ढोल-नगाड़ों की थाप पर निकली मंगलेश्वर महाराज और परशुराम भगवान की रथयात्रा

Edited By Vijay, Updated: 09 Nov, 2019 06:29 PM

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आदि काल से हिमाचल प्रदेश साधु-संतों और देवताओं की तपोस्थली रहा है और यही कारण है कि आज भी प्रदेश के कोने-कोने में पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। जिला शिमला के उपमंडल ठियोग से 49 किलोमीटर दूर बलग को पांडवों की नगरी कहा जाता है, जहां मंगलेश्वर महाराज का...

ठियोग (सुरेश): आदि काल से हिमाचल प्रदेश साधु-संतों और देवताओं की तपोस्थली रहा है और यही कारण है कि आज भी प्रदेश के कोने-कोने में पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। जिला शिमला के उपमंडल ठियोग से 49 किलोमीटर दूर बलग को पांडवों की नगरी कहा जाता है, जहां मंगलेश्वर महाराज का मंदिर है। यहां हर साल देवता जी महाराज की पालकी को शोभायमान तरीके से सजाकर दूसरे मंदिर में रखा जाता है। इस दौरान बलग के स्थानीय किरदार भगवान परशुराम और मंगलेश्वर महाराज को पालकी में सुसज्जित करके पुराने वाद्ययंत्रों की धुनों ओर विशेष मंत्रो द्वारा ढोल-नगाड़ों की थाप पर रथयात्रा निकाली जाती है।
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इस दौरान सबसे आगे साधु और कारदार पालकी लेकर मंत्रों का जाप करते हुए यात्रा करते हैं। रथयात्रा के आगे गांव की महिलाएं विशेष रूप से शुद्ध जल पंचगव्य से रास्ते को शुद्ध करती हुईं दूसरे मन्दिर की ओर जाती हैं और उनके पीछे मुख्य रूप से राजपरिवार के वंशज और देवता के कारदार पालकी के साथ चलते है। घंटियों की धुनों और मंत्रोच्चारण के दौरान स्थानीय लोग महाराज के जयकारों से यात्रा को सफल बनाते हैं।
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देवता जी की पालकी को 5 दिनों तक पांडवों द्वारा निर्मित दूसरे मन्दिर में रखा जाता हैं जहां पर दिन-रात कारदार बारी-बारी से अपनी ड्यूटी देते हैं। इस दौरान मन्दिर प्रांगण में जागरण का आयोजन किया जाता है और रात भर देवता की 4 प्रहर पूजा होती है। इस दिन से यहां पर देवता जी का 4 दिन तक चलने वाला जिला स्तरीय मेला शुरू होता है जिसमें कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
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देव कार्य से जुड़े इस कार्यक्रम की जानकारी देते हुए देवता जी के गुर जानकीदास शर्मा ने कहा कि यह पर्व के तौर पर मनाया जाता है और इसे हरि प्रोमोदनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। देवताओं के चार माह के शयन के बाद जागने पर देवता की यात्रा निकाली जाती है और हर साल देवता जी को स्नान के लिए दूसरे मन्दिर में लाया जाता है और 4 दिन के मेले के बाद इसका समापन होता है। मेले की जानकारी देते हुए बलग के प्रधान कंवर हरनाम सिंह ने कहा कि देवता जी के पर्व को मेले के रूप में भी मनाया जाता है और 4 दिन तक यहां कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें सभी को शुद्धि का विशेष ध्यान रखना पड़ता है।
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बलग के बारे में मन्दिर के कारदार पूर्ण चंद शर्मा ने बताया कि बलग का नाम राजा बलि के नाम से पड़ा है। यहां पर बलि ने अपना 100वां यज्ञ किया और भगवान परशुराम ने भी यहां तप किया है, जिनके नाम से आज तक यहां यह यात्रा निकाली जाती है। उन्होंने कहा कि मंदिर के अंदर 4 स्तम्भ हैं जिनके अंदर 4 दिन तक बैठकर लोगों की दिक्कतों और आपसी झगड़ों का निपटारा किया जाता है। बुरी शक्तियों से निपटने का आशीर्वाद मांगा जाता है। इन 4 दिनों में विशेष पूजा और मेले के आयोजन के बाद देवता जी अपने मन्दिर वापस जाते हैं और ये पर्व इस तरह पूरा होता है।

बता दें कि 4 दिन तक जहां देवता जी को रखा जाता है उस मन्दिर का निर्माण पांडवों ने किया था और मन्दिर दक्षिण शैली से बना है जो 5 हजार वर्ष पूर्व का कहा जाता है। इस मंदिर के आसपास बहुत सारी पौराणिक धरोहरें हैं, जिनकी अपनी अनोखी कथाएं जुड़ी हुई हैं। 4 दिन तक इलाके के लोग यहां इकट्ठा होते हैं और शिमला समेत दूसरे जिलों से भी लोग यहां मेला देखने आते हैं। माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से देवता जी का आशीर्वाद लेता है उसकी मनोकामनाएं मंगलेश्वर महाराज जरूर पूरी करते हैं।

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