Edited By Vijay, Updated: 24 Feb, 2024 10:37 PM
तिब्बतियों के आध्यात्मिक गुरु दलाईलामा ने कहा कि विश्व शांति तभी सम्भव है जब आपके मन में शांति होगी। विश्व शांति तभी हो सकती है, जब हम अपने मन के भीतर पहले शांति स्थापित करें।
धर्मशाला (ब्यूरो): तिब्बतियों के आध्यात्मिक गुरु दलाईलामा ने कहा कि विश्व शांति तभी सम्भव है जब आपके मन में शांति होगी। विश्व शांति तभी हो सकती है, जब हम अपने मन के भीतर पहले शांति स्थापित करें। दलाईलामा ने तिब्बतियन कैलेंडर के प्रथम महीने के 15वें दिन प्रातिहार्य दिवस पूर्णिमा (छोट्रुल दुछेन) के अवसर पर शनिवार को मुख्य तिब्बती मंदिर में जातक कथाओं (बुद्ध के जीवन की कहानियां) पर संक्षिप्त प्रवचन दिया। देश-विदेश से मैक्लोडगंज पहुंचे सैंकड़ों बौद्ध अनुयायी इस प्रवचन को सुनने के लिए पहुंचे थे। इस दौरान दलाईलामा ने कहा कि आज न केवल तिब्बतियों बल्कि विश्व में भी बौद्ध धर्म के प्रति रुचि बढ़ी है। आज सिर्फ भौतिक विकास की लालसा दुनिया में सभी को जकड़े हुए है, जबकि आंतरिक विकास और शांति नहीं है। शांति प्राप्त करना दुनिया के करोड़ों लोग चाहते हैं, लेकिन इसके लिए दया और करुणा के सिद्धांत को अपनाना होगा। मनोविज्ञान की व्यवस्था बौद्ध दर्शन में देखने को मिलती है।
बौद्ध धर्म में मनोविज्ञान की व्यवस्था है। इसमें चिकित्सीय प्रथाओं के साथ-साथ मानव मनोविज्ञान, भावना, अनुभूति, व्यवहार और प्रेरणा का विश्लेषण शामिल है। बौद्ध मनोविज्ञान, बौद्ध नैतिक और दार्शनिक प्रणाली के भीतर अंतर्निहित है। इसकी मनोवैज्ञानिक शब्दावली नैतिक पहलुओं से रंगी हुई है। बौद्ध मनोविज्ञान विभिन्न अशांतकारी अवस्थाओं, विशेषतया हमारे लिए ढेरों दुख उत्पन्न करने वाले अशांतकारी मनोभावों (क्रोध, ईष्र्या, लोभ, आदि) के विषय की विवेचना करता है। बौद्ध धर्म में इन अशांतकारी मनोभावों से उत्पन्न होने वाली समस्याओं का समाधान करने के लिए विधियों की एक समृद्ध परम्परा है। उन्होंने कहा कि हम शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं, हमारा देश भले हमसे छूट गया हो मगर बौद्ध संस्कृति और दर्शन के संरक्षण के लिए हम सभी ने उचित ध्यान दिया है। दुख को समाप्त करने के लिए हमें अपने अंदर के कलेश और स्वार्थ चित को खत्म करना होगा।
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