नहीं भरे नूरपुर बस हादसे के जख्म, 12 मासूम खोने वाले ख्वाड़ा गांव में अभी भी आंसुओं का सैलाब

Edited By Ekta, Updated: 30 Apr, 2018 11:18 AM

not filled nurpur bus accident wound

चेली स्कूल बस हादसे के 19 दिन बाद नूरपुर क्षेत्र के ख्वाड़ा गांव में अभी तक सन्नाटा पसरा हुआ था। यह वो गांव है जिसके 12 बच्चे स्कूल बस हादसे में भगवान को प्यारे हो गए थे। कभी सवेरे-सवेरे बच्चों की चहचहाट से गूंजने वाले इस गांव में शनिवार सुबह 9 बजे...

नूरपुर: चेली स्कूल बस हादसे के 19 दिन बाद नूरपुर क्षेत्र के ख्वाड़ा गांव में अभी तक सन्नाटा पसरा हुआ था। यह वो गांव है जिसके 12 बच्चे स्कूल बस हादसे में भगवान को प्यारे हो गए थे। कभी सवेरे-सवेरे बच्चों की चहचहाट से गूंजने वाले इस गांव में शनिवार सुबह 9 बजे कोई आवाज नहीं सुनाई दी। इतना जरूर है कि साथ ही राजकीय माध्यमिक स्कूल में प्रार्थना सभा की आवाज भी थोड़े समय के बाद गायब हो गई। इस गांव में अब जब भी कोई स्कूल बस गुजरती है तो बस की आहट से प्रभावित परिवार कभी सहम उठते हैं तो कभी घर से झांकर देखते हैं कि उनका बच्चा तो नहीं है इस बस में।
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बता दें कि 9 अप्रैल को हुए इस स्कूल बस हादसे में 24 बच्चों की मौत हो गई थी। दोपहर 3 बजे के समय के आसपास कुछ बुजुर्ग लोग अब भी टकटकी लगाए पथराई आंखों से घर के बाहर झांकते देखे जा सकते हैं। इस हादसे का समय जरूर गुजर रहा है लेकिन गांव में आंसुओं का सैलाब वैसा ही है जैसा 9 अप्रैल को था। जब भी कोई मृतक बच्चों के परिजनों से हादसे के बारे में पूछता है वो आंसुओं का सैलाब फिर रुकने का नाम नहीं लेता। ख्वाड़ा को जो जख्म मिला है वो शायद ही कभी भर पाए। दुखदायी घटना के कुछ दिन बाद खुआड़ा के लोगों में रंज इस बात का है कि लोक निर्माण विभाग सहित स्कूल का कोई भी अध्यापक उनके गम में शामिल होने नहीं आया। खुआड़ा निवासी कर्ण सिंह, सत्या देवी ने अपना 10 साल का लड़का इस हादसे में खोया है, जो सीधे तौर पर लोक निर्माण विभाग को इस हादसे का जिम्मेदार बता रहे हैं।


इन लोगों का कहना था कि पिछले 6 सालों से उक्त सड़क पर तारकोल नहीं बिछी तथा सड़क की हालत दयनीय है। उनको यह भी गिला लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों कर्मचारियों से है कि एक बार भी उनके दुख में शरीक होने घर भी नहीं पहुंचे। इन लोगों का कहना था कि इस हादसे के पीछे जो कसूरवार हैं उनको सजा मिलनी चाहिए। हादसे में अपनी बेटी खो चुके मीना देवी, नरेश सिंह में स्कूल प्रशासन के प्रति भी रोष देखने को मिला। इन लोगों का कहना था कि स्कूल का कोई भी अध्यापक उनके घर इस दुख की घड़ी में ढांढस बंधाने नहीं आया। उनका कहना था कि स्कूल में बच्चों के दाखिले करवाने के समय तो अध्यापक घरों में पहुंच जाते थे लेकिन इस दुख की घड़ी में अध्यापकों की मानवता कहां चली गई।


4 बच्चों के इंतजार में है दादा 
ख्वाड़ा के जिस घर के 4 चिराग चेली हादसे में बुझ गए उस घर के मुखिया दोपहर ठीक 3 बजे घर के गेट से बाहर टकटकी लगाए रोज देखते हैं कि स्कूल बस में उनके पोते-पोतियां बस आने ही वाले होंगे। लेकिन हर रोज जब उस की कोई बस नहीं आती तो निराश होकर वापस अपने कमरे में चले जाते हैं। बच्चों के दादा सागर सिंह को अभी भी यकीन नहीं होता। उनको इंतजार रहता है कि उनके पोते-पोतियां स्कूल बस से उतरेंगे और उनके गले लगेंगे। इस हादसे के लिए लोक निर्माण विभाग को कटघरे में खड़ा करके कहते हैं कि विभाग की कथित लापरवाही की वजह से आज मेरे घर के चिराग बुझे हैं। 


6 माह में कैसे गिर गया डंगा?
सागर कहते हैं कि कोई पूछने वाला नहीं है। वह बताते हैं कि कुछ साल पहले हादसे वाली जगह पर एक डंगा लगाया गया था जो 6 माह बाद ही ढह गया था उस डंगे के ढहने से हादसे वाली जगह लगे काफी पेड़ भी ढह गए जिसके कारण उस जगह ने खाई का रूप ले लिया। यदि वो पेड़ आज सलामत होते तो न खाई होती न हादसा। उन्होंने सरकार से मांग की है कि उस डंगे के निर्माण से उसके गिरने के कारणों की जांच होनी चाहिए और जो दोषी हैं उनको सजा मिलनी चाहिए। 2 बच्चे खो चुके इसी घर के कुसुम तथा राजेश का कहना है कि अब वो किसके सहारे जीएंगे। डिस्क की समस्या से जूझ रहे राजेश इस हादसे से पूरी तरह से टूट गए हैं। अब वो घर में ही एक कोने में बच्चों की याद में समय व्यतीत कर रहे हैं। राजेश का कहना था कि उनके बच्चे हमेशा कहते थे कि पापा जब हम बड़े हो जाएंगे तो आपको कहीं भी काम नहीं करने देंगे। उन्होंने कहा कि हादसे के बाद अब सरकार तथा विभाग सड़क की मुरम्मत तथा डंगे लगा रहा है लेकिन अब इन डंगों का क्या फायदा। इनसे उनके बच्चे तो वापस नहीं आएंगे। 


अब सिर्फ लाडले का स्कूल बैग और उसकी यादें 
सत्या देवी ने कहा कि हादसे के बाद घटनास्थल पर पड़े अपने बेटे के स्कूल बैग को उठाकर अपने पास रखा है, दिल पर पत्थर रखकर उसकी कुछ यादें समेट कर उसको याद करते हैं। अब सिर्फ यादें बची हैं। ख्वाड़ा गांव का हर दूसरा घर इस सदमे मेें डूबा है। 


नहीं लिया सबक
नूरपुर क्षेत्र में कुछ एक प्राइवेट स्कूलों ने चेली बस हादसे से कोई सबक नहीं लिया है। इसका जीता जागता उदाहरण उस समय मिला जब एक प्राइवेट स्कूल की मिनी बस बिना कंडक्टर के स्कूली बच्चों को ढो रही थी, ख्वाड़ा गांव में सुबह-सुबह जब उक्त बस के चालक जोकि बजुर्ग था, को जब पूछा कि इस बस का कंडक्टर कहां है, तो चालक का जवाब था कि कंडक्टर मलकवाल गांव में खड़ा है, यही कहते हुए उसने बस को दौड़ाना शुरू कर दिया। स्थानीय लोगों ने बताया कि अभी भी कुछ एक निजी स्कूलों के वाहन नियमों की धज्जियां उड़ा कर बच्चों की जान को जोखिम में डाल रहे हैं। 


हादसे का जिक्र सुन फूट-फूट कर रो पड़ी सलोनी, कहा-मेरा भाई गांव में ही पढ़ता तो आज मेरे साथ होता
ख्वाड़ा गांव में अब कुछ लोग अपने बच्चों को गांव के ही राजकीय माध्यमिक स्कूल में डाल रहे हैं तो कुछ अभी इंतजार में हैं। स्कूल में बैठी एक बच्ची ने जैसे ही हादसे की बात सुनी तो उसकी आंखों में आंसू आ गए। दरअसल इसी स्कूल की 8वीं में पढ़ रही सलोनी पठानिया ने बस हादसे में अपने भाई युवराज को खोया था। उसका कहना था कि अगर मेरा छोटा भाई युवराज यहीं पढ़ता तो आज वो मेरे साथ होता। गांव में पहुंचकर इस बात का भी पता चला कि अक्सर गांव के लोग अपने बच्चों को 5 कक्षाओं तक निजी स्कू ल में डालते हैं तथा उसके बाद ज्यादातर अपने ही गांव राजकीय माध्यमिक स्कूल ले आते हैं। राजकीय माध्यमिक स्कूल में उसी स्कूल से पढ़ कर आए बच्चों ने बताया कि 5वीं के बाद ज्यादातर बच्चे वापस आ जाते हैं क्योंकि 5वीं तक बच्चों का बेस बनाना जरूरी है। ये वो बच्चे हैं जिन्होंने इस हादसे में अपने भाई बहन खोये थे। 


परिजन बोले-पहले भी लग चुकी थी बस में आग, एक बार खुल गया था टायर
बच्चों के परिजनों तथा उस स्कूल में पढ़ चुके बच्चों ने स्कूल बस में हुए कुछ घटनाक्रमों का भी जिक्र करते हुए खुलासा किया कि इस बस में एक बार आग भी लग चुकी है तथा इसका टायर भी खुल चुका है। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि स्कूल का स्टाफ  बच्चों को इन घटनाक्रमों को घर में बताने के लिए मना करता था। वहीं कुछ परिजनों ने यह भी बताया कि हादसे वाले दिन ड्राइवर की तबीयत खराब थी, स्कूल प्रशासन को उस दिन ड्राइवर से बस नहीं चलाने देनी चाहिए थी।  


स्थानीय निवासी मीना देवी ने बताया कि इस बस में पहले भी हादसे हो चुके हैं लेकिन अभिभावकों ने ज्यादा गम्भीरता से नहीं लिया। उन्होंने बताया कि इस बस में एक बार आग भी लगी थी तथा एक बार गांव में पहुंचते ही बस का एक टायर खुल गया था तथा 3 टायर के सहारे बस चालक ने बस को नियंत्रित किया तथा अभिभावकों ने अपने बच्चों को बस से बाहर निकाला, वहीं इस संदर्भ में स्कूल के चेयरमैन दलजीत पठानिया का कहना है कि उनकी बस सभी मानकों को पूरा कर रही थी। उन्होंने कहा कि बस में एक बार फ्यूज उड़ा था जिससे कोई भी अप्रिय घटना घटित नहीं हुई थी। उन्होंने बताया कि बस चालक के तबीयत खराब होने की बात महज एक अफवाह थी। बस चालक बिल्कुल ठीक था।

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