कैंसर भवन निर्माण पर लटकी NGT की तलवार, आम लोगों को भुगतना पड़ रहा खमियाजा

Edited By kirti, Updated: 28 Feb, 2019 11:40 AM

cancer building construction

प्रदेश के एकमात्र कैंसर अस्पताल से इन दिनों मरीजों को पी.जी.आई. चंडीगढ़ रैफर किया जा रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि अस्पताल में कोई बड़ी मशीनरी नहीं है, जिसके तहत मरीजों का सही रूप से उपचार हो पाए। ऐसे में मरीजों को भारी पैसे खर्च कर पी.जी.आई. के...

शिमला (जस्टा): प्रदेश के एकमात्र कैंसर अस्पताल से इन दिनों मरीजों को पी.जी.आई. चंडीगढ़ रैफर किया जा रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि अस्पताल में कोई बड़ी मशीनरी नहीं है, जिसके तहत मरीजों का सही रूप से उपचार हो पाए। ऐसे में मरीजों को भारी पैसे खर्च कर पी.जी.आई. के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। हद तो यह है कि कैंसर अस्पताल में एक लीनियर एक्सीलिटर मशीन स्थापित होनी थी, लेकिन उसको लेकर भी सरकार व प्रशासन द्वारा कोई सुध नहीं ली जा रही है। प्रशासन का दावा है कि यह मशीन तभी स्थापित होनी है, जब कैंसर अस्पताल में नया भवन बनेगा, लेकिन नए भवन बनाने पर एन.जी.टी. की तलवार लटकी हुई है। ऐसे में इसका खमियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है। 

प्रशासन को यहां देखना यह जरूरी है कि भवन बनने में अभी काफी समय लगना है, ऐसे में मशीन स्थापित कर देनी चाहिए। अगर कैंसर अस्पताल में जगह नहीं है तो आई.जी.एम.सी. में यह मशीन स्थापित होनी चाहिए, ताकि मरीजों का उपचार सही रूप से हो सके। कैंसर अस्पताल के पास लोक निर्माण विभाग व अस्पताल प्रशासन द्वारा भवन बनाने के लिए जगह को तो निश्चित कर दिया है, लेकिन भवन न बनने को लेकर एन.जी.टी. के नियम बड़ी बाधा बन गए हैं। यह नया भवन पुराने कैंसर अस्पताल के ठीक सामने पार्किंग की जगह पर बनना है। भवन बनाने का मामला 2012 से लेकर चला हुआ है। पहले तो प्रशासन जगह के लिए रो रहा था। जब जगह निर्धारित हुई तो फिर एन.जी.टी. ने अडंग़ा फंसा दिया, जबकि भवन बनाने व मशीनरी के लिए प्रदेश सरकार ने 45 करोड़ रुपए की धनराशि भी स्वीकृत की है। इसमें से सरकार ने 14 करोड़ रुपए की राशि तो कैंसर अस्पताल को दे दी है। 

कैंसर के उपचार में 2 दशक पीछे चल रहे एकमात्र कैंसर अस्पताल के लिए बड़ा झटका साबित हुआ है। यह मामला मुख्यमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और स्वास्थ्य सचिव के संज्ञान में भी है। सरकार ने ही मामले को एन.जी.टी. को भेजा है। अभी तक एन.जी.टी. की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला है। 1986 में बने इस कैंसर अस्पताल के भवन में पूरे प्रदेश के हजारों मरीज अपना इलाज करवाते हैं। ऐसे में अस्पताल में जगह की कमी भी मौजूदा समय में सबसे बड़ी समस्या है, इसके चलते अस्पताल के विभिन्न विभागों के लिए पर्याप्त जगह नहीं है, वहीं सबसे बड़ी परेशानी यहां आने वाले मरीजों को है।

कीमोथैरेपी के लिए करना पड़ता है 3 महीने का इंतजार

प्रदेश में प्रति वर्ष लगभग 5000 नए कैंसर के मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें से 50 प्रतिशत आई.जी.एम.सी. में पंजीकृत होते हैं। अस्पताल में यहां कीमोथैरिपी के लिए मात्र 2 मशीनें हैं, जबकि इलाज करवाने वालों की संख्या रोजाना 200 से अधिक होती है। मशीनें कम होने के कारण मरीजों को 3 महीने तक कीमोथैरेपी के लिए इंतजार करना पड़ता है। यही नहीं, इस अस्पताल में सालों से उपयोग हो रही कीमोथैरिपी मशीनों को तो कई राज्यों में कंडम कर दिया है। ऐसे में मात्र उम्मीद ही की जा सकती है कि कैंसर अस्पताल की मौजूदा दयनीय स्थिति को देखते हुए एन.जी.टी. नए भवन निर्माण की अनुमति दे।
 

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