भाजपा-माकपा इस मुद्दे पर कांग्रेस को कटघरे में करेगी खड़ा

Edited By Updated: 17 Apr, 2017 09:16 AM

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शिमला के बाद धर्मशाला को राज्य की दूसरी राजधानी बनाने का मुद्दा नगर निगम चुनाव में कांग्रेस पर भारी पड़ सकता है।

शिमला: शिमला के बाद धर्मशाला को राज्य की दूसरी राजधानी बनाने का मुद्दा नगर निगम चुनाव में कांग्रेस पर भारी पड़ सकता है। नगर निगम चुनाव में भाजपा-माकपा ने इसको भुनाने की तैयारी कर ली है। विधानसभा चुनाव से पहले इसको लेकर भाजपा-माकपा सत्तारूढ़ दल को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास करेंगी। विपक्ष राज्य पर 40,000 करोड़ रुपए का कर्ज होने के बाद दूसरी राजधानी को सियासी स्टंट अधिक बता रहा है। विपक्ष का तर्क है कि जब सरकार प्रशासनिक जिलों के गठन करने से बचने का प्रयास कर रही है तो उस स्थिति में छोटे से प्रदेश में 2 राजधानी बनाकर जनता से न्याय करने के पीछे सियासत अधिक नजर आ रही है। 


दूसरी राजधानी को सियासी स्टंट अधिक बता चुके हैं भारद्वाज
हिमाचल प्रदेश विधानसभा बजट सत्र के दौरान सभा पटल पर रखी गई (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन) कैग की रिपोर्ट का अध्ययन करें तो पिछले 5 साल में प्रति व्यक्ति ऋण बढ़ौतरी 41 फीसदी हुई है। यानी वर्ष 2011-12 के दौरान प्रति व्यक्ति ऋण जो 40,904 रुपए था, वह वर्ष 2015-16 में बढ़कर 57,642 रुपए हो गया है। इसके अनुसार 7 साल के भीतर 62 फीसदी ऋण का भुगतान करना होगा जो हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्य के लिए आरामदायक स्थिति नहीं होगी। हिमाचल प्रदेश भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं शिमला के विधायक सुरेश भारद्वाज भी मौजूदा समय में दूसरी राजधानी को सियासी स्टंट अधिक बता चुके हैं। इसी तरह माकपा भी इसे जनहित में कम व सियासत अधिक बता रही है। 


कांग्रेस पर भारी पड़ सकता है यह मुद्दा
इसे देखते हुए कांग्रेस पार्टी को नगर निगम चुनाव में विपक्ष के इस तर्क का जवाब देने में परेशानी आएगी। हालांकि निगम चुनाव पार्टी टिकट पर नहीं हो रहे हैं, जिससे स्थानीय मुद्दों के अधिक हावी रहने की संभावना है, फिर भी पार्टी समर्थित उम्मीदवारों के मैदान में उतरने से राजधानी का मुद्दा प्रमुखता से उठेगा। यह मुद्दा कांग्रेस पर इसलिए भारी पड़ सकता है क्योंकि राज्य में उसकी सरकार है। इसके विपरीत कांग्रेस राजधानी के मुद्दे को अलग रखकर स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ने पर अपना ध्यान केंद्रित रखना चाहती है। इसमें मुख्य रूप से पानी का मुद्दा प्रमुख है, जिसमें कांग्रेस इसे पूरी तरह से माकपा की विफलता बता रही है। दूसरी राजधानी के मुद्दे को कांग्रेस सियासी स्टंट मानने की बजाय इसे प्रदेश के सर्वांगीण विकास से जुड़ा अहम फैसला बताती है, जिससे विपक्ष की तरफ से लगाए जाने वाले भेदभाव को समाप्त किया जा सकेगा।


साफ पानी रहेगा निगम चुनाव में प्रमुख मुद्दा
राजधानी में साफ व स्वच्छ पानी आम जनता को उपलब्ध करवाना भाजपा, कांग्रेस व माकपा तीनों प्रमुख पार्टियों का प्रमुख चुनावी मुद्दा होगा। शिमला में पेयजल संकट एक गंभीर मसला बन गया है। हालात ये हैं कि जनता बूंद-बूंद को तरस गई है। गिरि से अतिरिक्त पानी मिलने से शहर में हालात थोड़े सामान्य हुए हैं लेकिन पानी की किल्लत की समस्या अभी भी वैसी ही है। ऐसे में इस बार निगम चुनाव में तीनों प्रमुख पार्टियों के उम्मीदवार लोगों के बीच साफ व स्वच्छ जल मुहैया करवाने के मुद्दे को लेकर उतरेंगे। शिमला में पानी का एक बड़ा चुनावी मुद्दा है क्योंकि पिछले डेढ़ साल से शिमला में पानी की भयंकर कमी चल रही है। मौजूदा समय में भाजपा व कांग्रेस माकपा शासित निगम प्रशासन को पेयजल संकट के लिए जिम्मेदार ठहरा रही हैं, वहीं माकपा के महापौर संजय चौहान व उपमहापौर टिकेंद्र पंवर पेयजल संकट के लिए इन दोनों राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को दोषी ठहरा रहे हैं। ऐसे में चुनावी दंगल में उतरने वाले प्रत्याशी प्राथमिकता के आधार पर जनता को साफ व स्वच्छ पानी देने का वायदा अपने घोषणा पत्र में करेंगे। इसके अलावा कई अन्य मुख्य मुद्दे भी इस बार प्रत्याशियों के घोषणा पत्र में होंगे। 

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