Edited By Ekta, Updated: 29 Nov, 2018 12:58 PM
अपने रचयित व गाए पहाड़ी गीतों को हर जुबां तक लाने वाले स्व. प्रताप चंद शर्मा को जीते जी तो सरकारी स्तर पर वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसके वह हकदार थे पर शर्मिंदगी इस बात की है कि उनके इस दुनिया से जाने के बाद भी कुछ ऐसा ही नजर आया। बुधवार को उनकी...
पालमपुर (राकेश पत्थरिया): अपने रचयित व गाए पहाड़ी गीतों को हर जुबां तक लाने वाले स्व. प्रताप चंद शर्मा को जीते जी तो सरकारी स्तर पर वह सम्मान नहीं मिल पाया जिसके वह हकदार थे पर शर्मिंदगी इस बात की है कि उनके इस दुनिया से जाने के बाद भी कुछ ऐसा ही नजर आया। बुधवार को उनकी अंत्येष्टि में प्रशासन की तरफ से कोई भी अधिकारी नहीं पहुंचा। लोक संपर्क विभाग में कई साल तक अपनी सेवाएं देने वाले प्रताप चंद शर्मा को विभाग की तरफ से पैंशन तक नसीब नहीं हो पाई। हालांकि विभाग का इसके पीछे तर्क है कि वह नियमित कर्मचारी नहीं थे। हालांकि उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा गया है। उनके पुत्र शिव राम शर्मा ने बताया कि हमें इस बात का मलाल है कि प्रदेश को गीतों के रूप में अमूल्य विरासत सौंपने वाले प्रताप चंद शर्मा के जाने के बाद भी सरकारी व प्रशासनिक स्तर पर उपेक्षा ही झेलनी पड़ी। उनकी अंत्येष्टि पर प्रशासन की तरफ से कोई भी नहीं पहुंचा। हालांकि हजारों लोगों ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी।
एक समय ऐसा था कि उनके गीतों पर झूमते थे लोग
1970-80 का दशक ऐसा दशक था जब लोगों को रेडियो पर देहरा के नलेटी गांव के प्रताप चंद शर्मा उर्फ जग्गा के गीतों का इंतजार रहता था। इस दौरान हर आदमी की जुबां पर उनके गीत बस गए थे। बाद में कई गायकों ने उनके लिखे गीत गाए और प्रसिद्धि हासिल की। वह अकेले ऐसे कलाकार थे जिनके लिखे व गाए गीत जैसे ठंडी-ठंडी हवा झुलदी व दो नारां वे लोको लश्कदियां तलवारां आदि लोकगीतों की तरह प्रचलित हो गए। हिमाचल का लोकप्रिय वाद्ययंत्र ‘इकतारा’ जिसे स्थानीय भाषा में ‘धंतारु‘ कहते हैं, के साथ लोकगीत प्रस्तुत करना प्रताप चंद शर्मा की पहचान रही है।
1971 की लड़ाई के दौरान अक्सर बजाए जाते थे उनके गीत
उन्होंने ठंडी-ठंडी हवा झुलदी, झुलदे चीलां दे डालू, दो नारां वे लोको लश्कदियां तलवारां, जे तू चला नेफा नौकरी, मेरे गले दे हारे लैंदा ओयां, नाले पार गीतां जो जाणां विच विहाए नचणा गाणा चा नाचे दा, असां क्या गलाया तां तिजो गुस्सा आया व कमला विमला जुड़वां भैणां दोहे इकयी नुहारी जी सहित कई गीत लिखे और गाए जो लोगों की जुबां पर आ गए। इसके अलावा उन्होंने कई भजन व देश प्रेम के गीत भी लिखे और गाए जैसे मेरा हिमाचल देश प्यारा जी मेरा हिमाचल प्यारा हो। 1971 की लड़ाई के दौरान अक्सर उनके गीत बजाए जाते थे।
अकादमी ने दी श्रद्धांजलि
वहीं प्रदेश कला संस्कृति भाषा अकादमी ने उन्हें बुधवार को भावभीनी श्रद्धांजलि दी। अकादमी के सचिव डा. कर्म सिंह ने अपने शोक संदेश में कहा कि ‘ठंडी-ठंडी हवा झुलदी, झुलदे चीलां दे डालू, जीणा कांगड़े दा’ इस प्रसिद्ध लोकगीत के लेखक और गायक प्रताप चंद शर्मा ने ग्रामीण, जिला, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर लोक गायन के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई।
पैंशन न मिलने का मलाल जरूर था
जनवरी, 2014 में पहाड़ी लोक गायक प्रताप चंद शर्मा जी ने पंजाब केसरी को एक इंटरव्यू दिया था। इस दौरान उनकी जुबान पर यह शिकायत जरूर थी कि उन्हें सरकारी स्तर पर सम्मान नहीं मिला। वह कह रहे थे कि मैंने लोक संपर्क विभाग, आकाशवाणी और दूरदर्शन के लिए कई गीत रचे और गाए पर विभाग की तरफ से पैंशन नहीं मिली। इस बात का मलाल जरूर था उनको। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि लोगों से उन्हें बहुत प्यार मिला।
स्मृति में सम्मान देगी अखिल भारतीय सृजन सरिता परिषद
लोक संस्कृति के पुरोधा प्रताप चंद शर्मा जी की स्मृति में अखिल भारतीय सृजन सरिता परिषद ने उनके नाम से ‘श्री प्रताप चंद शर्मा स्मृति लोक संस्कृति सम्मान’ देने का फैसला लिया है। लोक संस्कृति सहेजने में उनका अद्वितीय योगदान रहा है। संस्था के महासचिव विजय कुमार पुरी ने बताया कि उनके विशिष्ट योगदान के लिए उनकी स्मृति को आगामी पीढिय़ों के लिए सहेजना बहुत आवश्यक है।