AIIMS बिलासपुर का बड़ा खुलासा: मेडिकल छात्रों पर मंडरा रहा संकट, वजह बनी ये कमी..

Edited By Jyoti M, Updated: 07 Jul, 2025 12:22 PM

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हिमाचल प्रदेश में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे प्रशिक्षु डॉक्टर नींद पूरी न होने के कारण मानसिक तनाव का शिकार हो रहे हैं। यह एक गंभीर समस्या है जो उन्हें तनाव और अवसाद की ओर धकेल रही है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) बिलासपुर द्वारा किए गए एक...

हिमाचल डेस्क। हिमाचल प्रदेश में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे प्रशिक्षु डॉक्टर नींद पूरी न होने के कारण मानसिक तनाव का शिकार हो रहे हैं। यह एक गंभीर समस्या है जो उन्हें तनाव और अवसाद की ओर धकेल रही है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) बिलासपुर द्वारा किए गए एक शोध में ये चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इस शोध में हिमाचल के 400 डॉक्टरों को शामिल किया गया था, और इसके निष्कर्ष मई 2025 में एक अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।

शोध के मुख्य बिंदु और चौंकाने वाले आंकड़े

अध्ययन से पता चला है कि मेडिकल के छात्र खराब नींद के कारण मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं। यह स्थिति न केवल उनके शैक्षणिक प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है, बल्कि उनके समग्र कल्याण के लिए भी चिंताजनक है। शोध में शामिल 400 मेडिकल विद्यार्थियों में से 76.7 फीसदी को "कम सोने वालों" की श्रेणी में रखा गया।

मानसिक स्वास्थ्य के आकलन के परिणाम और भी चिंताजनक हैं। शोध में पाया गया कि 63 फीसदी विद्यार्थी चिंता (anxiety), 32 फीसदी तनाव (stress), और 27 फीसदी अवसाद (depression) से पीड़ित हैं। ये आंकड़े मेडिकल विद्यार्थियों के बीच व्याप्त मानसिक स्वास्थ्य संकट को स्पष्ट रूप से उजागर करते हैं।

नींद की कमी और मानसिक स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव

अध्ययन के परिणामों से यह भी पता चला है कि नींद न आने से अवसाद की संभावना में 22 फीसदी, चिंता में 28 फीसदी, और तनाव में 35 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि नींद आने में कठिनाई मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का एक महत्वपूर्ण संकेतक हो सकती है। दूसरे शब्दों में, अगर किसी छात्र को सोने में परेशानी हो रही है, तो उसके मानसिक स्वास्थ्य पर इसका गंभीर असर पड़ सकता है।

दवाओं का प्रभाव और शोधकर्ताओं की सलाह

शोध में यह भी सामने आया कि नींद के लिए दवाइयों का उपयोग करने से अवसाद में 26 फीसदी, चिंता में 18 फीसदी, और तनाव में 22 फीसदी की कमी आई। हालांकि, शोधकर्ताओं ने औषधि निर्भरता (drug dependency) के दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में सावधानी बरतने की सलाह दी है। उनका मानना है कि इन दवाओं पर पूरी तरह निर्भर रहना भविष्य में नई समस्याओं को जन्म दे सकता है।

अध्ययन टीम और आवश्यक उपाय

यह महत्वपूर्ण अध्ययन अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान बिलासपुर के शरीर क्रिया विज्ञान विभाग की एक शोध टीम ने किया है। इस टीम में डॉ. पूनम वर्मा, डॉ. हितेश जानी, प्रीति भंडारी, भूपेंद्र पटेल और रूपाली परलेवार शामिल थे।

अध्ययन के निष्कर्ष में मेडिकल के विद्यार्थियों के लिए अच्छी नींद और मानसिक स्वास्थ्य सहायता दोनों पर केंद्रित लक्षित उपायों की जरूरत पर जोर दिया गया है। शोधकर्ताओं का मानना है कि शैक्षणिक संस्थानों को नींद जागरूकता कार्यक्रम (sleep awareness programs) लागू करने और विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य को अच्छा रखने पर विशेष ध्यान देना चाहिए। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि हमारे भविष्य के डॉक्टर शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहें ताकि वे समाज की बेहतर सेवा कर सकें।

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