कोटरोपी हादसे के बाद CM के गृह जिला सराज बागला में लोग डर के साए में जीने को मजबूर

Edited By Ekta, Updated: 07 Aug, 2018 11:29 AM

kotropi accident

एक साल गुजर गया लेकिन इनके हालात नहीं बदले। इनको इतना बताया गया कि यहां खतरा है यहां से चले जाओ लेकिन कहां जाओ, इसका उत्तर किसी के पास नहीं। बरसात से बचने को दी तिरपाल भी ऐसी कि एक आदमी को जाग कर पानी निकालते रहना पड़ता है। बच्चों के साथ रह रहे उनके...

कोटरोपी (मंडी): एक साल गुजर गया लेकिन इनके हालात नहीं बदले। इनको इतना बताया गया कि यहां खतरा है यहां से चले जाओ लेकिन कहां जाओ, इसका उत्तर किसी के पास नहीं। बरसात से बचने को दी तिरपाल भी ऐसी कि एक आदमी को जाग कर पानी निकालते रहना पड़ता है। बच्चों के साथ रह रहे उनके माता-पिता बरसात में राम-राम करके रातें गुजार रहे हैं। यह हालत कोटरोपी से ऊपर बसे कुछ गांवों की है। याद रहे कि पिछले वर्ष 12 अगस्त को कोटरोपी में पहाड़ी दरकने से 2 बसें बह गई थी। एस.डी.एम. पधर आशीष शर्मा के अनुसार हादसे में 48 लोगों की मौत हुई थी जिसमें 45 शव बरामद कर लिए गए थे।

सराज बागला मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह जिला का इलाका है। यहां के लोग सरकार और प्रशासन से ज्यादा ऊपर वाले के रहम पर समय गुजार रहे हैं। द्रंग विधानसभा का यह क्षेत्र काफी समय तक कांग्रेस के दिग्गज नेता कौल सिंह के नेतृत्व में रहा। कौल सिंह ठाकुर यहां 8 बार विधायक और 4 बार मंत्री रहे हैं। स्कूल, राशन डिपो तथा डिस्पैंसरी यहां से 3 किलोमीटर दूर है। बाकी समस्याओं की तो बात न ही करो। बड़े-बड़े नेताओं को बड़े-बड़े पदों पर बैठाने वाली यहां की जनता आज भी डर कर जीने को मजबूर है। 

लोगों का कहान है कि एक साल हो गया, बरसात गई बात गई। एक साल बाद भी यहां के हालात बदले नहीं हैं। अपनी टूटी-फूटी तिरपाल दिखाती हुई ये महिलाएं कहती हैं कि खुद देख लो साहब ऐसे हैं हमारे इंतजाम। क्या कोई यहां आपका हाल जानने नहीं आया? प्रश्न पर एक-दूसरे का मुंह देखती ये महिलाएं कहती हैं कि यहां कौन आएगा। गांव के ही दीनानाथ कहते हैं कि पिछले साल कोटरोपी हादसे के बाद यहां सिर्फ भू-वैज्ञानिकों की टीम आई थी। उन्होंने सिर्फ इतना कहा था कि यहां खतरा है और चल दिए। साल हो गया खतरा फिर बढ़ गया। 

बरठवाण में पड़ी डेढ़ फुट की दरार
सराज बाघला निवासी दीनानाथ बताते हैं कि एक और डेढ़ फुट की दरार बरठवाण में पड़ चुकी है। यहां घरों में दरारें आ चुकी हैं। वहीं इस दरार के पास एक पेड़ है जिस कारण भू स्खलन होने से रोक रखा है। अगर यहां जमीन खिसकी तो कोटरोपी, बड़वाल और पंदलाही क्षेत्र में भारी तबाही होगी। गांव की ही प्रकाशो देवी का कहना है कि उसके बच्चे इस बड़ी दरार के पास से रोज स्कूल के लिए गुजरते हैं। सराज बाघला के ही एक बुजुर्ग लालमन कहते हैं कि 1950 के दशक में गुम्मा से लेकर बरठवाण, गवाण, सराज बाघला, बधाला, कालूबागला, क्लोण, सरवाहण से होकर हिमरीगंगा, कत्यूर व हूल्लू तक कई किलोमीटर तक दरार आई थी जो अब बंद हो गई है लेकिन बरठवाण में जमीन में आई लम्बी दरार आज भी मौजूद है। यहां पहाड़ खिसकने की घटनाएं होती रही हैं लेकिन अब समय बदल चुका है। खतरा है तो लोगों की व्यवस्था भी करनी चाहिए। सिर्फ खतरा है, यहां से चले जाओ बोलकर समस्या का हल नहीं होगा। 

प्रभावितों को पूरी सुविधाएं नहीं, खुले में ही शौच करने को हैं मजबूर
सराज बागला गांव की ही एक महिला संती देवी कहती हैं कि यहां सूचना तंत्र लगा दिए लेकिन हमें फोन तक चलाने नहीं आते तो किस काम के सूचना तंत्र। प्रकाशो देवी कहती हैं कि राशन का डिपो 3 किलोमीटर दूर है, इतनी ही दूर स्कूल व डिस्पैंसरी है। यहां न रास्ते बनाए गए हैं और न ही स्वास्थ्य सुविधा के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र दिया गया है। वहीं लालमन का कहना है कि लाइट तक नहीं है अगर भगवान हमें भागने का ही समय दे तो अंधेरे में भागेंगे भी कहां? 

सामान्य जाति का होने का बहाना बनाकर नहीं दिया गैस कनैक्शन
कोटरोपी हादसे के एक प्रभावित चौबे राम आज भी हादसे का जिक्र सुनते ही हक्के-बक्के हो जाते हैं। उनका घर पिछले साल आपदा में तबाह हो गया था। वह कुछ दिन यहां-वहां रहने के बाद अब उरला में रह रहे हैं। चौबे राम का कहना है कि सामान्य जाति का होने का बहाना बनाकर गैस कनैक्शन देने से इंकार किया जा रहा है। एक कमरा है और शौच के लिए पूरे परिवार को जंगल में जाना पड़ता है। वहीं अन्य प्रभावित एक 9वीं कक्षा के छात्र संदीप ने कहा कि प्रशासन के लिए यह सोचने की बात है। संदीप कहता है कि हमें स्कूल में सिखाया जाता है कि स्वच्छता रखो लेकिन हमें यहां बिना शौचालय के शौच आदि खुले में जाना पड़ता है। उसका कहना है कि मजबूरी है क्या करें। 

जमीन के वायदे किए लेकिन अब तक आया चेतावनी भरा पत्र
सराज बागला की संती देवी कहती हैं कि गत वर्ष कुछ लोग यहां आए थे और उन्होंने खतरा बताकर निकलने को कहा लेकिन उसके बाद फिर कोई नहीं आया। सड़क के निचले गांवों में सब कुछ मिल गया है लेकिन हमें केवल प्लास्टिक के तिरपाल थमाए और भगवान के भरोसे छोड़ दिया। संती देवी कहती हैं कि पिछले साल आपदा के बाद 3 बिस्वा जमीन देने का आश्वासन दिया गया था लेकिन अभी तक यहां से पहले सिर्फ निकलने की चेतावनी भरा पत्र ही आया है। बुजुर्ग हरदेव कहते हैं कि मैं बीमार हूं। मैं कुछ नहीं बोलूंगा तब भी किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ता है तो बोलकर क्या फायदा? हालांकि तहसीलदार द्वारा सराज बागला, जगेहड़ बड़वाहण तथा पंदलाही आदि गांवों को चेतावनी भरा पत्र सौंपा गया है, जिसमें उन्हें खतरा होने की स्थिति में किसी सुरक्षित स्थान पर चले जाने के लिए कहा गया है लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि जब उन नम्बरों पर फोन किया गया तो किसी ने भी नहीं उठाया जबकि उरला में पटवार वृत्त उरला द्वारा दिए गए 7 दिन के भीतर कमरे से निकलने वाले पत्र में तारीख तो नहीं लिखी गई है लेकिन यह जून महीने के अंत में दिया गया लगता है। 

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