अब इस जिला में तैयार रेशम के वस्त्र पहनेंगे हिमाचल के लोग

Edited By Vijay, Updated: 28 Jun, 2018 10:06 PM

now people of himachal will wear silk garments ready in this district

हिमाचल प्रदेश रेशम उत्पादन में उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र के राज्यों में जम्मू-कश्मीर के बाद दूसरे स्थान पर है। प्रदेश सरकार ने रेशम उत्पादन को बढ़ावा देने तथा एकीकृत रेशम उद्योग के विकास के लिए सिल्क समग्र योजना प्रदेश में प्रारंभ की है।

मंडी: हिमाचल प्रदेश रेशम उत्पादन में उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र के राज्यों में जम्मू-कश्मीर के बाद दूसरे स्थान पर है। प्रदेश सरकार ने रेशम उत्पादन को बढ़ावा देने तथा एकीकृत रेशम उद्योग के विकास के लिए सिल्क समग्र योजना प्रदेश में प्रारंभ की है। प्रदेश में सेरीकल्चर (रेशम कीट पालन) से वर्तमान में 1,672 गांवों के लगभग 12,000 से अधिक परिवार जुड़े हुए हैं। इनमें से अधिकांश बिलासपुर, मंडी, हमीरपुर, कांगड़ा, ऊना व सिरमौर जिला में स्थित हैं। रेशम उत्पादन में बिलासपुर के बाद मंडी जिला पूरे प्रदेश में दूसरे स्थान पर है, जहां कुल उत्पादन का 25 प्रतिशत रेशम उत्पादित किया जा रहा है।


बालीचौकी में पहला कोशकृमि उद्यमिता विकास एवं नवोन्मेष केंद्र
मंडी जिला में रेशम कीटपालन को बढ़ावा देने के लिए बालीचौकी में पहला कोशकृमि उद्यमिता विकास एवं नवोन्मेष केंद्र की स्थापना की गई है। इस केंद्र की स्थापना का मुख्य उद्देश्य हिमाचली रेशम को ऊन व पश्ीमीना के सम्मिश्रण से उत्पाद तैयार कर एक ब्रांड के तौर पर उभारना है। इस केंद्र की स्थापना के साथ ही प्रदेश में सिल्क समग्र योजना भी आरंभ की गई है। केंद्र प्रायोजित सिल्क समग्र योजना का मुख्य उद्देश्य वर्ष 2020 तक लाभार्थी केंद्रित घटकों पर ध्यान देते हुए रेशम उद्योग का एकीकृत विकास करना है। इसके अंतर्गत शोध संस्थान केंद्रीय सेरीकल्चर बोर्ड से उन्नत तकनीकी पैकेज का स्थानांतरण व अधिग्रहण किया जाएगा।


किसानों को नर्सरी के विकास के लिए मिलेंगे डेढ़ लाख रुपए
योजना के अंतर्गत प्री कोकून शहतूत क्षेत्रों के विकास के लिए विभिन्न इकाइयों के माध्यम से गतिविधियां संपन्न की जानी हैं। इनमें किसान नर्सरी के विकास के लिए समर्थन के अंतर्गत डेढ़ लाख रुपए इकाई लागत निर्धारित की गई है, जिसका 80 प्रतिशत केंद्र सरकार व 10 प्रतिशत राज्य सरकार से अनुदान व 10 प्रतिशत लाभार्थी का भाग रखा गया है। इसी प्रकार शहतूत परिवहन विकास के लिए समर्थन एवं उच्च पैदावार शहतूत किस्मों के उत्पादन के लिए इकाई लागत 50,000 रुपए, सिंचाई व अन्य जल संरक्षण व उपयोग तकनीकों के लिए सहायता हेतु 50,000 रुपए इकाई लागत निर्धारित की गई है। कीटपालन घरों के निर्माण के लिए भी योजना के अंतर्गत वित्तीय सहायता का भी प्रावधान है।


सभी वर्गों के लिए मान्य है योजना
सेरीकल्चर ऑफिसर मंडी विजय चौधरी ने बताया कि केंद्र व राज्य पोषित योजनाओं के अंतर्गत नए एवं पुराने रेशम कीट पालक जो हिमाचल के स्थायी निवासी हों, इसके लाभ के पात्र हैं और सभी वर्गों के लिए यह योजना मान्य है। इसमें 90 प्रतिशत अनुदान केंद्र व राज्य सरकार वहन करेगी व केवल 10 प्रतिशत लाभार्थी का भाग निर्धारित किया गया है।

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