विपक्ष लोकतंत्र की आत्मा, अध्यक्ष निष्पक्षता का प्रतीक : मुकेश अग्निहोत्री

Edited By Vijay, Updated: 17 Nov, 2021 05:18 PM

mukesh agnihotri in all india presiding officers conference

अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के 82वें सम्मेलन को संबोधित करते हुए नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने बुधवार को कहा कि सदन पक्ष-विपक्ष से चलता है। यह जाहिर भी है कि विपक्ष के पास संख्या बल नहीं होता। चर्चाओं में संतुलन लाने के लिए विपक्ष को...

शिमला (राक्टा): अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के 82वें सम्मेलन को संबोधित करते हुए नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने बुधवार को कहा कि सदन पक्ष-विपक्ष से चलता है। यह जाहिर भी है कि विपक्ष के पास संख्या बल नहीं होता। चर्चाओं में संतुलन लाने के लिए विपक्ष को पर्याप्त समय मिलना चाहिए अन्यथा लोगों के मुद्दे दबे रहेंगे क्योंकि यह माना गया है कि विपक्ष लोकतंत्र की आत्मा है और पंडित जवाहर लाल नेहरू आधुनिक भारत के शिल्पकार थे। उन्होंने कहा कि वह आज इस सदन में उनके द्वारा कहे गए वक्तव्य को दोहराते हैं कि अध्यक्ष निष्पक्षता का प्रतीक है। संसदीय लोकतंत्र की परंपराओं का सच्चा संरक्षक है। इसलिए उसे एक अद्वितीय स्थिति प्राप्त है। भारतीय संविधान द्वारा विशेषाधिकार प्राप्त है।

सूचनाओं का विधानसभाओं में देरी से मिलना चिंता का विषय

उन्होंने कहा कि आज बहुत गौरवपूर्ण क्षण है। हिन्दुस्तान के कई महत्वपूर्ण व ऐतिहासिक घटनाओं के साक्षी कौंसिल चैंबर और इसके संसदीय इतिहास के 100 वर्ष पूरे हुए हैं। यही स्थल भारतीय लोकतंत्र की संसदीय प्रणाली का सूत्रधार है। उन्होंने कहा कि विधानमंडल जानकारियां छुपाने का मंच नहीं है लेकिन अब देखने में आने लगा है कि आरटीआई के माध्यम से सूचनाएं पहले मिल जाती हैं और विधानसभाओं में देरी से मिलती हैं, यह विषय चिंतनीय है। उन्होंने कहा कि देखने में आया है कि दल-बदल कानून बन तो गया लेकिन उसको लेकर कई तरह की अवधारणाएं पैदा होती हैं। मामले अदालतों में जाते हैं और भारतीय लोकतंत्र कटघरे में खड़ा होता है। अग्निहोत्री ने कहा कि विधानसभा में शून्य काल हो या न हो इस पर फैसला लंबित है और इस पर मार्गदर्शन भी अमूल्य है।

सदन से कई प्रस्ताव पारित हुए

अग्निहोत्री ने कहा कि इस सदन में भारत को आजाद करने का प्रस्ताव भी पारित किया गया और महिलाओं के मताधिकार जैसे कई महत्वूपर्ण प्रस्ताव पारित हुए हैं। अंग्रेजों के समय में शिमला ग्रीष्मकालीन राजधानी रहा और यहां पर केंद्रीय असैंबली का संचालन होता रहा। उसके बाद पंजाब विधानसभा, हिमाचल सिविल सचिवालय, ऑल इंडिया रेडियो जैसे प्रतिष्ठित संस्थान यहां से चलाए गए हैं। उन्होंने कहा कि जब 25 जनवरी, 1971 को इंदिरा गांधी ने हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की घोषणा की थी।

हमारी संसदीय मर्यादाएं और परंपराएं हैं

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि लोकतंत्र परंपराओं और मान्यताओं से चलता है। इसलिए आज इनके समक्ष पेश आ रही चुनौतियों और ङ्क्षचताओं पर भी गौर करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि एक समय था जब पीठासीन अधिकारी पार्टी की बैठकों में नहीं जाते थे, चुनावों के दौरान प्रचार नहीं किया करते थे लेकिन यह परंपरा अब राज्यों में टूटने लगी है। जो हमारी उच्च संसदीय मर्यादाओं और परंपराओं के विपरीत है। मुनासिब है कि ऐसा कोई कानून नहीं है लेकिन हमारी संसदीय मर्यादाएं और परंपराएं तो हैं और पक्ष-विपक्ष दोनों को इस पर मिलकर विचार करना होगा।

हिमाचल के लिए ऐसी घोषणा हो, जिससे पूरे देश को फायदा हो

अग्निहोत्री ने कहा कि हिमाचल विधानसभा द्वारा स्थापित ई-विधान प्रणाली का पूरा देश अनुसरण कर रहा है। 100 वर्षों की इस स्वर्णिम यात्रा को यादगार बनाने के लिए निगाहें आपकी तरफ केंद्रित हैं कि हिमाचल के लिए ऐसी घोषणा की जाए, जिससे पूरे देश को फायदा हो। प्रदेश विधानसभा का दूसरा परिसर धर्मशाला में स्थापित है और यहां ई-विधान की राष्ट्रीय स्तर की एकैडमी बनाने का प्रयास लंबे समय से किया जा रहा है। संसदीय कार्य मंत्री रहते हुए एकैडमी को बनाने के लिए काफी प्रयास किए गए और अगर आपका बद्र्धस्त होगा तो इस स्वर्णिम यात्रा में एक और शानदार उपलब्धि दर्ज होगी।

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