हिमाचल में अब तक के विधानसभा चुनावों में रोचक रही शह और मात

Edited By Punjab Kesari, Updated: 27 Nov, 2017 12:13 AM

vs elections have been interesting check and mate in himachal pradesh

हिमाचल में विधानसभा चुनावों के इतिहास में कई रोचक परिणाम रहे हैं।

धर्मशाला: हिमाचल में विधानसभा चुनावों के इतिहास में कई रोचक परिणाम रहे हैं। चुनावों में कई प्रत्याशियों ने बड़े अंतर से दूसरे प्रत्याशियों को शह व मात दी है तो कहीं पर यह शह व मात बहुत कम से रही है। इनमें जहां कई विधायक हजारों मतों के अंतर से जीत कर विधानसभा के द्वार पहुंचे हैं, वहीं कई प्रत्याशी ऐसे भी रहे हैं जो मात्र चुङ्क्षनदा मतों से जीते हैं। इनमें वर्ष, 1998 का विधानसभा चुनाव ऐसा चुनाव रहा है जिसमें कुटलैहड़ विधानसभा से भाजपा प्रत्याशी रामदास मात्र 3 मतों से जीत कर विधायक बने थे। यह आंकड़ा अभी तक के विधानसभा चुनावों में बरकरार है। हालांकि जीत के अंतर हजारों मतों में शामिल हैं। 

मोहन लाल ब्राक्टा सबसे ज्यादा मतों से जीतने वाले विधायक 
वर्ष, 2012 के चुनावों में मोहन लाल ब्राक्टा रोहड़ू विधानसभा क्षेत्र से 28,415 मत लेकर अब तक के सबसे ज्यादा मतों से जीतने वाले विधायक रहे हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव में मोहन लाल ब्राक्टा को 34,465 वोट तो भारतीय जनता पार्टी के बालक राम नेगी को 6,050 वोट प्राप्त हुए। कुल मार्जन 28,415 वोट रहा, वहीं शिमला रूलर से कांग्रेस के प्रत्याशी व वर्तमान मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को 28,892 व बी.जे.पी. के ईश्वर को 8,892 वोट प्राप्त हुए। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का इस सीट से जीत का अंतर 20,000 वोट रहा था। 

20,000 से अधिक मार्जन से जीतने वाले 2 ही प्रत्याशी
20,000 से अधिक मार्जन से जीत कर आने वाले मात्र 2 ही प्रत्याशी थे, वहीं देहरा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के रविंद्र रवि 15,293 वोटों से जीते थे। सुजानपुर विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार राजेंद्र राणा 14,166, भोरंज से भारतीय जनता पार्टी के आई.डी. धीमान 10,415 वोटों के अंतर से जीते थे। हमीरपुर से भाजपा के प्रत्याशी व पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल 9,302 वोटों के अंतर से, नाहन से बी.जे.पी. के राजीव ङ्क्षबदल 12,824 वोटों के अंतर से जीते थे। 

इन सीटों पर रही कांटे की टक्कर
हिमाचल विधानसभा चुनावों में जहां कई सीटों में रिकार्ड तौड़ मतों से जीत हासिल करके प्रत्याशी विधानसभा पहुंचे थे, वहीं विधानसभा चुनावों में ऐसे प्रत्याशी भी रहे हैं जिनकी जीत का मार्जन बहुत कम रहा है। पिछले कई विधानसभा चुनावों की बात करें तो वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों में भटियात विधानसभा क्षेत्र से बी.जे.पी. के विधायक विक्रम सिंह जरियाल को 111 वोटों के मार्जन से जीत प्राप्त हुई थी, वहीं कसौली विधानसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के ही राजीव सैजल को मात्र 24 वोट के मार्जन से जीत मिली थी। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनावों में कांटे की टक्कर देखने को मिली थी जिसमें जसवां सीट से कांग्रेस के निखिल रजौर को 118 वोटों से व भरमौर सीट सेतुलसी राम को मात्र 16 वोटों के मार्जन से जीत हासिल हुई थी। वर्ष 2003 के विधानसभा चुनावों में ऊना विधानसभा क्षेत्र से सतपाल सत्ती मात्र 51 वोटों से जीते थे, वहीं वर्ष 1998 में सोलन से कांग्रेस की प्रत्याशी कृष्णा मोहिनी ने 26 वोटों से जीत हासिल की थी। 

कुटलैहड़ से 3 वोट से जीत थे भाजपा प्रत्याशी रामदास
कुटलैहड़ से भाजपा प्रत्याशी रामदास ने 3 वोट से जीत हासिल की, भाजपा के सुलह के प्रत्याशी विपिन सिंह परमार ने 125, कुल्लू से बी.जे.पी. के प्रत्याशी चंद्रसेन को 38 वोटों से जीत हासिल हुई थी। 1985 के विधानसभा चुनावों में ज्वालामुखी से निर्दलीय उम्मीदवार ईश्वर दास मात्र 9 वोटों के मार्जन से जीते थे। 1982 के विधानसभा चुनावों में राजनगर से बी.जे.पी. प्रत्याशी मोहन लाल 42 वोटों से, 1977 के चुनावों में शिलाई विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के गुमन सिंह चौहान 95 वोटों से, 1972 के विधानसभा चुनावों में शाहपुर से कांगे्रस के कुलतार चंद राणा 74 वोटों के मार्जन से जीते थे। 1967 के चुनावों में ऊना विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार पी. चंद 56 वोटों के मार्जन से, भरमौर से एस.डब्ल्यू.ए. के आर. चंद 98 वोटों के मार्जन से जीते थे। 1951 विधानसभा चुनावों में भामला से कांग्रेस के प्रत्याशी 67 वोटों के मार्जन से जीते थे।

जिला कांगड़ा में घटता जीत का मार्जन
प्रदेश में सत्तासीन होने के लिए जहां जिला कांगड़ा को फतेह करने में सरकारें अपना पूरा दमखम लगाती रही हैं, वहीं जिला कांगड़ा के विधानसभा क्षेत्रों में दोनों पार्टियों के प्रत्याशियों का मार्जन घटता हुआ नजर आ रहा है। 2012 के हुए विधानसभा चुनावों में नजर दौड़ाएं तो मात्र देहरा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के प्रत्याशी 10 हजार मतों से ऊपर जीत हासिल करने में कामयाब हुए थे। इसके अतिरिक्त किसी भी विधानसभा क्षेत्र में जीत का दायरा 10 हजार से अधिक का आंकड़ा पार नहीं कर पाया था। इससे पहले के चुनावों में जिला कांगड़ा के  प्रत्याशियों का वर्चस्व 10 हजार से अधिक मतों से जीत हासिल करने का रहा है। 

4 विधानसभा क्षेत्रों में 10 हजार से ऊपर था जीत का दायरा 
वर्ष 1990 में जिला कांगड़ा के 4 विधानसभा क्षेत्रों के प्रत्याशियों की जीत का दायरा 10 हजार से ऊपर का था जिसमें गंगथ विस से भाजपा प्रत्याशी देसराज 13,599, ज्वालामुखी से भाजपा प्रत्याशी धनी राम 12,115, धर्मशाला से भाजपा प्रत्याशी किशन 13,663 व कांगड़ा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के विद्यासागर 16,830 मतों से जीते थे। वहीं 1993 में मात्र नूरपुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याशी सत महाजन ने 10 हजार से अधिक मतों से जीत का आंकड़ा प्राप्त किया था। उन्होंने 15,091 मत से जीत हासिल की थी। इसके अतिरिक्त 2003 में जिला कांगड़ा से 3 प्रत्याशी ही 10 हजार से ऊपर का मार्जन जीत के लिए ले पाए थे जिसमें ज्वालामुखी से भाजपा प्रत्याशी रमेश धवाला 13,729, सुलह से कांग्रेस प्रत्याशी 10,930 व नगरोटा से जी.एस. बाली ने 10,394 मतों से जीत हासिल की थी। 

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!