Edited By Ekta, Updated: 01 Jan, 2019 11:36 AM
एक वो दौर था जब राजा अपना शौक पूरा करने के लिए कुछ भी कर देते थे और एक आज का दौर है जब जरूरतों को पूरा करने के लिए भी वर्षों लग जाते हैं। आज हम आपको शौक और जरूरत की दो अलग-अलग दास्तां बताएंगे। पहले बात इतिहास के पन्नों से शौक की। बात 1877 से पहले की...
मंडी (नीरज): एक वो दौर था जब राजा अपना शौक पूरा करने के लिए कुछ भी कर देते थे और एक आज का दौर है जब जरूरतों को पूरा करने के लिए भी वर्षों लग जाते हैं। आज हम आपको शौक और जरूरत की दो अलग-अलग दास्तां बताएंगे। पहले बात इतिहास के पन्नों से शौक की। बात 1877 से पहले की है जब मंडी रियासत के राजा विजय सेन हुआ करते थे। देश पर अंग्रेजों की हकुमत थी और जार्ज पंचम ने दिल्ली में एक समारोह का आयोजन किया जिसमें देश भर की रियासतों के राजाओं को बुलाया गया। मंडी रियासत के राजा वियज सेन भी इसमें शामिल होने दिल्ली गए। समारोह के दौरान वहां पर जार्ज पंचम ने कार को लेकर प्रतियोगिता करवाई। प्रतियोगिता के अनुसार घोड़ों और कार के बीच रेस लगवाई गई।
इनाम में जीती कार को चलाने के लिए राजा ने बनवाया था पुल
मंडी के राजा विजय सेन के घोड़े ने कार को पछाड़ते हुए जीत हासिल की। ऐसे में जार्ज पंचम ने शर्त अनुसार राजा वियज सेन को कार ईनाम में दे दी। लेकिन कार को मंडी लाना संभव नहीं था और अगर ले भी आते तो यहां पर उसे चलाना कहां था क्योंकि उस दौर में सड़कों और पुलों की कोई व्यवस्था नहीं होती थी। राजा वियज सेन ने ब्रिटिश हकुमत से मंडी शहर को जोड़ने के लिए एक पुल बनाने का आग्रह किया। उन्होंने राजा के आग्रह को स्वीकार करते हुए पुल बनाने का वादा किया। राजा ने इसके लिए एक लाख रूपए भी अदा किए। 1877 में पुल बनकर तैयार हो गया। यह पुल इंग्लैंड में बने विक्टोरिया पुल की डुप्लीकेट कॉपी बताया जाता है। यही कारण है कि इसे अंग्रेजों ने विक्टोरिया पुल का नाम दिया जबकि मंडी रियासत ने इसे विजय केसरी पुल का नाम दिया था। राजा ने इनाम में जीती कार को दिल्ली में खुलवाकर, पुर्जे-पुर्जे अलग करवाकर मंडी पहुंचाया और फिर यहां पर उसकी सवारी का आनंद उठाया।
141 वर्ष पुराना विक्टोरिया पुल आज भी ढो रहा है वाहनों का भार
इतिहासकार कृष्ण कुमार नूतन बताते हैं कि विक्टोरिया पुल बनने के बाद मंडी रियासरत की राजधानी को नई पहचान मिली। पुरानी मंडी और मंडी के बीच आवागमन आसान हुआ और विकास ने रफ्तार पकड़ी। हालांकि यह पुल छोटी गाड़ियों के बनाया गया था लेकिन एक दौर ऐसा भी आया जब इस पुल से रोजाना भारी भरकम ट्रक और बसें गुजारी गई। जब तक भ्यूली पुल नहीं बना था पठानकोट जाने वाले सभी वाहनों के लिए इसी पुल का इस्तेमाल किया जाता था। ब्रिटिश हकुमत के जिन इंजीनियरों ने इसका निर्माण किया था। उन्होंने इसकी आयु 100 वर्ष बताई थी, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि 141 वर्ष बीत जाने के बाद भी यह पुल आज भी उसी शान के साथ खड़ा है जैसा अपने शुरूआती दौर में था। न तो पुल के रस्से बदले गए और न ही कोई अन्य सामग्री। हां, समय-समय पर इसकी मुरम्मत जरूर की गई। लेकिन पुल की मजबूती बताने के लिए इसके निर्माण के बाद के वर्षों की गिनती ही काफी है।
100 साल बताई थी पुल की लाइफ
अब बात जरूरत की कर लेते हैं। विक्टोरिया पुल को आज से करीब 41 वर्ष पहले पूरी तरह से भारमुक्त हो जाना चाहिए था। जब इसकी आयु 100 वर्ष हो गई थी उससे पहले ही इसके समानांतर एक और पुल का निर्माण करके इसे हैरिटेज के रूप में सहेज दिया जाना चाहिए था, क्योंकि यह जरूरत थी। लेकिन यह जरूरत पूरी हुई वर्ष 2015 में यानी आज से 3 वर्ष पहले। 3 वर्ष पहले विक्टोरिया पुल के समानांतर एक अन्य पुल की आधारशिला रखी गई। यह डबल लेन पुल विधायक प्राथमिकता के तहत 25 करोड़ की लागत से बनाया जा रहा है। सदर के विधायक एवं कैबिनेट मंत्री अनिल शर्मा के प्रयासों से इसका निर्माण कार्य शुरू हो पाया है। पुल का 60 प्रतिशत से अधिक का कार्य हो चुका है। विधायक एवं मंत्री अनिल शर्मा की माने तो अगले वर्ष मार्च से पहले पुल का उदघाटन करके इसे जनता को समर्पित कर दिया जाएगा और लोगों की बेहतर यातायात की जरूरत पूरी हो पाएगी। उसके बाद विक्टोरिया पुल को एक हैरिटेज के रूप में सहेजा जाएगा। वाहनों की आवाजाही यहां से पूरी तरह बंद हो जाएगी और सिर्फ पैदल चलने वालों के लिए यह खुला रहेगा।