Edited By Kuldeep, Updated: 15 Apr, 2025 01:56 PM

एम्स बिलासपुर की फीजियोलॉजी विभाग की अतिरिक्त प्रो. पूनम वर्मा ने नींद को लेकर एडवाइजरी जारी की है।
बिलासपुर (बंशीधर): एम्स बिलासपुर की फीजियोलॉजी विभाग की अतिरिक्त प्रो. पूनम वर्मा ने नींद को लेकर एडवाइजरी जारी की है। उन्होंने कहा है कि अच्छी नींद हमारे मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य का आधार है, लेकिन बदलती जीवन शैली, तनाव और डिजिटल उपकरणों के बढ़ते उपयोग के कारण लोग पर्याप्त और गुणवत्तापूर्ण नींद नहीं ले पा रहे हैं। नींद केवल आराम का समय नहीं, बल्कि शरीर और दिमाग की मुरम्मत और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया है। यदि हम नींद को प्राथमिकता नहीं देंगे तो हमारी कार्यक्षमता, स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन सभी प्रभावित होंगे। उन्होंने कहा है कि नींद मुख्य रूप से दो चरणों में बंटी होती है जिसमें नॉन रैपिड आई मूवमैंट और रैपिड आई मूवमैंट। नॉन रैपिड आई मूवमैंट नींद में तीन चरण होते हैं, जिसमें मांसपेशियां आराम करती हैं और शरीर की मुरम्मत होती है और ऊर्जा संचित होती है। यह यादाश्त, प्रतिरक्षा प्रणाली और शरीर के विकास के लिए आवश्यक है। इस दौरान हृदय गति और श्वसन धीमा हो जाता है, जिससे हृदय और रक्तचाप को स्थिर रखने में मदद मिलती है। रैपिड आई मूवमैंट नींद में आंखें तेजी से हिलती हैं और यह मस्तिष्क के लिए रीसेट बटन की तरह काम करती हैं। एक संपूर्ण नींद चक्र लगभग 90 मिनट का होता है और एक रात में ऐसे 4-6 चक्र आते हैं।
पर्याप्त नींद न लेने से बढ़ता है बीमारियों का खतरा
उन्होंने कहा है कि 6 घंटे से कम नींद लेने से कई दुष्प्रभाव हो सकते हैं। जिनमें हृदय रोग, खराब नींद से रक्तचाप बढ़ सकता है और इससे हृदय से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इसके अतिरिक्त अनियमित नींद इंसुलिन संवेदनशीलता को प्रभावित कर सकता है। इससे मधुमेह का खतरा बढ़ता है। इससे मोटापा बढ़ने की संभावना रहती है। इसके अतिरिक्त अवसाद, चिंता, एकाग्रता में कमी और चिड़चिड़ापन जैसी मानसिक समस्याएं नींद की कमी से जुड़ी होती हैं। कम नींद शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देती है, जिससे संक्रमण और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
ये हैं खराब नींद के कारण
उन्हाेंने बताया कि मोबाइल, लैपटॉप और टीवी जैसे डिजिटल उपकरणों से निकलने वाली ब्लू लाइट मेलाटोनिन हार्मोन के उत्पादन को बाधित करती है, जो नींद के लिए आवश्यक होता है। देर रात तक स्क्रीन देखने से नींद की गुणवत्ता प्रभावित होती है और नींद आने में देरी होती है। इसके अतिरिक्त कॉफी, चाय, एनर्जी ड्रिंक्स और सोडा में मौजूद कैफीन केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करता है, जिससे नींद प्रभावित होती है। सोने से 4-6 घंटे पहले कैफीन का सेवन नींद की गुणवत्ता को कम कर सकता है। उन्होंने बताया कि सोने से पहले बहुत अधिक या वसायुक्त भोजन करने से पेट भारी महसूस होता है, जिससे एसिडिटी और अपच की समस्या हो सकती है। इससे गहरी और शांतिपूर्ण नींद प्रभावित होती है। रात में देर तक जागना और सुबह देर से उठना शरीर की आंतरिक घड़ी को बाधित करता है, जिससे नींद की समस्या होती है। परीक्षा का तनाव, ऑफिस वर्कलोड, व्यक्तिगत समस्याएं और अत्यधिक चिंता नींद की गुणवत्ता को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती हैं।
इन उपायाें से आएगी अच्छी नींद
उन्होंने अच्छी नींद के लिए सुझाव जारी करते हुए कहा है कि सोने और जागने का नियमित समय तय करें। सोने से 1 घंटे पहले मोबाइल और लैपटॉप का उपयोग न करें। सोने से 4 घंटे पहले कैफीन और भारी भोजन से बचें। नींद के लिए अनुकूल वातावरण बनाएं। बिस्तर केवल सोने के लिए इस्तेमाल करें और बिस्तर पर बैठकर काम करने या मोबाइल चलाने से बचें। दिनभर में पर्याप्त शारीरिक व्यायाम करें, लेकिन सोने के 2 घंटे पहले अत्यधिक वर्कआउट करने से बचें। इसके अतिरिक्त बिस्तर पर जाने से पहले हल्का व्यायाम, योग और ध्यान करें ताकि मानसिक शांति बनी रहे और जरूरत पड़ने पर किसी मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से सलाह लें।