फर्जी डिग्री मामले में राजनीतिक लालसा छोड़ सच्चाई को जानें राजेंद्र राणा : भाजपा

Edited By prashant sharma, Updated: 16 Sep, 2021 05:20 PM

infake degree case rana should know truth by leaving political greed

जिला भाजपा के अध्यक्ष बलदेव शर्मा, महामंत्री हरीश शर्मा, जिला मीडिया प्रभारी अंकुश दत्त शर्मा, सुजानपुर के मीडिया प्रभारी विनोद ठाकुर व सचिव एडवोकेट संजीव कुमार ने संयुक्त प्रैस बयान में सुजानपुर के कांग्रेस विधायक राजेन्द्र राणा पर आरोप लगाए हैं...

हमीरपुर (राजीव): जिला भाजपा के अध्यक्ष बलदेव शर्मा, महामंत्री हरीश शर्मा, जिला मीडिया प्रभारी अंकुश दत्त शर्मा, सुजानपुर के मीडिया प्रभारी विनोद ठाकुर व सचिव एडवोकेट संजीव कुमार ने संयुक्त प्रैस बयान में सुजानपुर के कांग्रेस विधायक राजेन्द्र राणा पर आरोप लगाए हैं कि वे राजनीतिक लालसा के चलते तथ्यों को जाने बगैर जनता में झूठ परोसने का जो षड्यंत्र रचा रहे हैं। उसमें वे खुद ही फंसते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज हमीरपुर में हुई कांग्रेस की रैली भी पूरी तरह फ्लॉप साबित हुई है तथा इसमें भी राजेन्द्र राणा कांग्रेस पार्टी में अलग-थलग पड़ते हुए नजर आए हैं। जिससे साफ हो गया है कि भविष्य में राजेंद्र राणा का कांग्रेस में क्या स्थान रहने वाला है। उन्होंने कहा कि जिस मानव भारती यूनिवर्सिटी की फर्जी डिग्रियां के बेचने के मुद्दे को राजेन्द्र राणा उठा रहे हैं उसकी सच्चाई का पता उन्हें नहीं है। वे तो किसी के कहने पर मनगढ़ंत झूठी पटकथा को प्रस्तुत कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सच्चाई ये है कि हिमाचल प्रदेश को शैक्षणिक हब बनाने के लिए वर्ष 2009-10 में प्राईवेट सैक्टर में बहुत सारे विश्व विद्यालय खोलने की अनुमतियां दी गईं थीं। 

इसी में मानव भारती विश्व विद्यालय ने भी ऐसी अनुमति के लिये आवेदन किया था। इस आवदेन को पहली बार अस्वीकृत कर दिया गया क्योंकि उनके पास वांच्छित पचास बीघे ज़मीन नहीं थी। बाद में और बीस बीघे ज़मीन दूसरे स्थान पर खरीदकर यह आवदेन किया कि वह यह परिसर दो स्थानों पर खोलना चाहते हैं इस आग्रह के साथ जब यह मामला मंत्रीमण्डल की बैठक में आया तब इन्हें अनुमति प्रदान कर दी गई। यह अनुमति मिलने के बाद विश्व विद्यालय ने वर्ष 2009-10 से शैक्षणिक सत्र शुरू कर दिया। 2009 से 2013 तक के सत्रों में 45 कोर्सो में अध्यापन शुरू हो गया लेकिन इसी दौरान ये शिकायतें आना शुरू हो गईं कि बहुत सारे कोर्स शुरू करवा दिए गए हैं जिनके लिए साक्ष्य अथॉरिटी से स्वीकृति ही नहीं है। इन शिकायतों पर सरकार ने 17-2-2012 को पत्र संख्या ईडन-ए-ए-का(5)और 1/2011 के तहत जांच के आदेश कर दिए। इन आदेशों पर पीएचडी कोर्स को बन्द कर दिया। यही नहीं, जिन 45 कोर्सो में अध्ययन शुरू किया गया था, उनमें से 31 को बन्द करवा दिया गया था। इन अनियमितताओं के लिए इन्हें एक करोड़ रुपए का जुर्माना भी लगाया गया था। 

उन्होंने कहा कि प्राइवेट सैक्टर में खुले इन विश्वविद्यालयों पर जब सवाल उठने शुरू हुए थे तब सरकार ने इनके लिए एक नियामक आयोग का गठन भी कर दिया था। जिसकी अध्यक्ष सरोजनी ठाकुर वरिष्ठतम आईएएस अधिकारी को लगाया गया। इस आयोग के पास जब मानव भारती विश्व विद्यालय को लेकर शिकायत आई तब इसकी जांच के लिये 20-8-2014 को सेवा निवृत आईएएस अधिकारी सीआरवी ललित की अध्यक्षता मे एक तीन सदस्यों की कमेटी गठित कर दी। इस कमेटी की रिपोर्ट पर 1-4-2016 को नियामक आयोग का फैसला आया है। इस फैसले में यह सामने आया है कि इस विश्व विद्यालय ने दिसम्बर 2012 तक कोई कन्वोकेशन ही आयेजित नहीं की है और न ही कोई डिग्रियां बांटी गईं हैं। इसकी पहली कन्वोकेशन दिसम्बर, 2013 में वीरभद्र शासन के दौरान हुई और अभी डिग्रियां बांटी गईं, इसलिए फर्जी डिग्रियां होने और बांटने का विषय ही 2013 से व्यवहारिक रूप से शुरू होता है। 

इसके बाद ही नियामक आयोग और शिक्षा विभाग पर आयोग की सचिव एकता काप्टा 16-8-2017 को डीजीपी को शिकायत भेजकर इस प्रकरण में मामला दर्ज करने का आग्रह करती है और मामला दर्ज हो जाता है। इसके बाद 16-8-2017 को आयोग की शिकायत पर फरवरी और मार्च, 2020 मे एफआईआर दर्ज होते हैं और गिरफ्तारियां शुरू होती हैं। वहीं 2017 की शिकायत पर 2018-2019 में एफआईआर क्यों दर्ज नहीं होती हैं इसका कोई खुलासा सामने नहीं आया है। इस मामले में पहली गिरफ्तारी इंडस विश्वविद्यालय के लेख राज की होती है जिसे 13-2-2020 को प्रदेश उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति विवेक ठाकुर की पीठ से ज़मानत मिल जाती है।

इसके बाद इसी मामले में गिरफ्तार प्रमोद कुमार को 5-6-2020 को न्यायमूर्ति चन्द्र भूषण बारोवालिया की पीठ से ज़मानत मिल जाती है। फिर 18-11-2020 को राज कुमार राणा को न्यायमूर्ति अनुप चिटकारा की पीठ से ज़मानत मिल जाती है और 31-5-2021 को अजय कुमार को इसी पीठ से ज़मानत मिल जाती है। ज़मानत के यह मामले तीन अलग-अलग ज़जों के पास आते हैं और सभी ने पुलिस की जांच पर अप्रसन्नता व्यक्त की है। नियामक आयोग से लेकर उच्च न्यायालय तक यह कहीं नहीं आया है कि 2012 तक आयी शिकायतों पर कारवाई करने में कोई ढील बरती गयी है। न ही यह सामने आया है कि 2012 तक ही फर्जी डिग्रियां बिकनी शुरू हो गईं थीं।

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