आस्था का अनूठा संगम, यहां बेदर्दी से खुद को लोहे की जंजीरों से पीटते हैं गुग्गा के भक्त (Video)

Edited By kirti, Updated: 26 Aug, 2019 12:54 PM

गुग्गा नवमी का पर्व गिरिपार क्षेत्र में धूमधाम के साथ मनाया गया। सदियों पुरानी परंपराओं को बरकरार रखते हुए गुग्गा भक्तों (गुगावल) ने धार्मिक आस्था दिखाते हुए खुद को लोहे की जंजीर से पीटा। इस दौरान सैकड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी।

सिरमौर(रोबनि): गुग्गा नवमी का पर्व गिरिपार क्षेत्र में धूमधाम के साथ मनाया गया। सदियों पुरानी परंपराओं को बरकरार रखते हुए गुग्गा भक्तों (गुगावल) ने धार्मिक आस्था दिखाते हुए खुद को लोहे की जंजीर से पीटा। इस दौरान सैकड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी।
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क्षेत्र के सैंकड़ों गांवों में शनिवार व रविवार को गुगावल अथवा गुगा नवमी उत्सव पारम्परिक अंदाज में मनाया गया। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की रात माड़ी कहलाने वाले एक मंजिला गूगा मंदिरों में पारंपरिक भक्ति गीतों के साथ शुरू हुआ उक्त पर्व रविवार सायं तक चला। करीब अढ़ाई लाख की आबादी वाले गिरिपार के उपमंडल संगड़ाह, शिलाई व राजगढ़ की 130 के करीब पंचायतों में देवभूमि हिमाचल के इस अनूठे धार्मिक उत्सव को धूमधाम से मनाया जाता है।
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इस दौरान क्षेत्र के लगभग सभी बड़े गांव में दो दर्जन के करीब गूगा भक्त अथवा श्रद्धालु खुद को लोहे की जंजीरों से पीटते हैं। लोहे की जंजीरो से बने गुगा पीर के अस्त्र समझे जाने वाले कौरड़े का वजन आमतौर पर 2 किलो से 10 किलोग्राम तक होता है, जिसे आग अथवा धूने में गर्म करने के बाद श्रद्धालु इससे खुद पर दर्जनों वार करते हैं।
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गुगावल शुरू होने पर गारुड़ी कहलाने वाले पारंपरिक लोक गायकों द्वारा छड़ियों से बजने वाले विशेष डमरु की ताल पर गुगा पीर, शिरगुल देवता, रामायण व महाभारत आदि वीर गाथाओं का गायन किया जाता है। गुगा पीर स्तूति अथवा शौर्य गान शुरू होते ही भक्त खुद को जंजीरों से पीटना शुरु कर देते हैं तथा इस दौरान कईं भक्त लहूलुहान अथवा घायल भी होते भी देखे जाते हैं।
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गूगावल गिरिपार का एकमात्र त्यौहार है, जो जातिगत बंधनों से ऊपर उठकर मनाया जाता है तथा रोट कहलाने वाला देवता का प्रसाद स्वर्ण व हरिजनों में बराबर बिना छुआछूत व भेदभाव के बांटा जाता है। लोक गाथा के मुताबिक बागड़ राजस्थान के गूगा महाराज द्वारा शिरगुल देवता को दिल्ली की मुगल सल्तनत की क़ैद से आजाद करवाया गया था।

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