Edited By Ekta, Updated: 27 Aug, 2018 11:06 AM
सतलुज नदी के आखिरी अविरल हिस्से पर जलविद्युत परियोजनाओं को मंजूरी देने की प्रक्रिया पर आपत्ति जताते हुए हिमधरा पर्यावरण समूह ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति को शिकायत पत्र भेजा है। समिति की मंगलवार को होने वाली बैठक में इसे लेकर...
शिमला: सतलुज नदी के आखिरी अविरल हिस्से पर जलविद्युत परियोजनाओं को मंजूरी देने की प्रक्रिया पर आपत्ति जताते हुए हिमधरा पर्यावरण समूह ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ समिति को शिकायत पत्र भेजा है। समिति की मंगलवार को होने वाली बैठक में इसे लेकर चर्चा की जाएगी। सतलुज नदी पर एस.जे.वी.एन.एल. की 219 मैगावाट लुहरी स्टेज 1 जलविद्युत परियोजना को पर्यावरण मंजूरी मिली है। यह बांध परियोजना जिला शिमला और कुल्लू में 420 मैगावाट रामपुर परियोजना के ठीक नीचे के नदी क्षेत्र में प्रस्तावित है। स्थानीय समुदाय की आपत्ति पर निरस्त करना पड़ा था परियोजना को एस.जे.वी.एन.एल. पहले इस हिस्से में 750 मैगावाट की 35 किलोमीटर लम्बी सुरंग के साथ इस परियोजना का निर्माण करने वाला था।
भूस्खलन प्रभावित इलाके में इतनी लम्बी सुरंग के बनने के खतरों को देखते हुए स्थानीय समुदाय ने परियोजना निर्माण पर आपत्ति जताई थी जिसके चलते परियोजना को निरस्त करना पड़ा था। हिमधरा पर्यावरण समूह ने कहा कि इस परियोजना के बदले हिमाचल सरकार ने इस हिस्से पर 3 बांध परियोजनाएं लुहरी स्टेज 1, लुहरी स्टेज 2 (163 मैगावाट) और सुन्नी (355 मैगावाट) आबंटित की हैं। सुन्नी परियोजना कोल बांध (800 मैगावाट) जोकि भांखड़ा बांध के ऊपर (अपस्ट्रीम) है, के ठीक ऊपर प्रस्तावित है। हिमधरा समूह का कहना है कि पर्यावरण मंत्रालय द्वारा तीनों प्रस्तावित परियोजनाओं के प्रभावों को अलग-अलग तोड़कर देखने से इनके सांझा प्रभावों का सही आकलन नहीं हो पाएगा।