मजबूत व स्वस्थ दांत चाहिए तो सॉफ्ट फूड से करें परहेज

Edited By Vijay, Updated: 04 Aug, 2022 11:05 PM

if you want strong and healthy teeth then avoid soft food

आज के फटाफट दौर में सॉफ्ट फूड (फास्ट फूड, मीठा, तैलीय खाना) के सेवन से लोगों के दांत कमजोर हो रहे हैं। बच्चों में दांत पूरे न आना या टेढ़े-मेढ़े दांत निकलने की वजह भी हार्ड फूड (पत्तेदार सब्जियां, अनाज, फल आदि) की बजाय सॉफ्ट कुक्ड का अत्यधिक सेवन है।

पालमपुर (डैस्क): आज के फटाफट दौर में सॉफ्ट फूड (फास्ट फूड, मीठा, तैलीय खाना) के सेवन से लोगों के दांत कमजोर हो रहे हैं। बच्चों में दांत पूरे न आना या टेढ़े-मेढ़े दांत निकलने की वजह भी हार्ड फूड (पत्तेदार सब्जियां, अनाज, फल आदि) की बजाय सॉफ्ट कुक्ड का अत्यधिक सेवन है। दंत रोग विशेषज्ञ डाॅ. सतीश कुमार शर्मा ने पंजाब केसरी के सौरभ कुमार से बातचीत में कहा कि साफ्ट फूड से बनने वाला अम्ल दांत खराब होने का सबसे बड़ा कारण है। यह जबड़ों की वृद्धि भी रोक रहा है। 

दिमाग व पेट तक पहुंच सकता है संक्रमण
दांतों की बीमारी का समय पर इलाज न हो तो संक्रमण दिमाग या पेट तक भी पहुंच सकता है। सांस के रोग का भी यह कारक बन सकता है। कोमल ब्रश की बजाय सख्त दातुन या मंजन दांतों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त हैं क्योंकि ब्रश के निचले भाग में बड़ी मात्रा में बैक्टीरिया जमा हो जाते हैं। ब्रश हर 15-20 दिन में बदलना जरूरी है। 

ऐसे लगता है रोग
दांत की ऊपरी सतह यानी एनिमल शरीर में सबसे सख्त पदार्थ होता है। यह संवेदनहीन होता है। अधिक गर्म या ठंडे, मीठे व चिपकने वाला सॉफ्ट फू ड दांतों के एनिमल को नष्ट करता जाता है। पहली स्टेज में लोगों को दर्द नहीं होता लेकिन दांत खराब होने की शुरूआत हो चुकी होती है जिसका पता ही नहीं चलता। दूसरे स्टेज में आधे से ज्यादा दांत खराब हो जाता है। तीसरी व अंतिम स्टेज में दांत की जड़ तक संक्रमण पहुंच जाता है। जबड़ा भी खराब होने लगता है। 

रोचक तथ्य
39 दिन औसतन प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में ब्रश करने में खर्च करता है। 62 प्रतिशत लोगों के दांत खराब होने का मुख्य कारण कोल्ड ड्रिंक्स का अत्यधिक सेवन होता है।

आयुर्वेद में दांतों का उपचार 
आयुर्वेद चिकित्सा व मॉर्डन चिकित्सा पद्दति में दांतों के उपचार की विधि कमोबेश एक समान है। अंतर केवल इतना है कि पायरिया जैसे रोग का इलाज केवल आयुर्वेद में सम्भव है। मंसूड़ों के रोग में आयुर्वेद चिकित्सा उपयोगी है। आम टूथपेस्ट में सामान्यत: रसायनों का प्रयोग भी होता है, लेकिन आयुर्वेद मंजन केवल जड़ी-बूटियों से तैयार होते हैं। 

रामबाण है तिरमिरा की दातुन 
आयुर्वेद में तिरमिरा (तेजबल) की दातुन को दांतों का संक्रमण रोकने के लिए रामबाण माना जाता है। यह वज्र दंत मंजन के नाम से आसानी से उपलब्ध है। तिरमिरा की दातुन दांत के एनिमल को मजबूत कर उन्हें सडऩे से बचाती है। जामुन, नीम, आम व अमरूद के पत्तों की दातुन भी दांत व मसूड़े मजबूत करती है, ऐसे में दांत को कीड़ा लगने की संभावना ही नहीं रहती है। 

दंत चिकित्सा में 3 दशक का अनुभव
मूलत: जिला कांगड़ा के देहरा के गांव बाथू टिक्करी निवासी 60 वर्षीय डाॅ. सतीश कुमार शर्मा का परिवार ऊना जिले के अम्ब में सैटल है। डाॅ. शर्मा ने आयुर्वैदिक कालेज पपरोला से 1987 में बीएएमएस और गुजरात के जामनगर स्थित आयुर्वैद विश्वविद्यालय से 1999 में दंत चिकित्सा में एमडी की। 1989 में कांगड़ा की दुर्गम छोटा भंगाल घाटी के कोठी कोहड़ स्थित आयुर्वैदिक हैल्थ सैंटर से नौकरी की शुरूआत करने वाले डाॅ. शर्मा वर्ष 2000 से राजकीय आयुर्वैदिक अस्पताल पपरोला में कार्यरत हैं। 

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