों या परिवार के साथ होते हैं, तो उन्हें अकेलापन महसूस हो सकता है। सोशल मीडिया पर दूसरों की 'परफैक्ट' जिंदगी देखकर वे खुद की तुलना करने लगते हैं, जिससे उनमें हीन भावना और उदासी पैदा होती है। इसके कारण बच्चों के व्यवहार में चिड़चिड़ापन, उदासी और बेचैनी बढ़ सकती है, जो आगे चलकर मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है।

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