समाज ने दिए ताने पर जसवां के अक्षय मंजिल पाकर ही माने

Edited By Vijay, Updated: 19 Sep, 2018 02:56 PM

society gave jest but akshay of jaswan got goal

मेरी राह में हर कदम पर बिछे थे कांटे, मैंने कांटों से दोस्ती कर ली, कुछ इस तरह मैंने जिंदगी अपनी आसान कर ली। ये पंक्तियां इस शख्स के जीवन पर एकदम स्टीक बैठती हैं, जिसने जन्मगत दिव्यांगता से जूझते हुए भी कभी हार न मानने के जज्बे के बलबूते प्रोफैसर...

धर्मशाला: मेरी राह में हर कदम पर बिछे थे कांटे, मैंने कांटों से दोस्ती कर ली, कुछ इस तरह मैंने जिंदगी अपनी आसान कर ली। ये पंक्तियां इस शख्स के जीवन पर एकदम स्टीक बैठती हैं, जिसने जन्मगत दिव्यांगता से जूझते हुए भी कभी हार न मानने के जज्बे के बलबूते प्रोफैसर बनकर दिखा दिया कि कड़े परिश्रम और हिम्मत से मनुष्य जिंदगी के हर झंझावात से पार पाकर मनचाही सफलता हासिल कर सकता है। ये शख्स हैं डा. अक्षय जो हाल ही में राजकीय महाविद्यालय ढलियारा में इंगलिश लिटरेचर शिक्षक नियुक्त हुए हैं। जसवां परागपुर हलके के दुर्गम गांव सियूल में वर्ष 1983 में जन्मे अक्षय को जन्म के 15 दिन बाद ही एक भयंकर रोग ने घेर लिया, जिस कारण शरीर के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। घर वालों ने बेहतर से बेहतर इलाज करवाया लेकिन रोग लाइलाज हो गया।

दादा और चाचा ने पीठ पर उठाकर पहुंचाया स्कूल
स्कूल जाने की उम्र हुई तो दादा और चाचा पीठ पर उठाकर स्कूल ले जाते थे। हरिपुर स्कूल से दसवीं करने के बाद दूरवर्ती शिक्षा के जरिये आर्ट्स में ग्रैजुएशन की। 2007 में ढलियारा कॉलेज से एम.ए. की, जिसमें अपने बैच में टॉप किया। इसके बाद अक्षय ने एच.पी.यू. शिमला से एम.फिल. करने की ठानी। दिव्यांग होने के कारण एच.पी.यू. ने एडमिशन देने से इंकार कर दिया लेकिन अक्षय ने हार नहीं मानी और एम.फिल. करने के लिए यूनिवर्सिटी प्रशासन से लेकर सरकार के पास जाकर गुहार लगाई, जिसके बाद 2008 में उन्हें एडमिशन मिल गई। इस बीच कई कठिनाइयां सामने आईं लेकिन अक्षय का सफर यहीं नहीं रुका और वर्ष 2016 में उन्होंने ऑस्टेलियन लिटरेचर में पीएच. डी. करने के बाद वर्ष 2017-18 में हिमाचल लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास की और हाल ही में ढलियारा कॉलेज में सहायक प्रोफैसर के पद पर नियुक्त हुए हैं।

दोस्त गोद में उठाकर ले जाते थे क्लास में, शिक्षक ने होस्टल में पढ़ाया
डाक्टर अक्षय कहते हैं कि उनके परिवार ने कभी उनको महसूस नहीं होने दिया कि वो दिव्यांग हैं। पी.डब्ल्यू.डी. में सीनियर असिस्टैंट तैनात पिता श्याम चंद हमेशा कहते थे कि कभी हिम्मत न हारो, समाज तो हमेशा रास्ता रोकेगा। स्कूल और कॉलेज में दोस्त गोद में उठाकर क्लास तक ले जाते थे। स्कूली शिक्षा के दौरान शास्त्री शनि कुमार, ढलियारा कॉलेज में प्रो. अजय कहोल ने काफी मदद की और शिमला में अध्यापिका प्रोफैसर पंकज के. सिंह होस्टल में आकर उन्हें पढ़ाती थी। पीएच.डी. में प्रो. नीलिमा कंवर ने सहयोग दिया। शिमला में पढ़ाई के दौरान माता प्रोमिला शर्मा उनके साथ होस्टल में रहीं। पत्नी कुसुम जीवन के हर मोड़ पर पूरी शिद्दत से साथ निभा रही है।

समाज ने दुत्कारा पर मैं नहीं हारा
डाक्टर अक्षय कहते हैं कि समाज में दो तरह के लोग रहते हैं। एक जो आपकी नि:स्वार्थ मदद करते हैं और दूसरे जो आपका रास्ता रोकने में लगे रहते हैं। दिव्यांग होने के कारण कई बार लोगों के ताने सुनने पड़े लेकिन मैंने अपने सपनों को पूरी तरह जिया और कुदरत की नाइन्साफी से हार मान कर किसी पर बोझ बनने की बजाय अपनी मंजिल खुद हासिल करने के लिए दिन-रात मेहनत करता रहा। सफलता की इस यात्रा में दोस्तों, रिश्तेदारों और शिक्षकों का पूरा साथ मिला। ढलियारा कालेज में प्राचार्य मधु शर्मा का सहयोग मिल रहा है और क्लास में जाने के लिए रैंप बनाए जा रहे हैं।

शिमला में पढ़ेंगे शोध पत्र
डाक्टर अक्षय 25 अक्तूृबर को शिमला में ऑस्ट्रेलियन लिटरेचर स्टडीज पर होने वाले सम्मेलन में भाग लेकर अपना शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे। इसके अलावा अक्षय कविताएं और कहानियां भी लिखते हैं। आकाशवाणी शिमला में वह अपनी कई कविताएं पढ़ चुके हैं।

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