Edited By Vijay, Updated: 05 Apr, 2024 09:22 PM
हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष सेब की पैदावार पर असर पड़ेगा। इसका प्रमुख कारण इस बार राज्य के निचले क्षेत्रों में सेब के पेड़ों में फूल का बहुत कम आना है। फूल कम आने के पीछे 3 प्रमुख कारण...
शिमला (भूपिन्द्र): हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष सेब की पैदावार पर असर पड़ेगा। इसका प्रमुख कारण इस बार राज्य के निचले क्षेत्रों में सेब के पेड़ों में फूल का बहुत कम आना है। फूल कम आने के पीछे 3 प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं। इसमें गत वर्ष का प्रतिकूल मौसम तथा इस वर्ष ऑफ ईयर होने के कारण पौधों में फूल कम आए हैं। इसके अलावा प्रोमालिन की असमय तथा अनावश्यक स्प्रे को भी इसकी वजह बताया जा रहा है। यह खुलासा नौणी विश्वविद्यालय के केंद्रीय बागवानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र मशोबरा शिमला के वैज्ञानिकों के अध्ययन में हुआ है। संस्थान के वैज्ञानिक एवं एसोसिएट प्रोफैसर (फल विज्ञान) डाॅ. नीना चौहान और एसएमएस मृदा विज्ञान डाॅ. उपिंदर शर्मा ने चौपाल का दौरा किया तथा वहां पर कम फूल आने के कारणों की जांच की।
जांच में किए चौंकाने वाले खुलासे
अपनी जांच में उन्होंने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। इन क्षेत्रों में पिछले वर्ष सेब की अच्छी फसल होने की वजह से सेब के लिए वर्तमान वर्ष ऑफ ईयर है। यानि ऑफ ईयर में कम पैदावार होगी। इसके अलावा गत वर्ष राज्य में अत्यधिक वर्षा के कारण पेड़ों को धूप कम मिली। साथ ही गत वर्ष पतझड़न रोग के कारण समय से पहले ही पत्ते झड़ गए थे, साथ ही कार्बोहाइड्रेट नाइट्रोजन अनुपात में असन्तुलन होने के कारण भी इस वर्ष फूल नहीं आए। समय से पहले पत्ते झड़ने से सेब के पेड़ में कार्बोहाइड्रेट की उचित मात्रा नहीं बन पाई, जबकि इसकी मौजूदगी सीधे तौर पर फूल की कलियों के बनने में योगदान देती है।
प्रोमालिन की अधिक स्प्रे ने भी बढ़ाई मुश्किलें
जांच में सामने आया है कि बागवान प्रोमालिन का छिड़काव गलत आद्रता में अधिक मात्रा में कर रहे हैं। बागवानी विश्वविद्यालय ने प्रोमालिन का सेब के लंबूतरापन बढ़ाने के लिए 25 पीपीएम (पार्ट पर मिलियन) का छिड़काव उस समय करने की सिफारिश की है, जब किंग फ्लावर 80 से 90 फीसदी खिल गया है। लेकिन बागवान इसकी एक के स्थान पर 3 स्प्रे कर रहे हैं। पहली स्प्रे बागवान किंग फ्लावर के 20 से 25 फीसदी खिलने तथा उसके बाद दो स्प्रे 15-15 दिन के बाद कर रहे हैं।
डाॅ. नीना चौहान ने कहा कि बागवानों को घबराने की जरूरी नहीं है। वह अपने बगीचों में नियमित और गुणवत्तापूर्ण फल प्राप्त करने के लिए कीट, बीमारी और पोषक तत्व प्रबंधन के लिए विश्वविद्यालय की सिफारिशों का पालन करें।
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