118 वर्ष पुराना स्टीम लोकोमोटिव इंजन खराब, नहीं हुई मुरम्मत, अब रखेंगे बाबा भलकू रेलवे म्यूजियम के बाहर

Edited By Kuldeep, Updated: 03 Jun, 2024 04:33 PM

shimla steam engine bad

विश्व धरोहर शिमला-कालका रेलवे ट्रैक पर अब ब्रिटिशकालीन समय का ‘स्टीम लोकोमोटिव इंजन’ दौड़ता नजर नहीं आएगा। एक वर्ष से इसका संचालन बंद होने के बाद अब तक इसकी मुरम्मत नहीं हो पाई है।

अब स्टीम इंजन को बाबा भलकू रेलवे म्यूजिअम के बाहर रखने की तैयारी
शिमला (अभिषेक):
विश्व धरोहर शिमला-कालका रेलवे ट्रैक पर अब ब्रिटिशकालीन समय का ‘स्टीम लोकोमोटिव इंजन’ दौड़ता नजर नहीं आएगा। एक वर्ष से इसका संचालन बंद होने के बाद अब तक इसकी मुरम्मत नहीं हो पाई है। ऐसे में अब यह स्टीम इंजन भविष्य में इस रेलवे ट्रैक पर चलता नजर नहीं आएगा। हालांकि बीते वर्ष इस इंजन की मुरम्मत अमृतसर में करवाने की बात कही गई थी, लेकिन एक वर्ष बीत जाने के बाद भी इसे अमृतसर स्थित वर्कशॉप में नहीं भेजा गया है। सूत्रों के अनुसार इस इंजन की हालत अब बेहद खराब हो चुकी है और अब शायद ही यह पटरी पर चल पाए। इसको देखते हुए अब इसे शिमला के बाबा भलकू रेलवे म्यूजियम के बाहर रखने की तैयारी है, जहां लोग इस इंजन को देख सकेंगे। इसको लेकर पूर्व में बैठक में चर्चा भी हो चुकी है और अब जल्द इसको लेकर उच्च स्तर पर निर्णय लेने के बाद आगामी कदम उठाया जाएगा। वर्तमान में यह स्टीम इंजन शिमला रेलवे स्टेशन पर खड़ा है। बीते एक वर्ष में कई बार विदेशों से इस इंजन वाली ट्रेन की बुकिंग के लिए कॉल्स आई है, लेकिन इंजन में तकनीकी खराबी के चलते बुकिंग नहीं की गई। अब इस इंजन के खराब होने से भविष्य में देश-विदेश से यात्री इस इंजन से लैस ट्रेन की बुकिंग करवाकर इसमें सफर का आनंद नहीं उठा पाएंगे। इस इंजन का वजन 41 टन है और इसकी 80 टन तक खींचने की क्षमता है। वर्ष 2001 में स्टीम इंजन की मुरम्मत के बाद इसका संचालन स्टीम इंजन वाली ट्रेन शिमला से कैथलीघाट के बीच चलाई जाती रही। इसका संचालन वर्ष 2022 तक नियमित रूप से जारी रहा है। हालांकि लॉकडाऊन के समय कुछ समय के लिए इसकी बुकिंग बंद कर दी थी।

कालका-शिमला ट्रैक पर 1906 में अंग्रेजों ने चलाया था स्टीम इंजन
कालका-शिमला ट्रैक पर स्टीम इंजन 1906 में अंग्रेजों ने चलाया था। स्टीम इंजन को अभी भी रेलवे ने सहेज कर रखा है। 1971 तक स्टीम इंजन ट्रैक पर दौड़ता रहा। 1971 में सर्विस करने के बाद इस इंजन को ट्रैक पर चलाना बंद कर दिया गया। 2001 में स्टीम इंजन की मुरम्मत करवाई गई। यह इंजन शिमला में खड़ा रहता है और इसे पर्यटकों द्वारा बुक किए जाने पर ही चलाया जाता है। 520 के.सी. नामक यह स्टीम इंजन नाॅर्थ ब्रिटिश लोकोमोटिव कंपनी इंगलैंड के द्वारा बनाया गया था।

स्टीम इंजन में भाप के पिस्टन में आगे-पीछे चलने और बाहर निकलने से छुक-छुक की आवाज पैदा होती थी
स्टीम इंजन की खास बात यह थी कि इसकी छुक-छुक की आवाज सिर्फ स्टीम इंजन से पैदा होती थी। स्टीम इंजन में भाप के पिस्टन में आगे-पीछे चलने और बाहर निकलने से छुक-छुक की आवाज पैदा होती है। स्टीम इंजन में बजने वाली सीटी भाप के दबाव से ही बजती है। डीजल इंजन के मुकाबले स्टीम इंजन की सीटी ज्यादा तीखी और दूर तक सुनाई देने वाली होती है। इंजन में लाइट भी स्टीम से ही जलती है।

इतने में होती थी बुकिंग
करीब अढ़ाई लाख रुपए में स्टीम इंजन वाली ट्रेन की बुकिंग होती है। स्टीम इंजन के साथ जोड़े जाने वाले कोच के आधार पर इसका किराया निर्धारित होता है। अधिकतर विदेशी पर्यटक ही इस इंजन वाली ट्रेन की बुकिंग करते थे और शिमला से कैथलीघाट के बीच इस ट्रेन में सफर का लुत्फ उठाते थे।

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