60 साल बाद भी बसाव की राह ताक रहे भाखड़ा विस्थापित

Edited By Ekta, Updated: 22 Oct, 2018 03:14 PM

60 years later bhakhra displaced for the road to basawah

पड़ोसी राज्यों को रोशन करने वाले भाखड़ा विस्थापित आज भी अपने बसाव की राह ताक रहे हैं। 60 के दशक में भाखड़ा बांध के कारण बेघर हुए विस्थापितों का आज तक भी पूरी तरह बसाव नहीं हो पाया है। भाखड़ा विस्थापित आज भी अपने बसाव के लिए संघर्षरत हैं। तत्कालीन...

बिलासपुर (बंशीधर): पड़ोसी राज्यों को रोशन करने वाले भाखड़ा विस्थापित आज भी अपने बसाव की राह ताक रहे हैं। 60 के दशक में भाखड़ा बांध के कारण बेघर हुए विस्थापितों का आज तक भी पूरी तरह बसाव नहीं हो पाया है। भाखड़ा विस्थापित आज भी अपने बसाव के लिए संघर्षरत हैं। तत्कालीन समय बिलासपुर के 256, ऊना के 110 व मंडी के 5 गांव इससे प्रभावित हुए थे तथा पुराना बिलासपुर शहर भी जलमग्र हो गया था। तत्कालीन समय बिलासपुर जिला से करीब 7206 परिवार इससे प्रभावित हुए थे। करीब 60 वर्ष बाद भी भाखड़ा विस्थापित आज भी विस्थापन का दंश झेलने को मजबूर हैं। आलम यह है कि जहां बिलासपुर शहर के लोगों को प्लाट नहीं मिल पाए हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्र के विस्थापितों को उनकी जमीन का मालिकाना हक नहीं मिल पाया है। 

प्रभावितों की बनाई थीं 4 श्रेणियां
जानकारी के अनुसार तत्कालीन समय बिलासपुर शहर के लोगों की 4 श्रेणियां बनाई गई थीं। इसमें जिन लोगों के घर जलमग्र हुए, उन्हें मकान के प्लाट के बदले 1800 स्क्वेयर फुट का प्लाट नए शहर में दिया गया, जबकि दुकान के बदले 450 फुट का और मकान कम दुकान के प्लाट के बदले 900 स्क्वेयर फुट का प्लाट मिला। हालांकि तत्कालीन समय विस्थापितों को यह आश्वासन दिया गया था कि जमीन के बदले शहर से बाहर 4 गुना जमीन दी जाएगी, लेकिन बिलासपुर शहर में तत्कालीन समय विस्थापित हुए 1200 परिवारों में से केवल 2 को ही यह जमीन मिल पाई, जबकि पुराने शहर के किराएदारों को आज तक प्लाट नहीं मिले हैं। जबकि तत्कालीन समय उन्हें भी प्लाट दिए जाने का वायदा किया गया था। बिलासपुर शहर में लोगों को यह प्लाट 999 वर्ष की लीज पर दिए गए हैं। 

बसाव की बाट जोह रहे विस्थापित
इसी प्रकार ग्रामीण भाखड़ा विस्थापितों को सिरसा, फतेहबाद व हिसार आदि में जमीनें दी गईं। कुछ लोग तो वहां चले गए, जबकि कुछ लोगों को उस समय यह कहा गया कि अमुक स्थान पर मकान बना लो। लोगों में उस समय ज्यादा जागरूकता नहीं थी और न ही लोग ज्यादा पढ़े-लिखे थे। लोगों ने जहां जगह मिली वहीं पर मकान बना लिए। समय के अनुपात में शहर में बढ़ी परिवारों की संख्या के मुताबिक कुछ लोगों ने अपने घरों के आसपास अपने आशियानों को बढ़ा लिया और अब उन पर अतिक्रमण के नाम पर मकान गिराए जाने की तलवार लटक रही है।

इसी प्रकार कुछ ग्रामीण विस्थापितों के जंगलों में बने मकानों से बिजली-पानी के कनैक्शन काट दिए गए हैं। शहरी व ग्रामीण विस्थापित आज भी मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहे हैं तथा अपने बसाव की बाट जोह रहे हैं। किसी भी सरकार ने इनके पूरी तरह बसाव किए जाने का प्रयास नहीं किया है। अभी तक भी करीब 375 लोगों को प्लाट नहीं मिल पाए हैं। इस कारण शहरी व ग्रामीण भाखड़ा विस्थापित आज भी अपने हक-हकूक के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। आलम यह है कि प्रदेश सरकार गोबिंदसागर झील से पेयजल व सिंचाई योजना भी नहीं बना सकती। 

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