जिस बेटे ने बनना था वृद्धावस्था में सहारा वहीं है अब लाचार, परिवार को मदद की दरकार (Video)

Edited By Vijay, Updated: 03 Oct, 2018 06:10 PM

बुजुर्ग मां और बिस्तर पर पड़ा उसका लाचार बेटा। पिछले 10 वर्ष से मां इसी उम्मीद में सेवा कर रही है कि शायद उसका बेटा ठीक हो जाए और फिर से अपने पैरों पर खड़ा होकर उसके बुढ़ापे का सहारा बने।

ऊना (सुरेन्द्र): बुजुर्ग मां और बिस्तर पर पड़ा उसका लाचार बेटा। पिछले 10 वर्ष से मां इसी उम्मीद में सेवा कर रही है कि शायद उसका बेटा ठीक हो जाए और फिर से अपने पैरों पर खड़ा होकर उसके बुढ़ापे का सहारा बने। उपमंडल अम्ब के तहत ग्राम पंचायत हम्बोली के गांव सेरी का करीब 35 वर्षीय राकेश कुमार गंभीर बीमारी से ग्रस्त होने के कारण बिस्तर पर है। गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों में शुमार राकेश कुमार करीब 10 वर्ष पहले उस समय घायल हुआ था जब वह मजदूरी करने के लिए गया था। एक दीवार के अचानक गिर जाने की वजह से वह इसके नीचे आ गया और हमेशा के लिए अपाहिज हो गया। पिछले 10 वर्षों से परिवार अपने बलबूते पर बेटे के उपचार में लगा है लेकिन अब वह भी पूरी तरह से असमर्थ हो चुका है।

बीमार राकेश कुमार की करीब 62 वर्षीय माता शकुंतला देवी बिना किसी आर्थिक संसाधन के अपने बेटे का उपचार करवाती आ रही है परंतु अब वह भी असहाय हो चुकी है। आंखों से अश्रुधारा बहाती शकुंतला देवी ऐसे मसीहा की तलाश में है जो उसके बेटे के उपचार में मदद करे। शकुंतला देवी कहती है कि कहां तो बेटा उसके बुढ़ापे का सहारा बनना था और कहां वह इस आयु में अपने लाचार पुत्र की सेवा में जुटी हुई है। शकुंतला देवी कहती है कि अभी तक उन्हें कहीं से भी कोई सहायता नहीं मिली है।

शकुंतला देवी के पति की पहले ही मौत हो चुकी है। इकलौता पुत्र था लेकिन वह हादसे का शिकार होकर बिस्तर पर पड़ा है। राकेश कुमार का पूरा शरीर जख्मों से भरा पड़ा है, जिस पर कपड़े की पट्टियां बंधी पड़ी हैं। वह हर समय जख्मों में हो रहे दर्द की वजह से चिल्ला रहा है। न कुछ खाता है और न ही कुछ पीता है। मां तड़प रही है कि उसके बेटे का दर्द कहीं कम हो। इस गरीब परिवार की कोई पुकार सुने ताकि इस असहनीय दर्द से वह बाहर आ सके।

बीमार राकेश कुमार के चचेरे भाई यशपाल कहते हैं कि उन्होंने भी अपनी तरफ से काफी राशि इलाज पर खर्च की है परन्तु अब वह भी असहाय हो चुके हैं। परिवार के पास आय का कोई साधन नहीं है। कोई चिकित्सक या सरकारी संस्था अब तक इसे देखने नहीं आई है। गुरवत्त की हालत में इस बीमारी से कैसे निजात पाया जाए यह समझ से बाहर है।

बिस्तर पर लेटे हुए राकेश कहता है कि वह असहनीय दर्द का सामना कर रहा है। उसे उपचार मिले तो इस दर्द से कुछ छुटकारा मिल सकता है मगर हमारी आर्थिक स्थिति बदहाल हो चुकी है और इलाज करवा पाना भी संभव नहीं है। मां-बेटे ने सरकार से सहायता की गुहार लगाई है।

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