देवी-देवता भी करते हैं इस घने वनों की पहरेदारी

Edited By kirti, Updated: 07 Jun, 2019 10:20 AM

himalayan national park

कुल्लू जिले में लोग सदियों पुरानी देव आज्ञा का आज भी पूरी निष्ठा से पालन करते हैं। धूम्रपान, शराब, जुआ निषेध से दूर रहने के साथ ही जंगल यानी पेड़ पर कुल्हाड़ी चलाना पाप समझते हैं। देवी-देवताओं की मान्यताओं को जहां कुछ बातों को लेकर अंधविश्वास से...

सैंज : कुल्लू जिले में लोग सदियों पुरानी देव आज्ञा का आज भी पूरी निष्ठा से पालन करते हैं। धूम्रपान, शराब, जुआ निषेध से दूर रहने के साथ ही जंगल यानी पेड़ पर कुल्हाड़ी चलाना पाप समझते हैं। देवी-देवताओं की मान्यताओं को जहां कुछ बातों को लेकर अंधविश्वास से जोड़ा जाता है लेकिन एक परिपेक्ष्य ऐसा भी है जहां ये मान्यताएं लोगों के लिए वरदान साबित हो रही हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए आज ये मान्यताएं अहम भूमिक निभा रही हैं। जिले कि ग्राम पंचायत रैला के अंतर्गत आने वाले विश्व धरोहर ग्रेट हिमालयन नैशनल पार्क की शरण बिट में देवता रिगू नाग के नाम से जाने वाले रिगुवन में आज भी दराट-दरांती और कुल्हाड़ी नहीं चलती।

यहां तक कि स्थानीय पंचायत के लोगों का भी इस वन में प्रवेश निषेध है। यहां किसी विशेष उत्सव को निराहार रहकर, नहा-धोकर देवता केसाथ ही नंगे पांव जाया जाता है। रिगुवन में बहुत बड़े-बड़े पेड़ हैं जो आज बाकी जंगलों में ढूंढे भी नहीं मिलते और ये इतने घने हैं कि यहां अनेक जीव-जंतुओं के रहने के आसार हैं। रिंग वन के हरे-भरे जंगल कुल्हाड़ी न चलने का कारण देव आज्ञा माना जाता है। लोग मानते हैं कि पेड़ों में देवी-देवता वास करते हैं। इन जंगलों से ग्रामीणों का घास-पत्ती व लकड़ी लाना भी वर्जित है। फिलहाल नैशनल पार्क प्रबंधन विभाग की ओर से ऐसा कोई भी सूचना बोर्ड नहीं लगाया गया है, जिसमें इस रिगुवन में जाना वर्जित हो।

बेशक देवता कमेटी का सूचना बोर्ड यहां लगा हुआ है जिसमें इस वन में दराट-दराती, कुल्हाड़ी चलना व इसमें प्रवेश वर्जित का सूचना बोर्ड लगा हुआ है। कुल्लू में संजोई गई वन संपदा, बंजार वैली में ग्रेट हिमालयन नैशनल पार्क का कुछ वन क्षेत्र, शांगड़ के साथ लगता जंगल, मणिकर्ण घाटी में पुलगा का जंगल व जीवनाला रेंज के तहत भी दो-तीन हैक्टेयर जंगल को प्राचीन समय से ही प्रतिबंधित रखा गया है जो पर्यावरण प्रदूषण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। बता दें कि पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर वर्ष 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्टॉक होम स्वीडन में विश्वभर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया। इसमें 119 देशों ने भाग लिया और उसमें बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए वनों को काटने व अधिक से अधिक पेड़ों को लगाने के लिए प्रेरित किया गया था।

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