Edited By Vijay, Updated: 25 Aug, 2024 01:11 PM
हिमाचल प्रदेश में गुग्गा जाहरवीर की गाथा का गायन श्रावण पूर्णिमा से लेकर गुग्गा अष्टमी तक होता है और नवमी को मेले का आयोजन होता है। हमीरपुर जिला के बारी गांव में कोहलू सिद्ध और गुग्गा की मंडली इकट्ठी चलती है जोकि घर-घर जाकर गुग्गा जाहरवीर की गाथाएं...
हमीरपुर (राजीव): हिमाचल प्रदेश में गुग्गा जाहरवीर की गाथा का गायन श्रावण पूर्णिमा से लेकर गुग्गा अष्टमी तक होता है और नवमी को मेले का आयोजन होता है। हमीरपुर जिला के बारी गांव में कोहलू सिद्ध और गुग्गा की मंडली इकट्ठी चलती है जोकि घर-घर जाकर गुग्गा जाहरवीर की गाथाएं सुनाती है। गुग्गा जाहरवीर की गाथाएं श्रोताओं को भाव विभोर कर देती हैं। गुग्गा जी के जन्म, चमत्कारों, जीवन की विशिष्ट घटनाओं पर आधारित इन गाथाओं को सुनने के बाद भक्त गुग्गा जी की पूजा-अर्चना कर ऋतुफल, अन्न, दानराशि व मिष्ठान अर्पित करते हैं।
सहस्त्राब्दियों से जीवित हैं गाथाएं
गुग्गा गाथा का प्रारंभ सृष्टि के आरंभ से मिलता है। गुग्गा सिद्ध नाथ परंपरा के राजपूत शासक हैं, जिनके शौर्य की गाथाएं जनमानस में सहस्त्राब्दियों से जीवित हैं। मंडली में शामिल कोहलू सिद्ध के पुजारी व चेला रघुबीर सिंह चौहान, सुरेश, इंद्र सहित अन्य वजंत्रियो ने बताया कि चाहड़ गांव में पूर्व उपप्रधान के घर पर शनिवार की कथा में गुरु गोरखनाथ मारू देश में मां बाछला को गुगल फल दे दिया और इससे गुग्गा का जन्म हुआ। उन्होंने बताया कि रविवार को मंडली का अंतिम डेरा कोहलवी में होगा, इसके बाद सोमवार को मंडली गुग्गा व कोहलू सिद्ध में बैठ जाएगी। उन्होंने बताया कि मंडली का विशेष महत्व होता है। इसमें सभी देवी-देवताओं का हर घर में प्रवास होता है। उन्होंने बताया कि देवता सभी के घरों में जाकर परिवार के सदस्यों को सुख-शांति का आशीर्वाद देते हैं।
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