यहां अस्पताल के नाम पर सिर्फ बिल्डिंग और सड़कों पर है हमेशा ‘मौत’ का सफर

Edited By Ekta, Updated: 30 Aug, 2018 05:00 PM

there is always a journey to death on the streets

भरमौर विधानसभा का पांगी उपमंडल चम्बा जिला मुख्यालय से लगभग 187 किलोमीटर दूर है। लगभग 23 हजार की आबादी वाले इस इलाके में साल में सिर्फ 4 से 5 महीने सड़क सुविधा मिलती है। शेष समय बर्फबारी के कारण सड़कें बंद रहती हैं। 1970 के बाद से यहां हालात ज्यादा...

किलाड़ (सूर्यवंशी): भरमौर विधानसभा का पांगी उपमंडल चम्बा जिला मुख्यालय से लगभग 187 किलोमीटर दूर है। लगभग 23 हजार की आबादी वाले इस इलाके में साल में सिर्फ 4 से 5 महीने सड़क सुविधा मिलती है। शेष समय बर्फबारी के कारण सड़कें बंद रहती हैं। 1970 के बाद से यहां हालात ज्यादा नहीं बदले हैं। हां, इतना जरूर है कि वाहन पहुंचने शुरू हो गए। यहां अस्पताल के नाम पर सिर्फ बिल्डिंग और परिवहन के नाम पर हरदम मौत का सफर। पांगी के निवासियों का कहना है कि घाटी में अस्पताल में इलाज के लिए कोई सुविधा नहीं है। न तो डॉक्टर हैं और न ही किसी प्रकार के खून के टैस्ट यहां होते हैं।

छोटे से छोटे इलाज व टैस्ट के लिए लोगों को चम्बा-पठानकोट, टांडा मैडीकल कॉलेज या फिर शिमला जाना पड़ता है। बात परिवहन सुविधा की करें तो घाटी में जो सड़कें बस योग्य बनी हैं, वे बस चलने के काबिल नहीं बन पाई हैं, जबकि विभाग ने उन्हें हरी झंडी दे दी है। कई गांव तक बस जोखिम उठा कर पहुंचती है, क्योंकि बस का टायर कभी भी सड़क से बाहर हो सकता है। लोगों के अनुसार यहां जो बसें दौड़ती हैं, वे काफी पुरानी हैं। यही नहीं, बसों में ओवरलोङ्क्षडग आम है। यही नहीं, निजी टैक्सी चालक भी ओवरलोडिंग करते हैं। किसी भी प्रकार के यातायात नियम का पालन नहीं। 

लोगों ने बताया कि घाटी की सड़कें इतनी बदहाल हैं कि पता ही नहीं चलता कि सड़कों में गड्ढे हैं या गड्ढों में सड़क। पांगी निवासी रमेश कुमार, अशोक कुमार, राम दयाल, सुबोध और किशन चंद ने बताया कि 1975 से लेकर 1985 तक पांगी के लोग भेड़-बकरियों पर राशन लाद कर चम्बा के तरेला से वाया साच पास पगडंडी वाले रास्ते से ले जाते थे। उसके बाद खच्चर पर राशन पांगी पहुंचाया जाता था। 1984 के बाद कई बार एमरजैंसी में हैलीकॉप्टर से राशन फैंका जाता था। यहां पहुंचने के लिए वाया लाहौल-स्पीति, वाया साच पास और वाया जम्मू-कश्मीर रास्ता है। यहां के लोग अक्तूबर से लेकर मई महीने तक या तो हवाई सेवा पर निर्भर रहते हैं या फिर एक रास्ता है, जोकि वाया जम्मू-कश्मीर का है, जो काफी जोखिमों से भरा है।

1990 में सड़क व 1994 में पहुंची थी पहली गाड़ी
पांगी घाटी में 1993 में पहली बार ग्रैफ की सड़क पहुंची और 1994 में पहली गाड़ी पांगी पहुंची। उसके बाद कुछेक गांव सड़क मार्ग से जुड़ने शुरू हुए। घाटी की 16 पंचायतों के गांव उस समय बस योग्य सड़क से जुड़े, जब प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना शुरू हुई। पांगी को वाया साच पास जोडऩे का काम शुरुरू हुआ सन् 1970 में। मुख्यालय चम्बा से वाया साच पास से पांगी तक सड़क बनाने का काम 1970 के दशक में शुरू हुआ। उसके बाद सड़क तो बन गई, लेकिन आज तक यह सड़क कभी भी न तो पक्की हो पाई और न ही सुरक्षित।  

 

 


 

 

 


 

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