टाइप-1 और टाइप-2 मधुमेह का इलाज होगा आसान

Edited By Kuldeep, Updated: 02 May, 2022 05:22 PM

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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी.) मंडी के शोधकर्ताओं ने मधुमेह (डायबिटीज) के इलाज में कारगर अणु (मोलिक्यूल) का पता लगाया है।

आई.आई.टी. मंडी के शोधकर्ताओं ने मधुमेह इलाज में उपयोगी अणु का लगाया पता
मंडी (ब्यूरो):
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी.) मंडी के शोधकर्ताओं ने मधुमेह (डायबिटीज) के इलाज में कारगर अणु (मोलिक्यूल) का पता लगाया है। पीके2 नामक यह अणु अग्नाशय (पैनक्रियाज) से इंसुलिन का स्राव शुरू करने में सक्षम है, जिससे मधुमेह के इलाज के लिए दवा बनाने की उम्मीद जगी है। शोध में आई.आई.टी. के शोधकत्र्ताओं ने पाया कि पीके2 अणु न केवल इंसुलिन का स्राव बढ़ाता है, बल्कि बीटा सैल का नुक्सान कम करने और स्थिति सुधारने में भी सक्षम है, इसलिए यह टाइप-1 और टाइप-2 दोनों तरह के मधुमेह में असरदार है। आई.आई.टी. मंडी के शोधकत्र्ता डा. ख्याति गिरधर ने बताया कि सबसे पहले मानव कोशिकाओं में मौजूद जीएलपी1 आर. प्रोटीन पर पीके2 के जुडऩे का परीक्षण किया। इसमें पाया गया कि यह जीएलपी-1 आर प्रोटीन से अच्छी तरह जुडऩे में सक्षम है। इससे पता चला कि पीके2 में बीटा सैल्स से इंसुलिन के स्राव कराने की संभावना है। शोधकर्ताओं ने यह भी देखा कि पीके2 गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट में तेजी से अवशोषित हो गया, जिसका अर्थ यह है कि इससे तैयार दवा की सुई के बदले खाने की गोली इस्तेमाल की जा सकती है। इसके अतिरिक्त दवा देने के 2 घंटे के बाद पीके2 चूहों के लिवर, किडनी और पैनक्रियाज में पहुंच गया और पाया गया कि इसका कोई अंश हृदय, फेफड़े और स्प्लीन (तिल्ली) में नहीं था। बहुत कम मात्रा में यह मस्तिष्क में मौजूद पाया गया, जिससे पता चलता है कि यह अणु रक्त मस्तिष्क बाधा पार करने में सक्षम हो सकता है। लगभग 10 घंटे में यह रक्त संचार से बाहर निकल गया।

मधुमेह के मरीज में अग्नाशय के बीटा सैल्स से कम होता है इंसुलिन का स्राव
  मधुमेह के मरीज में ब्लड ग्लूकोज लेवल के अनुसार अग्नाशय के बीटा सैल्स से इंसुलिन का स्राव कम हो जाता है। इंसुलिन के स्राव से कई जटिल जैव रासायनिक प्रक्रियाएं होती हैं। ऐसी ही एक प्रक्रिया में जीएलपी1आर. नामक प्रोटीन संरचनाएं शामिल होती हैं, जो कोशिकाओं में मौजूद होती हैं। खाने के बाद स्रावित जीएलपी1 नामक हार्माेनल अणु जीएलपी1 से जुड़ता है और इंसुलिन का स्राव शुरू करता है। एक्सैनाटाइड और लिराग्लूटाइड जैसी दवाएं जीएलपी1 को मिमिक करती हैं और जीएलपी1आर. से जुड़कर इंसुलिन का स्राव शुरू करती हैं। इन दवाओं का विकल्प तैयार करने के लिए शोध करने वाली टीम ने पहले कम्प्यूटर सिमुलेशन से विभिन्न छोटे अणु की स्क्रीङ्क्षनग की, जो जीएलपी1आर से जुड़ सकते हैं। पीके2, पीके3, और पीके4 में जीएलपी1आर. से जुडऩे की अच्छी क्षमता पाई गई। इसके बाद शोधकत्र्ताओं ने पीके2 को चुना, क्योंकि यह सॉल्वैंट्स में बेहतर घुलता है। आगामी परीक्षण के लिए शोधकत्र्ताओं ने लैब में पीके2 सिंथेसाइज (संश्लेषण) किया।

चूहों को दी गई खुराक
पीके2 के जैविक प्रभावों के परीक्षण के मकसद से शोधकर्ताओं ने प्रयोग में शामिल चूहों को मुंह से इसकी खुराक दी और ग्लूकोज लेवल और इंसुलिन के स्राव का माप किया। कंट्रोल ग्रुप की तुलना में पीके2 से इलाज किए गए चूहों में सीरम इंसुलिन का स्तर 6 गुना बढ़ गया। इस निष्कर्ष से मधुमेह के मरीजों को सस्ती खाने की दवा मिलने की उम्मीद जगी है।

इस टीम ने किया शोध
शोध प्रमुख आई.आई.टी. मंडी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसिज के एसोसिएट प्रोफैसर डा. प्रोसेनजीत मंडल, सहयोगी प्रोफैसर सुब्रत घोष स्कूल ऑफ बेसिक साइंसिज आई.आई.टी. मंडी, डा. सुनील कुमार, आई.सी.ए.आर.-आई.ए.एस.आर.आई. पूसा नई दिल्ली, डा. बुधेश्वर देहुरी आई.सी.एम.आर.-आर.एम.आर.सी. भुवनेश्वर, डा. ख्याति गिरधर, शिल्पा ठाकुर, डा. अभिनव चौबे, डा. पंकज गौर, सुरभि डोगरा, बिदिशा विश्वास आई.आई.टी. मंडी और डा. दुर्गेश कुमार द्विवेदी क्षेत्रीय आयुर्वैदिक अनुसंधान संस्थान (आर.ए.आर.आई.) ग्वालियर) शामिल हैं।

आई.आई.टी. मंडी  एसोसिएट प्रोफैसर डा. प्रोसेनजीत मंडल का कहना है कि डयबिटीज के इलाज के लिए वर्तमान में एक्सैनाटाइड और लिराग्लूटाइड जैसी दवाएं सुई से दी जाती हैं और वे महंगी और अस्थिर होती हैं। हमारा लक्ष्य सरल दवाइयां ढूंढना है, जो टाइप-1 और टाइप-2 दोनों तरह के मधुमेह के उपचार के लिए स्थिर, सस्ती और असरदार हों। पीके2 इंसुलिन का स्राव बढ़ाने से बढ़कर बीटा सैल का नुक्सान कम करने और यहां तक कि सुधार करने में भी सक्षम पाया गया। बीटा सैल इंसुलिन बनाने के लिए आवश्यक है, इसलिए पीके2 टाइप-1 और टाइप-2 दोनों तरह के मधुमेह में प्रभावी होगा।

 

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