Himachal: अब यह लत आपके दिमाग पर कर रही है 'खतरनाक कब्जा'... IGMC में हर हफ्ते पहुंच रहे हैं 50 मरीज

Edited By Jyoti M, Updated: 01 Dec, 2025 11:53 AM

himachal 50 patients are reaching igmc every week drug addiction is increasing

हिमाचल प्रदेश में जहाँ एक ओर परिवार नशे की लत के कारण टूट रहे हैं, वहीं दूसरी ओर यह 'सफेद ज़हर' (चिट्टा) अब लोगों को मानसिक रूप से बीमार भी बना रहा है। राज्य के प्रमुख चिकित्सा संस्थान, इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) के मनोरोग विभाग में मानसिक...

हिमाचल डेस्क। हिमाचल प्रदेश में जहाँ एक ओर परिवार नशे की लत के कारण टूट रहे हैं, वहीं दूसरी ओर यह 'सफेद ज़हर' (चिट्टा) अब लोगों को मानसिक रूप से बीमार भी बना रहा है। राज्य के प्रमुख चिकित्सा संस्थान, इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज (आईजीएमसी) के मनोरोग विभाग में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के साथ-साथ नशे के आदी मरीज़ों की संख्या में alarming वृद्धि दर्ज की गई है।

आईजीएमसी का चौंकाने वाला साप्ताहिक आंकड़ा:

औसतन हर सप्ताह यहाँ आने वाले 1500 मनोरोगियों में से 50 सीधे तौर पर किसी न किसी नशे के शिकार होते हैं।

इनमें से लगभग 25 मामले भांग, अफीम या भुक्की जैसे पारंपरिक नशों के होते हैं, जबकि बाकी 25 मरीज़ों की लत का कारण सबसे ख़तरनाक ड्रग 'चिट्टा' (हेरोइन) है।

यह लत समाज के किसी एक वर्ग तक सीमित नहीं है; अमीर, गरीब, युवक और युवतियाँ - सभी पृष्ठभूमि के लोग इसकी गिरफ्त में हैं।

उपचार में चुनौतियां:

नशे से मुक्ति पाने वाले इन मरीज़ों की बढ़ती संख्या के सामने अस्पताल की व्यवस्था चरमरा रही है। विभाग में नशा मुक्ति के लिए केवल 10 बिस्तरों की व्यवस्था है, जो अब अपर्याप्त साबित हो रही है। वरिष्ठ चिकित्सा अधीक्षक डॉ. राहुल राव ने आश्वासन दिया है कि जल्द ही प्रशासन इस संबंध में अतिरिक्त बिस्तरों की व्यवस्था करेगा।

इलाज के लिए खुद पहल करने वाले मरीज़:

विशेषज्ञों का कहना है कि अस्पताल तक केवल वे ही नशे के आदी पहुंचते हैं, जिनमें या जिनके परिवार में सुधार की प्रबल इच्छाशक्ति हो। ऐसे मरीज़ों और उनके माता-पिता की काउंसिलिंग पर विभाग विशेष ध्यान दे रहा है।

समूह चिकित्सा: चिकित्सकों द्वारा अलग-अलग ग्रुप बनाकर मरीज़ों की व्यक्तिगत काउंसिलिंग की जाती है ताकि उनका मनोबल बढ़ाया जा सके और वे लत को त्यागने के लिए मानसिक रूप से तैयार हों।

पारिवारिक शिक्षा: परिवार के सदस्यों को अलग से काउंसिलिंग दी जाती है, जिसमें यह स्पष्ट किया जाता है कि नशे की लत दोबारा लग सकती है, इसलिए मरीज़ की निरंतर निगरानी और सहयोग आवश्यक है।

जीवनशैली में बदलाव: योग और ध्यान के माध्यम से नशे से आज़ादी पाने के व्यावहारिक तरीके भी सिखाए जाते हैं।

प्रेरणा और वातावरण की भूमिका:

मनोरोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. दिनेश दत्त शर्मा के अनुसार, लत को छोड़ने के लिए मरीज़ और उसके परिवार की दृढ़ इच्छाशक्ति सबसे ज़रूरी है।

वहीं, विशेषज्ञों का एक महत्वपूर्ण सुझाव यह है कि नशा करने के आदी मरीज़ों के सामने 'चिट्टा' नाम, सिरिंज की तस्वीरें या सफेद पाउडर जैसी वस्तुएँ नहीं लानी चाहिए, क्योंकि ये चीज़ें उन्हें दोबारा नशा करने के लिए प्रेरित करती हैं।

उपचार के लिए भर्ती होने वाले नशे के शिकार लोग अक्सर अन्य मानसिक रोगियों से अलग वार्ड में रखे जाने की मांग करते हैं, उनका तर्क होता है कि वे मनोरोगी नहीं, बल्कि सिर्फ लत के शिकार हैं। यह दिखाता है कि इस समस्या के लिए समाज में एक विशेष और संवेदनशील दृष्टिकोण की ज़रूरत है।

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