दिल्ली में लोकसभा है, पोता सभा नहीं: शांता

Edited By Ekta, Updated: 06 May, 2019 11:17 AM

shanta kumar

कांगड़ा-चम्बा लोकसभा सदस्य शांता कुमार ने कहा कि वह कभी चुनाव हारते भी थे, परंतु वहां से सदा उन्हें कांग्रेस से अधिक वोट मिलते थे। उन्होंने कहा है कि हिमाचल में राजनीति का स्तर सदा ऊंचा रहा है। इस बार कुछ अपवाद अच्छे नहीं लग रहे हैं। वीरभद्र सिंह...

पालमपुर (ब्यूरो): कांगड़ा-चम्बा लोकसभा सदस्य शांता कुमार ने कहा कि वह कभी चुनाव हारते भी थे, परंतु वहां से सदा उन्हें कांग्रेस से अधिक वोट मिलते थे। उन्होंने कहा है कि हिमाचल में राजनीति का स्तर सदा ऊंचा रहा है। इस बार कुछ अपवाद अच्छे नहीं लग रहे हैं। वीरभद्र सिंह द्वारा जयराम ठाकुर के संबंध में कुछ कड़वे शब्द कहे गए। उन्होंने (वीरभद्र सिंह) जयराम ठाकुर को शातिर कहा, सत्ता का नशा और अपने आप से बाहर होने की बात की है। मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि वीरभद्र सिंह ने जयराम ठाकुर जैसे एक शालीन मुख्यमंत्री के संबंध में ऐसे शब्द कहे होंगे। उन्हें लगता है कि यह सब वीरभद्र सिंह ने दिल से नहीं कहा, गुस्से से उनसे कहा गया होगा।  

शांता कुमार ने कहा कि जयराम ठाकुर ने थोड़े ही समय में अपनी अच्छी पहचान बनाई है। एक सर्वेक्षण में पूरे भारत में बड़े-बड़े दिग्गज 27 मुख्यमंत्रियों में लोकप्रियता में जयराम ठाकुर दूसरे स्थान पर आए हैं। यदि वीरभद्र सिंह अपने कहे गए शब्दों पर विचार करेंगे तो उन्हें लगेगा कि वे गुस्से में बहुत कुछ गलत कह गए। उन्होंने हिमाचल के सभी नेताओं से अपील की है कि हम विरोध करें, परंतु लोकतंत्र की मर्यादाओं को भंग न होने दें। उन्होंने कहा है कि मैं वीरभद्र सिंह के मन की स्थिति को समझता हूं। वे एक मजबूरी में मंडी क्षेत्र में कांग्रेस का प्रचार कर रहे हैं। उन्होंने मंच पर कहा कि वे आया राम गया राम के खिलाफ हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सुखराम ने उन्हें धोखा दिया था, वे उसे भी कभी नहीं भूल सकते।

यह सब कुछ उन्होंने दिल से कहा था, परंतु वे बहुत अधिक समझदार हैं। उन्हें पता था कि पार्टी अनुशासन की मजबूरी में उन्हें प्रचार करना पड़ेगा। इसलिए उन्होंने पहले ही कह दिया था कि अक्लमंद को तो इशारा ही काफी होता है। अब वे जो कह रहे हैं वो दिल से नहीं कह रहे और मंडी की अक्लमंद जनता को इशारा तो उन्होंने पहले ही कर दिया है। शांता कुमार ने कहा कि जो मंडी में हुआ, वह शायद कांग्रेस ने पूरे भारत में कभी नहीं किया होगा। जिस पोते ने अभी राजनीति में जन्म भी नहीं लिया था और किसी पार्टी का सदस्य भी नहीं था, वह जन्म से पहले ही दलबदलू बन गया। सुखराम उसे लेकर भाजपा के दरवाजे पर गए। टिकट नहीं मिला तो कांग्रेस के दरवाजे पर पहुंचे। सच्चाई तो यह है कि कांग्रेस से कोई भी चुनाव नहीं लड़ना चाहता था।

सभी को लगता था कि यदि कांग्रेस के सबसे बड़े नेता वीरभद्र सिंह की धर्मपत्नी राम स्वरूप के सामने नहीं जीत सकी तो अब तो कोई भी नहीं जीत सकता। कोई चुनाव नहीं लड़ना चाहता था। इसलिए सुखराम के पोते को टिकट दे दिया। यदि वीरभद्र सिंह अपने आप को कांग्रेस में इतने बड़े नेता समझते हैं तो मंडी के चुनाव में स्वयं क्यों नहीं उतरे। राम स्वरूप जैसे एक साधारण कार्यकर्ता के मुकाबले उनकी धर्मपत्नी की हार उन पर हमेशा के लिए एक प्रश्नचिह्न रहेगा। उन्हें चाहिए था कि वे स्वयं चुनाव लड़कर इस निशान को मिटा देते। मंडी में तो कांग्रेस का उम्मीदवार भी उधार का है और अब चुनाव प्रभारी सुरेश चंदेल भी उधार के हैं। हमारे सभी नेता उधार के नहीं, परिवार के हैं। लोकसभा में अनुभवी नेताओं को भेजा जाता है, ऐसे अनुभवहीनों को नहीं। दिल्ली में लोकसभा है, पोता सभा नहीं। सुखराम परिवार हिमाचल की भजन मंडली बन गया। इस बार हरियाणा की तरह हिमाचल भी बदनाम हो गया।

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