हाल-ए-हिमाचल: जब धूमल-राणा के बीच दिल्ली में हुई दिल दियां गल्लां

Edited By Ekta, Updated: 09 Oct, 2018 12:32 PM

prem kumal dhumal and rajinder rana

कहते हैं इंसान अपना पहला प्यार कभी नहीं भूलता। ये बात सियासत पर और भी शिद्दत से लागू होती है। तमाम सियासतों के बावजूद सियासतदान अपनी पहली दोस्ती नहीं भूलते। इसका ताजा उदाहरण है प्रेम कुमार धूमल और राजेंद्र राणा। भले ही आज दोनों के बीच 36 का सियासी...

शिमला (संकुश): कहते हैं इंसान अपना पहला प्यार कभी नहीं भूलता। ये बात सियासत पर और भी शिद्दत से लागू होती है। तमाम सियासतों के बावजूद सियासतदान अपनी पहली दोस्ती नहीं भूलते। इसका ताजा उदाहरण है प्रेम कुमार धूमल और राजेंद्र राणा। भले ही आज दोनों के बीच 36 का सियासी आंकड़ा है लेकिन समीरपुर से लेकर ओकओवर तक की दीवारें इसी 36 के 6 +3 = 9 होने की गवाही अब भी भरती हैं। वो तो मुआ वुडविला बीच में आ गया जिसने दरार पैदा कर दी। खैर दोनों के बीच निजी रिश्ते आज भी प्रगाढ़ हैं। इसका हालिया उदाहरण आपने दो दिन पहले जनमंच कार्यक्रम के दौरान देखा भी होगा जब ऊहल में राणा ने भरी सभा में धूमल के पांव छुए। ये राणा का बड़प्पन है। 

उन्होंने नामांकन के समय भी धूमल के पांव छूकर आशीर्वाद लिया था। लेकिन हम आपको उस मुलाकात के बारे में बताएंगे जो छुपकर हुई। ये मुलाकात प्रदेश से दूर दिल्ली में हुई। हिमाचल सदन के कमरा नंबर 306 में धूमल ठहरे हुए थे और कमरा नंबर 300 में राजेंद्र राणा। तारिख थी 6 अगस्त। वक्त यही कोई पांच सवा पांच का।  अचानक राणा अपने कमरे से निकल कर सामने वाले कमरे में प्रवेश करते हैं। कमरा नंबर 306 यानी प्रेम कुमार धूमल के कमरे में। अंदर से सुरक्षा अधिकारी बाहर आ जाते हैं। दरवाजा अंदर से बंद हो जाता है। करीब सवा घंटे तक यह मुलाकात चलती है। बाहर बैठे दोनों के कर्मचारी अजीब खामोशी ओढ़े बैठे रहते हैं। दरवाजे पर टकटकी लगाए। बीच में दो बार बैरा अंदर जाता है। एक बार जूस लेकर और एक बार चाय लेकर। बैरे की बेल्ट में छिपकर गई एक छिपकली ने हमें बताया कि दोनों के बीच बातों का खूब दौर चला।  

राजेंद्र राणा ने धूमल से यह भी पूछा कि आपने क्यों सुजानपुर से चुनाव लड़ा। जवाब में धूमल ने कहा कि शायद होनी को यही मंजूर था। इसलिए हो गया और जो हो गया सो हो गया। हालांकि इस दौरान छिपकली ने धूमल साहब के चेहरे पर पीड़ा के भाव जरूर देखे। फिर हार जीत और सुजानपुर के कुछ अन्य समीकरणों पर भी बातचीत हुई। चूंकि छिपकली बैरे की बेल्ट में छुपकर गई थी और बैरे का कमरे में ठहराव समय में बंधा हुआ था लिहाजा सारगर्भित जानकारी हासिल नहीं हो सकी। यह पता नहीं चल पाया कि क्या धूमल साहब ने विधानसभा के बाद लोकसभा में भी दोनों घरानों के बीच संभावित युद्ध पर कोई बात की या नहीं ??? क्या धूमल ने राणा से अनुराग के भविष्य  को लेकर कोई वचन लिया या नहीं यह भी पता नहीं चल पाया। लेकिन यह मुलाकात आश्चर्य में डालने वाली तो थी ही।  

विधानसभा चुनाव के बाद धूमल राणा में यह पहली वन-टू-वन मीटिंग थी। हालांकि उस मीटिंग के बाद जिस तरह से  राणा ने सुजानपुर बीडीसी में धूमल के कब्जे के प्रयास धराशायी किये उससे ऐसा कोई संकेत तो मिलता नहीं कि राणा कोई ढील देने के मूड में हैं। बाकी आगे आगे देखिए होता है क्या। फिलहाल हमें 1979 में खय्याम का लिखा और लता मंगेशकर का गाया वो गाना याद आ गया जिसके बोल थे --ये मुलाकात इक बहाना है--प्यार का सिलसिला पुराना है। संयोग से इस फिल्म का नाम था -खानदान-और हिमाचल की सियासत में आजकल धूमल -राणा खानदान ही मुख्य चर्चा का विषय है। 

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