देश की रक्षा को कुमाऊं रैजीमैंट के 149 जवान तैयार

Edited By Vijay, Updated: 14 Jan, 2021 10:22 PM

149 soldiers of kumaon regiment ready to protect the country

भारतीय सेना की कुमाऊं रैजीमैंट के 149 जवानों का 14 गोरखा प्रशिक्षण केंद्र सुबाथू में 32 हफ्तों का प्रशिक्षण पूर्ण हो गया है। वीरवार को सेना के सलारिया मैदान में पासिंग आऊट परेड के दौरान जवानों ने ब्रिगेडियर एचएस संधू को सलामी दी। बता दें कि भारतीय...

सुबाथू (निखिल): भारतीय सेना की कुमाऊं रैजीमैंट के 149 जवानों का 14 गोरखा प्रशिक्षण केंद्र सुबाथू में 32 हफ्तों का प्रशिक्षण पूर्ण हो गया है। वीरवार को सेना के सलारिया मैदान में पासिंग आऊट परेड के दौरान जवानों ने ब्रिगेडियर एचएस संधू को सलामी दी। बता दें कि भारतीय सेना की कुमाऊं रैजीमैंट का सैंटर रानीखेत उत्तराखंड में है। वीरवार को सलारिया स्टेडियम में जवानों ने सेना बैंड की देश भक्ति धुन पर मार्चपास्ट करते हुए ब्रिगेडियर एचएस संधू को सलामी दी। वहीं ब्रिगेडियर संधू ने कोर्स के सर्वश्रेष्ठ जवान पवन सिंह शाही को मैडल से सम्मानित किया। उन्होंने जवानों व उनके अभिभावकों को सफल ट्रेनिंग पर बधाई देते हुए ईमानदारी से अपनी सेना का नाम रोशन करने का संदेश दिया।

गौरवशाली है रैजीमैंट का इतिहास

कुमाऊं रैजीमैंट की स्थापना सन् 1788 में हैदराबाद में हुई थी। तब मात्र 4 बटालियनें थीं। इस रैजीमैंट ने मराठा युद्ध (1803), पिंडारी युद्ध (1817), भीलों के विरुद्ध युद्ध (1841), अरब युद्ध (1853), रोहिल्ला युद्ध (1854) तथा भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम, झांसी (1857) इत्यादि युद्धों में गौरवपूर्ण कत्र्तव्यों का निर्वहन किया है। 1917 में इसकी स्थापना रानीखेत में की गई। भारत के प्रथम परमवीर चक्र विजेता (मरणोपरांत) मेजर सोमनाथ शर्मा (भारत-पाक युद्ध (1947), कुमाऊं रैजीमैंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी के कंपनी कमांडर थे। कुमाऊं रैजीमैंट को अब तक वीरता के सर्वोच्च सम्मान 3 परमवीर चक्र, 15 महावीर चक्र, 78 वीर चक्र, 4 अशोक चक्र, 6 कीॢत चक्र, 23 शौर्य चक्र, 2 उत्तम युद्ध सेवा मैडल, 1 युद्ध सेवा मैडल, 127 सेना मैडल, 8 परम विशिष्ट सेवा मैडल, 24 अति विशिष्ट सेवा मैडल और 36 विशिष्ट सेवा मैडल सहित कई सम्मानों से नवाजा जा चुका है। कुमाऊं रैजीमैंट ने जनरल एसएम श्रीनगेश, जनरल केएस थिम्मैया व जनरल टीएस रैना के रूप में भारत को 3 थल सेना अध्यक्ष देकर इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया है।

आज भी भारत से सीधा नहीं टकराता चीन

1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान मेजर शैतान सिंह कुमाऊं रैजीमैंट की 13 बटालियन की चाली कंपनी के कमांडर थे। साढ़े 14 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित चुशूल सैक्टर (रेजांग्ला दर्रे) में कंपनी तैनात थी। 18 नवम्बर, 1962 की रात बर्फबारी हो रही थी। इसी बीच चीन ने लद्दाख के रेजांग्ला में हमला कर दिया। मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में अहीर जवानों ने गोला-बारूद के अभाव के बावजूद सैंकड़ों चीनी जवानों को मार गिराया। चीनी सेना ने ताबड़तोड़ हमले किए लेकिन भारतीय जांबाजों ने इलाके को नहीं छोड़ा। वीरता के लिए मरणोपरांत मेजर शैतान सिंह को परमवीर चक्र से नवाजा गया। जब भारतीय सैनिकों के पास गोला-बारूद खत्म हो गया तो जवानों ने ग्रेनेड निकाले और चीनियों पर टूट पड़े। हालांकि इस युद्ध में चार्ली कंपनी के 114 जांबाज शहीद हो गए, 6 सैनिकों को चीन ने बंदी बना लिया लेकिन तब तक सैनिक अपना काम कर चुके थे। उन्होंने 1300 से अधिक चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। उन्होंने बताया कि 13 कुमाऊं के जितने भी जांबाज शहीद हुए उनकी याद में आज भी चुशूल सैक्टर में बड़ा स्मारक है। 13 कुमाऊं रैजीमैंट रानीखेत में भी तैनात रही। उन्हीं की याद में यहां रेजांग्ला मैदान का निर्माण भी हुआ।

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