छत्तीसगढ़ में निलंबित पुलिस अधिकारी को अंतरिम राहत देने से इंकार

Edited By PTI News Agency, Updated: 23 Jul, 2021 10:04 PM

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बिलासपुर, 23 जुलाई (भाषा) छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने राजद्रोह और भ्रष्टाचार के आरोपी निलंबित अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक जीपी सिंह को अंतरिम राहत देने से इंकार कर दिया है।

बिलासपुर, 23 जुलाई (भाषा) छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने राजद्रोह और भ्रष्टाचार के आरोपी निलंबित अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक जीपी सिंह को अंतरिम राहत देने से इंकार कर दिया है।
राज्य के अतिरिक्त महाधिवक्ता अमृतो दास ने शुक्रवार को यहां बताया कि छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने राजद्रोह और भ्रष्टाचार के आरोपी निलंबित एडीजी जीपी सिंह की दोनों याचिकाओं पर सुनवाई की और अंतरिम राहत के उनके दोनों आवेदनों को खारिज कर दिया है।
दास ने बताया कि अदालत ने मंगलवार को सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित कर लिया था।
अतिरिक्त महाधिवक्ता ने बताया कि उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति नरेन्द्र कुमार व्यास की एकल पीठ ने अंतरिम राहत देने के आवेदनों पर अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि जीपी सिंह के खिलाफ राजद्रोह और भ्रष्टाचार के मामलों की जांच चल रही है। न्यायालय ने माना कि आरोप गंभीर प्रकृति के हैं तथा जांच आदि का कार्य प्रारंभिक अवस्था में है इसलिए अंतरिम राहत नहीं दी जा सकती है।
दास ने बताया कि अदालत ने यह भी कहा है कि राजद्रोह के मामले में जीपी सिंह ने पहले भी निचली अदालत में अग्रिम जमानत की याचिका दायर की थी जिसे बाद में वापस ले लिया गया। पूरे मामले की केस डायरी देखने के बाद याचिकाकर्ता को कोई अंतरिम राहत प्राप्त करने का अधिकार नहीं है।
उन्होंने बताया कि उच्च न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता द्वारा अभी तक पेश किए गए दस्तावेजों के आधार पर उसका यह आरोप भी सिद्ध नहीं होता कि पूरा मामला पूर्वाग्रह से ग्रसित है तथा राज्य सरकार द्वेषवश उन पर कार्रवाई कर रही है। इसलिए अंतरिम राहत नहीं दी जा सकती है।
दास ने बताया कि राज्य के भ्रष्टाचार निरोधी ब्यूरो ने जीपी सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का मामला दर्ज किया था। वहीं छापामारी के दौरान उनके घर से मिले आपत्तिजनक दस्तावेजों के आधार पर पुलिस ने राजद्रोह का मामला दर्ज किया था। इन दोनों मामलों में उच्च न्यायालय में जीपी सिंह की ओर से दो रिट याचिकाएं दायर कर चुनौती दी गई थी।
उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता ने पूरे मामले को पूर्वाग्रह से ग्रसित बताया था। याचिका में अंतरिम राहत की मांग की गई थी। याचिका के अनुसार भ्रष्टाचार के मामले की जांच सीबीआई अथवा किसी स्वतंत्र जांच एजेंसी से कराने तथा राजद्रोह वाले मामले में उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर पर राज्य पुलिस द्वारा आगे की कार्रवाई पर रोक लगाने का आवेदन लगाया गया था। अतिरिक्त महाधिवक्ता ने बताया कि उच्च न्यायालय में मंगलवार को न्यायमूर्ति नरेन्द्र कुमार व्यास की एकल पीठ में दोनों मामलों की एक साथ सुनवाई हुई थी। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता किशोर भादुड़ी और शासन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता केटीएस तुलसी और अतिरिक्त महाधिवक्ता अमृतो दास ने पैरवी की। आज शुक्रवार को न्यायालय ने अपने फैसले में याचिकाकर्ता को कोई अंतरिम राहत न देते हुए दोनों आवेदन ख़ारिज कर दिए हैं।
उन्होंने बताया कि उच्च न्यायालय ने राज्य शासन से मामले में चार सप्ताह में जवाब तलब किया है। मामले की अगली सुनवाई पांच सप्ताह बाद होगी


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