अध्यापक संघ बढ़ाएगा स्कूलों में बच्चों की तादाद

Edited By Updated: 26 Sep, 2016 02:40 PM

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हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में बच्चों की घटती संख्या पर हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ ने कड़ा संज्ञान लेते हुए अब...

हमीरपुर: हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में बच्चों की घटती संख्या पर हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ ने कड़ा संज्ञान लेते हुए अब लोगों को अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने के लिए जागरूक करने का निर्णय लिया है।

एस.एम.सी. के साथ शिक्षकों को लोगों के बीच जाकर उनमें अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने की ओर प्रोत्साहित करने के फार्मूले के सकारात्मक परिणाम मिलने के बाद अब ग्राम सभाओं में लोगों को जागरूक करने का निर्णय लिया है। हमीरपुर के एक होटल में आयोजित संघ की बैठक में शिक्षकों की समस्याओं व मांगों के साथ शिक्षा की गुणवत्ता व बच्चों की घटती संख्या पर भी मंथन किया गया।

बैठक में निर्णय लिया कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर संघ अपने स्तर पर जिला में सैमीनार आयोजित करवाएगा, जिसमें शिक्षाविदों को बुलाया जाएगा। बैठक में संघ पदाधिकारियों ने प्राइमरी स्कूलों को मॉडल स्कूल बनाने पर जोर दिया, जहां पर नर्सरी की कक्षाएं लगाने के साथ सभी स्कूलों में पढ़ाई अंग्रेजी मीडियम से करवाने की वकालत की। बैठक में रोष प्रकट किया गया कि जिला में 10 से 15 मिडल स्कूल ऐसे हैं, जहां पर एक-एक शिक्षक सेवाएं दे रहा है।

उन्हीं के ऊपर बज्जों की शिक्षा व गैर-शिक्षक कार्य भी हैं, साथ ही सभी सरकारी स्कूलों का नियमित रूप से निरीक्षण करने भी मांग उठाई गई ताकि शिक्षा की गुणवत्ता बनी रहे। बैठक में यह मांग की गई कि स्कूलों में शिक्षकों के रिक्त पदों को भरा जाए ताकि शिक्षा की गुणवत्ता बने और अभिभावक अपने बज्जों को सरकारी स्कूलों में भेजें।

शिक्षकों से गैर-शिक्षण कार्य लेना बंद करे सरकार
हिमाचल राजकीय अध्यापक संघ की बैठक में शिक्षकों से जुड़ी मांगों व समस्याओं को लेकर भी मंथन किया गया। बैठक में संघ के चीफ पैटर्न अजय शर्मा व जिलाध्यक्ष सतीश ठाकुर ने मांग रखी कि शास्री व भाषा शिक्षकों को टी.जी.टी. का दर्जा 
दिया जाए।

आई.टी. शिक्षकों को शिक्षा विभाग में समायोजित करने की मांग की गई, साथ ही गैर-शिक्षण कार्यों में शिक्षकों की ड्यूटी का विरोध जताया गया। संघ के जिलाध्यक्ष सतीश ठाकुर ने कहा कि गैर-शिक्षण कार्यों के अतिरिक्त कार्य के साथ उनसे बेहतर रिजल्ट की भी आशा की जाती है जबकि पहले ही स्कूलों में शिक्षकों के पद रिक्त हैं और जो शिक्षक हैं, उनसे गैर-शिक्षण कार्य भी लिए जा रहे हैं।

पहले परीक्षा फार्म शिक्षा बोर्ड द्वारा भरे जाते थे मगर शिक्षक ही ऑनलाइन रजिस्टे्रशन करने के साथ स्कॉलरशिप के फार्म भी भर रहे हैं जिनमें एक से दो माह का समय इन्हीं कार्यों में लग रहा है। इसके अलावा समय-समय पर चुनाव ड्यूटी व अन्य कार्य ऐसे हैं जिनमें ही ज्यादा समय शिक्षकों का लग रहा है।

उन्होंने मांग की कि टी.जी.टी. से पी.जी.टी. की पदोन्नति में 5 साल की नियमित सेवा शर्त हटाई जाए। उन्होंने रोष जताया कि वर्ष 2014 से पहले टी.जी.टी. को 14,300 रुपए व पी.जी.टी. को 16,290 रुपए वेतनमान था जबकि वर्ष 2016 में नियमित हुए इस वर्ग के शिक्षकों को क्रमश: 13,900 रुपए व 14,500 रुपए वेतनमान दिया गया। उन्होंने प्रदेश सरकार से मांग उठाई कि एक पद पर एक समान वेतन दिया जाए तथा अब शिक्षकों से की जा रही रिकवरी बंद हो।

वर्ष 2003 के बाद के वर्गों के लिए बंद की गई पैंशन स्कीम को पुन: बहाल किया जाए। उन्होंने मांग की कि 4-9-14 का लाभ भी सुनिश्चित किया जाए। बैठक में शिक्षा विभाग की ओर से भेजे जाने वाले पत्रों को लेकर भी मांग उठाई गई कि विभाग द्वारा कई कार्यों के लिए पत्राचार किया जाता है तथा उसी दिन उसका जवाब भी मांगा जाता है, ऐसे में अपने पीरियड छोड़कर शिक्षकों को उसी कार्य में जुट जाना पड़ जाता है। 

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