धरी रह गई तैयारियां, चुनाव आगे खिसके

Edited By Updated: 10 May, 2017 09:55 AM

keep sticking has been preparations election moved forward

पॉलिटिकल क्लास के चौतरफा दबाव के आगे आखिरकार राज्य निर्वाचन आयोग भी झुक गया है।

शिमला: पॉलिटिकल क्लास के चौतरफा दबाव के आगे आखिरकार राज्य निर्वाचन आयोग भी झुक गया है। चुनाव शैड्यूल जारी करने की बजाय बड़ी ही चतुराई से इलैक्टरोल रोल्स को लेकर नए आदेश जारी किए गए हैं। इस आदेश के जारी होते ही नगर निगम शिमला के चुनाव आगे सरक गए हैं। निगम का मौजूदा कार्यकाल 5 जून को पूरा हो रहा है। अब ये चुनाव समय पर नहीं होंगे। कब होंगे, अभी तय नहीं है लेकिन वोटर लिस्ट को दुरुस्त करने के लिए 23 जून तक का वक्त तो मिल ही गया है। यानी चुनाव 23 जून से पहले नहीं हो पाएंगे। सूत्रों के अनुसार अब सरकार चुनाव के विकल्पों पर गंभीरता से विचार कर रही है। अब निगम में प्रशासक बिठाने के पूरे आसार नजर आ रहे हैं। निगम के इतिहास में पहली बार ऐसा होगा जबकि चुनाव निर्धारित समय के भीतर नहीं होंगे। राज्य निर्वाचन आयोग के आयुक्त पी. मित्रा ने रिटर्निंग ऑफिसर एवं शिमला के डी.सी. रोहन ठाकुर की ताजा रिपोर्ट को इसका आधार बनाया है। इसके अलावा राजनीतिक दलों, मेयर, पार्षदों की शिकायतों का भी उन्होंने कड़ा संज्ञान लिया। 


आयोग को भी अधिसूचना जारी करने में आ रही अड़चनें
लिस्ट के गड़बड़झाले के बाद से सरकार कई विकल्पों पर विचार कर रही है। राज्य चुनाव आयोग को भी अधिसूचना जारी करने में अड़चनें आ रही हैं। नगर निगम के हाऊस में पार्षदों ने राजनीतिक विचारधारों से नई लकीर खींची। हाऊस ने विशेष प्रस्ताव पास कर आयोग और सरकार को वोटर लिस्ट की तमाम खामियों को दुरुस्त करने की बात कही। हाऊस का मतलब सीधे-सीधे वॉयस ऑफ शिमला है, क्योंकि पार्षदों को शिमला की जनता ने चुना है। अगर वे राजनीतिक सीमाओं को लांघ  कर कोई सिफारिश कर रहे हैं तो इसके कहीं गहरे मायने हैं। मौजूदा पार्षद चुनाव चाहते हैं लेकिन इससे पहले लोगों के वोट बनने के लोकतांत्रिक अधिकार को भी सुनिश्चित करना चाह रहे हैं। 6 ऐसे वर्तमान पार्षद हैं जिनके नाम वोटर लिस्ट से गायब हैं। कसु म्पटी की पार्षद का वोट करीब 15 किलोमीटर दूर टुटू में निकला है। शिमला के मेयर संजय चौहान इसकी पुष्टि कर रहे हैं। मौजूदा वोटर लिस्ट को सही मानें तो मृतक भी मतदान करने के हकदार होंगे। 


प्रशासन ने मृतकों को भी वोट देने का नया ‘अधिकार’ दिया
प्रशासन ने मृतकों को भी वोट देने का नया ‘अधिकार’ दे दिया है। इससे गंभीर चूक और क्या हो सकती है? इससे स्पष्ट है कि बूथ लेवल ऑफिसर बूथों में गए ही नहीं। जिन वार्डों में ऐसा हुआ है राज्य निर्वाचन आयोग से मांग उठ रही है कि वह प्रशासिक अधिकारियों और बी.एल.ओ. के ऊपर कड़ी से कड़ी कार्रवाई करें क्योंकि इससे पूरी चुनावी प्रक्रिया सवालों के घेरे में आ गई है। अगर कोई व्यक्ति कोर्ट तक पहुंचा तो प्रशासन को जवाब देना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में एक और बड़ा सवाल भी उठ रहा है। वह यह है कि क्या प्रशासन आखिर किसके प्रति जवाबदेह है? प्रशासन के आला अधिकारी क्या कर रहे हैं? पहले राजनीतिक दलों ने वोटर लिस्ट पर सवाल उठाए तब कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसके बाद निगम के हाऊस ने ही प्रस्ताव पारित कर दिया है। इस प्रस्ताव के बाद से सरकार भी हरकत में आई है। सूत्रों के अनुसार सरकार चुनाव को आगे खिसकाना चाहती थी। इसके लिए कांग्रेस पार्टी ने पूरी पृष्ठभूमि तैयार की। हालांकि शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा कहते रहे हैं कि चुनाव वक्त पर होंगे। अब सरकार के पास कई विकल्प हैं। पहला कि वह 2 महीने के बाद चुनाव करवाए। इस अवधि में किसी प्रशासनिक अधिकारी की नियुक्ति करें। तब तक वोटर लिस्ट को दुरुस्त करने का भी मौका मिल जाएगा। 


विधानसभा और निगम के चुनाव एक साथ करवाए जाएं
दूसरा विधानसभा और निगम के चुनाव एक साथ करवाए जाएं। तीसरा विकल्प कुछ समय के भीतर चुनाव करवाएं। इसके लिए कानूनविदों से सलाह-मशविरा ली जा रही है। सूत्रों का कहना है कि राज्य निर्वाचन आयोग भी इसी दिशा में कार्य कर रहा है। अगर वोटर लिस्ट का विवाद बड़े पैमाने पर सामने नहीं आता तो आयोग चुनाव की अधिसूचना जारी कर सकता था। सरकार के लिए भी यह घड़ी किसी परीक्षा से कम नहीं है। सभी दल चुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार बैठे थे लेकिन उनकी तैयारियां धरी की धरी रह गई हैं। ये केवल अधिसूचना का इंतजार कर रहे थे। अब इनके पूरे के पूरे समीकरण ही बदल गए हैं। सरकार पार्टी सिंबल पर पहले ही चुनाव नहीं करवा रही है। अगर चुनाव टल गए तो भाजपा इसे सरकार के खिलाफ बड़ा मुूद्दा बना सकती है। निगम के चुनाव विधानसभा के साथ ही करवाए तो फिर कांग्रेस का सूपड़ा साफ होने का खतरा रहेगा। कुल मिलाकर सरकार के लिए कोई भी रास्ता निकालना इतना सरल और आसान नहीं है। इधर कुआं और उधर खाई जैसी स्थिति बनी हुई है।


चुनाव बाद में पहले लोगों को मिलें लोकतांत्रिक अधिकार
शिमला के मेयर संजय चौहान के अनुसार पहले शहर के लोगों को वोट का लोकतांत्रिक अधिकार मिलना चाहिए और उसके बाद चुनाव हों। चुनाव जल्द करवाने पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है लेकिन जब तक वोटर लिस्ट दुरुस्त नहीं होगी, तब तक चुनाव न करवाए जाएं। उन्होंने कहा कि 6 पार्षदों के नाम वोटर लिस्ट से पूरी तरह से गायब हैं। मरे हुए लोगों के नाम भी लिस्ट में हैं। उन्होंने कहा कि निगम के हाऊस में इस बारे प्रस्ताव पारित हुआ है, जिसमें सभी दलों के पार्षदों ने एक जैसी राय व्यक्त की है। मेयर ने कहा कि जहां तक पार्टी सिंबल पर चुनाव करवाने का सवाल है तो इस बारे में कांग्रेस और भाजपा दोनों की मिलीभगत है। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा नहीं है तो फिर निगम निर्वाचन एक्ट में संशोधन के वक्त भाजपा विधायकों को इसका विरोध करना चाहिए था। चौहान ने कहा कि पार्टी सिंबल पर चुनाव इसलिए नहीं करवाया क्योंकि शिमला में लैफ्ट पार्टी का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। इसे रोकने के लिए कांग्रेस और भाजपा ने कॉमन अंडरस्टैंडिंग डिवैल्प की है। उन्होंने कहा कि 5 साल पहले चुनाव पार्टी सिंबल पर हुए लेकिन जब लोगों की राजनीतिक चेतना बढ़ी तो सरकार ने पुराना फैसला बदल दिया। उन्होंने कहा कि चुनाव में दोनों ही पार्टियों को लोग करारा जवाब देंंगे। 

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