सावधान हिमाचल! IGMC के शोध में बड़ा खुलासा, क्या आप भी हो रहे हैं नोमोफोबिया के शिकार

Edited By Jyoti M, Updated: 26 Dec, 2025 01:29 PM

a major revelation in igmc research nomophobia is engulfing young people

आज के दौर में हम मोबाइल नहीं चला रहे, बल्कि मोबाइल हमें चला रहा है। सुबह आँख खुलने से लेकर रात को सोने तक, और यहाँ तक कि आधी रात को भी हमारी उँगलियाँ स्क्रीन पर ही थिरकती रहती हैं।

हिमाचल डेस्क। आज के दौर में हम मोबाइल नहीं चला रहे, बल्कि मोबाइल हमें चला रहा है। सुबह आँख खुलने से लेकर रात को सोने तक, और यहाँ तक कि आधी रात को भी हमारी उँगलियाँ स्क्रीन पर ही थिरकती रहती हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि फोन खो जाने या इंटरनेट खत्म होने का जो डर आपको सताता है, वह सामान्य नहीं बल्कि एक मनोवैज्ञानिक बीमारी है? चिकित्सा जगत में इसे 'नोमोफोबिया' (No Mobile Phone Phobia) कहा जाता है।

शिमला स्थित इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (IGMC) के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग द्वारा किए गए एक चौंकाने वाले शोध में यह बात सामने आई है कि भविष्य के डॉक्टर (MBBS छात्र) खुद इस डिजिटल लत की गिरफ्त में हैं।

अध्ययन के मुख्य बिंदु: खतरे की घंटी

डॉ. अमित सचदेवा और उनकी टीम द्वारा 406 मेडिकल छात्रों पर किए गए इस सर्वे के परिणाम 'जर्नल ऑफ पायोनियर मेडिकल साइंसेज' में प्रकाशित हुए हैं। इसके आँकड़े डराने वाले हैं:

गंभीर स्थिति: लगभग 71% छात्रों में मध्यम स्तर का और 19% में अति-गंभीर नोमोफोबिया पाया गया।

स्क्रीन टाइम का जाल: करीब 70% युवा हर दिन 4 घंटे से ज्यादा समय फोन की स्क्रीन पर चिपके रहते हैं।

नींद पर प्रहार: 86% छात्र बिस्तर पर जाने के बाद भी फोन नहीं छोड़ पाते, जबकि 81% की सुबह ही फोन की स्क्रीन देखकर होती है। यहाँ तक कि 23% छात्र तो रात को नींद टूटने पर भी सबसे पहले नोटिफिकेशन चेक करते हैं।

अनुशासन में कमी: 71% छात्र क्लास में लेक्चर के दौरान और लगभग 78% छात्र शौचालय (Washroom) में भी मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं।

सेहत पर पड़ रहा भारी असर

स्मार्टफोन की यह लत केवल मानसिक नहीं, बल्कि शारीरिक रूप से भी युवाओं को खोखला कर रही है। अध्ययन में शामिल छात्रों ने कई समस्याओं की पुष्टि की:

अनिद्रा: 65% छात्रों की नींद में मोबाइल की वजह से देरी हो रही है।

शारीरिक कष्ट: आधे से ज्यादा छात्र सिरदर्द और आँखों के तनाव (Eye Strain) से जूझ रहे हैं।

दिनचर्या पर प्रभाव: 40% छात्र रात को फोन चलाने के कारण दिन भर सुस्ती और नींद महसूस करते हैं।

नोमोफोबिया को समझें: यह वह मानसिक अवस्था है जहाँ व्यक्ति को फोन से दूर होने, बैटरी खत्म होने या नेटवर्क न मिलने के विचार मात्र से घबराहट, बेचैनी और पसीना आने लगता है। यह एक ऐसी अदृश्य जंजीर है जिसने हमारी एकाग्रता और शांति को छीन लिया है।

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