कांग्रेस को फिलहाल मिली बड़ी राहत, ठंडा पड़ा चुनावी एजैंडा

Edited By Updated: 11 May, 2017 09:25 AM

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राज्य निर्वाचन आयोग के एक झटके ने राजनीतिक दलों के चुनावी एजैंडे को ठंडा कर दिया है।

शिमला: राज्य निर्वाचन आयोग के एक झटके ने राजनीतिक दलों के चुनावी एजैंडे को ठंडा कर दिया है। नगर निगम के रण के लिए सियासी सेनाओं को अब बिना लड़े ही अस्त्र-शस्त्रों के साथ ‘सरैंडर’ करना पड़ा है। इनके तमाम रणनीतिकार रक्षात्मक मुद्राओं में आ गए हैं। अपने प्रतिबद्ध पार्टी कार्यकत्र्ताओं को चुनावी मोर्चे पर झोंकने वाले भी हैरान-परेशान हैं। पहली बार इस तरह के हालात बन गए हैं कि चुनी हुई स्थानीय ‘सरकार’ का कार्यकाल बढ़ाने की बजाय प्रशासक तैनात करना पड़ेगा। हाईकोर्ट के दखल से निगम का कार्यकाल पहले एक मर्तबा एक साल के लिए बढ़ा था, लेकिन प्रशासक की सरकार ने कभी तैनाती नहीं की। प्रधानमंत्री मोदी की लहर और बदलवा की भगवा बयार के डर से सरकार बैकफुट पर है। सरकार ने नहीं चाहा कि चुनाव वक्त पर हों। हर बात पर संशय और सस्पैंस बना रहा। पहले पार्टी सिंबल पर सियासी संग्राम छिड़ा। कांग्रेस के एक धड़े ने सरकार के सामने अपने पक्ष की पैरवी की। 


वोटर लिस्ट पर काफी समय से चल रहा था विवाद
उन्होंने पार्टी सिंबल पर चुनाव करवाने की मांग की थी। सरकार ने यह मांग मंजूर नहीं की। विचारधारा को दरकिनार कर सत्ताधारी दल की दलीलों को खारिज कर दिया। वोटर लिस्ट पर तो काफी समय से विवाद चल रहा था। इस पर सबसे पहले सवाल भाजपा ने उठाए थे। उसके बाद मुद्दे को वामपंथियों और कांग्रेस ने लपका। भाजपा ने वार्डों से गायब मतदाओं के मुद्दे पर राज्य निर्वाचन आयोग के पास दस्तक दी थी। बाद में कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू की टीम भी आयोग पहुंची थी। इसमें कई पूर्व मेयर शामिल थे। उन्होंने वोटर लिस्ट में व्याप्त खामियों को दूर करने की बात कही। ‘हाथ’ को भले ही ‘अपनों’ का ही साथ नहीं मिल रहा था लेकिन पार्टी ने यह जतलाने की कोशिश जरूर की कि वह भी वोटर के हितों के साथ सरोकार रखती हैं। जहां तक चुनावी तैयारियों का सवाल है, भाजपा और वामपंथी इसमें सबसे आगे रहे। 


चुनाव के लिए इन रणनीतिकारों ने पूरा खाका खींचा
भाजपा को पक्का भरोसा था कि चुनाव समय पर होंगे। इसके लिए पार्टी ने चुनाव प्रभारी और सहप्रभारी तैनात किए। पूर्व मंत्री डा. राजीव बिंदल को प्रभारी और महेंद्र धर्माणी, त्रिलोक जम्बाल को सह प्रभारी नियुक्ति किया। धर्माणी पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता और जम्वाल प्रदेश सचिव भी हैं। बाद में इन्होंने वार्डों में भी प्रभारी और सह प्रभारी की टीम तैनात कर दी थी। चुनाव के लिए इन रणनीतिकारों ने पूरा खाका खींचा। इस पर अमल करना भी आरंभ किया। शिमला में रिज मैदान पर रैली इसी रणनीति का हिस्सा थी। इस रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली की एम.सी.डी. की जीत की ताजा-ताजा हवा बहने का भी हवाला दिया था। इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल तो ऊंचा हुआ ही, शिमला में निगम चुनाव के लिए बड़ा सकारात्मक माहौल तैयार हो गया। रैली से पूर्व कई दिनों तक भाजपा के नेताओं ने वार्डों में झाड़ू लगाया। इसके माध्यम से भी कार्यकर्ताओं और लोगों के साथ सीधा संवाद स्थापित किया गया। पार्टी पूरी तरह से चुनावी मोड़ पर आ गई तो इससे सरकार के होश फाख्ता हो गए। कांग्रेस को मानों सांप सूंघ गया हो। 


कांग्रेस बयानों से आगे वार्डों में नहीं बढ़ पाई
रैली के बाद से तय हो गया था चुनाव आगे खिसकाए जाएंगे। आधी अधूरी तैयारियों के साथ चुनावी प्रक्रियाओं को आगे बढ़ाया जा रहा था। अब सवाल यह भी उठने लगे हैं कि क्या वोटर लिस्ट में खामियां जानबूझ कर तो नहीं की गईं? इसे लेकर सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठ रहे हैं। उधर, कांग्रेस की चुनाव को लेकर कोई तैयारियां नजर नहीं आईं। पार्टी न तो कमेटियों का गठन किया और न ही शिमला के कार्यकर्ताओं के साथ अलग से बैठक बुलाई। कांग्रेस बयानों से आगे वार्डों में नहीं बढ़ पाई। न पुख्ता रणनीति तैयार की और न ही विरोधियों से मुकाबले के लिए व्यूहरचना की। कांग्रेस सरकार की हां में हां मिलाती रही। हां चुनाव आगे खिसकाने के लिए पार्टी के अध्यक्ष ने भूमिका अवश्य निभाई। अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू की मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के साथ मंगलवार को बैठक हुई थी। इसे चुनाव आगे टालने की घटना से जोड़कर देखा जा रहा है। उधर, वामपंथियों ने भी चुनाव के लिए तैयारियां मुकम्मल कर ली थीं।


वोटर लिस्ट में गड़बड़ियों के लिए सरकार और प्रशासन दोषी: सत्ती
नगर निगम के चुनाव को आगे खिसकाने को लेकर भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती ने राज्य सरकार पर निशाने साधे हैं। उन्होंने कहा कि वोटर लिस्ट में गड़बडिय़ों के लिए सरकार और इसका प्रशासन दोषी है। कांग्रेस और वामपंथियों ने मिलकर चुनाव टाले हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर से डर से ऐसा हुआ है। जबकि चुनाव में स्थानीय मुद्दे ज्यादा हावी रहते हैं। सत्ती के अनुसार लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में चुनाव समय पर होने चाहिए। किस पार्टी की हार होती है और किसकी जीत, यह मायने नहीं रखती है। हार और जीत चलती रहती है। अध्यक्ष ने कहा कि तीन दशक में निगम पर कांग्रेस का ही कब्जा रहा है। हालांकि प्रदेश में इस दरम्यान चार दफा कांग्रेस की विधानसभा चुनावों में हार हुई। कांग्रेस और इस पार्टी की सरकार चुनाव में भाजपा से इतनी घबरा गई कि चुनाव ही नहीं करवाए जा रहे हैं। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। चुनाव टालने का वोटर लिस्ट सबसे बेहतरीन बहाना है। अगर इसमें गलतियां हैं तो उसके लिए कोई दूसरा नहीं ये खुद ही जिम्मेदार हैं। जागरूक जनता यह सब देख समझ रही है। जब भी चुनाव होंगे, जनता इसका करारा जवाब देगी।

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