भोले के भक्तों के लिए खुशखबरी! अब और भी सुरक्षित और सुगम होगी मणिमहेश की पावन यात्रा

Edited By Vijay, Updated: 13 Sep, 2025 02:47 PM

manimahesh yatra

उत्तर भारत की प्रसिद्ध मणिमहेश यात्रा अब पहले से कहीं ज्यादा सुरक्षित और सुगम होने जा रही है। भोले के भक्तों के लिए यह खबर किसी सौगात से कम नहीं है, जो हर साल कठिन चढ़ाई और खतरनाक रास्तों की परवाह किए बिना अपने आराध्य के दर्शन को पहुंचते हैं।

चम्बा: उत्तर भारत की प्रसिद्ध मणिमहेश यात्रा अब पहले से कहीं ज्यादा सुरक्षित और सुगम होने जा रही है। भोले के भक्तों के लिए यह खबर किसी सौगात से कम नहीं है, जो हर साल कठिन चढ़ाई और खतरनाक रास्तों की परवाह किए बिना अपने आराध्य के दर्शन को पहुंचते हैं। प्रशासन ने यात्रा के अनुभव को सुखद बनाने के लिए एक व्यापक योजना तैयार की है।

अब तक हड़सर से धनछो और सुंदरासी से डल झील तक का सफर श्रद्धालुओं के लिए एक बड़ी चुनौती हुआ करता था। बार-बार होने वाले भूस्खलन और संकरे रास्ते न सिर्फ थकाते थे, बल्कि जान का जोखिम भी पैदा करते थे। इसी को देखते हुए प्रशासन ने 14 किलोमीटर लंबे इस मार्ग को नए सिरे से बनाने का फैसला किया है। प्रशासन ने विशेषज्ञों की मदद से उन सभी जगहों को चिह्नित किया है, जहां भूस्खलन का खतरा सबसे ज्यादा है। अब इन जगहों पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जा रहे हैं, ताकि बारिश या खराब मौसम में भी श्रद्धालुओं का रास्ता न रुके।

सबसे खास बात यह है कि इस नए रास्ते पर पैदल चलने वाले श्रद्धालुओं और घोड़े-खच्चरों के लिए अलग-अलग लेन होगी। इससे भीड़भाड़ कम होगी और सफर तेजी से पूरा हो सकेगा। बुजुर्गों और थक जाने वाले यात्रियों के लिए रास्ते में जगह-जगह विश्राम स्थल भी बनाए जाएंगे, जहां वे सुस्ताकर अपनी आगे की यात्रा जारी रख सकेंगे।

यात्रा के दौरान आपदा में फंसे लंगर समितियों और दुकानदारों के भारी सामान को नीचे लाना हमेशा से एक बड़ी चुनौती रहा है। इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए प्रशासन ने एक अनूठी पहल की है। डलझील और धनछो से हड़सर तक करीब 6 किलोमीटर लंबा एक विशेष स्पैन (रोप-वे जैसा सिस्टम) बनाया जाएगा। इस स्पैन के जरिए भारी से भारी सामान को सीधे लिफ्ट कर नीचे लाया जा सकेगा, जिससे समय और मेहनत दोनों की बचत होगी।

इस साल कुगति पास और कमलकुंड के खतरनाक मार्ग पर ऑक्सीजन की कमी से कई श्रद्धालुओं की दुखद मौत हो गई थी। इन घटनाओं से सबक लेते हुए प्रशासन ने एक बड़ा और कड़ा फैसला लिया है। अब यह खतरनाक रास्ता केवल उन्हीं स्थानीय श्रद्धालुओं (लाहौल और भरमौर क्षेत्र) के लिए खुला रहेगा, जिनकी यह सदियों पुरानी धार्मिक परंपरा है। अन्य राज्यों और क्षेत्रों से आने वाले सभी भक्तों को अब केवल हड़सर से डलझील तक बने नए और सुरक्षित मार्ग का ही उपयोग करना होगा।

चम्बा के उपायुक्त मुकेश रेप्सवाल ने बताया कि हमारी प्राथमिकता हर श्रद्धालु की सुरक्षा है। 14 किलोमीटर के इस स्थायी मार्ग पर पैदल यात्रियों और घोड़ों के लिए अलग रास्ते, विश्राम स्थल और भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों में पुख्ता इंतज़ाम किए जाएंगे। जल्द ही अस्थायी रास्ता तैयार कर ऊपरी इलाकों में फंसा सामान नीचे लाया जाएगा। हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि अगली बार जब भक्त यहां आएं तो वे केवल भक्ति और मन की शांति का अनुभव करें।

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