Edited By Updated: 29 Feb, 2016 12:31 AM
देव भूमि कुल्लू में देव वन के अलावा कुछ ऐसे चमत्कारिक वृक्ष भी मौजूद हैं। जिनका अपना विशेष महत्व है।
कुल्लू: देव भूमि कुल्लू में देव वन के अलावा कुछ ऐसे चमत्कारिक वृक्ष भी मौजूद हैं। जिनका अपना विशेष महत्व है। जिन्हें देखकर हर किसी के मन में कौतुहल पैदा कर देता है। वैसे तो कुल्लू घाटी की कई जगहों पर देवी-देवता के चमत्कारिक वृक्ष हैं लेकिन ऊझी घाटी स्थित हलाण के कुम्हारटी में ऐसा देवदार का विचित्र वृक्ष दैवीय शक्तियों का प्रत्यक्ष उदाहरण है। करीब 5000 साल से भी पुराना देवता का उल्टा वृक्ष इसे स्थानीय भाषा में टुंडा राक्षस की केलो भी कहा जाता है। फाल्गुन माह में इस वृक्ष के नीचे फागली मेला मनाया जाता है। जिसमें टुंडा राक्षस का एक पात्र होता है। मान्यता यह भी है कि हलाण क्षेत्र के आराध्य देवता वासुकी नाग ने प्राचीन समय में किसी दैवीय शक्ति की परीक्षा लेने के लिए इस वृक्ष को जमीन से उखाड़ कर उल्टा किया था। वर्तमान में भी यह दैवीय वृक्ष उल्टा दिखाई देता है।
किदवंती के अनुसार प्राचीन समय में ऊझी घाटी के हलाण से सटे नगौणी देव वन में वासुकी नाग तपस्या में लीन थे। उसी दौरान एक दिव्य शक्ति उनके पास आई और गोद में बैठने का आग्रह करने लगी। इस पर वासुकी नाग ने कहा कि मैं किसी को अपने गोद में बिना जांचे परखे कैसे रख सकता हंू लेकिन दिव्य न मानी। नाग देवता ने इस दिव्य शक्ति की परीक्षा लेनी चाही। इस पर दिव्य शक्ति परीक्षा देने के लिए मंजूर हो गया। वासुकी नाग ने देव स्थल के समीप ही उगे देवदार के पेड़ को उखाड़ कर उल्टा जमीन पर गाड़ दिया और कहा कि सुबह होने पर यह वृक्ष हरा होना चाहिए।
कहते हंै कि जैसे ही सुबह हुई तो वृक्ष के जड़ में ही छोटी-छोटी टहनी उग आई। ऐसा चमत्कार करने पर दिव्य शक्ति परीक्षा में उतीर्ण हुई। देवदार की जड़ों को हरा करने वाली दिव्य शक्ति से जब वासुकी नाग ने परिचय जानना चाहा तो दिव्य शक्ति कहती है। हे वासुकी नाग आप मुझे किसी भी नाम से पुकार सकते हैं। उल्टे वृक्ष को हरा करने पर वासुकी नाग ने इस दिव्य शक्ति का नाम हर हरशू नाम दिया। मान्यता है कि हर हरशू अठारह करडू की श्रेणी में आता है इसे भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है। उस समय से ही हर हरशू वासुकी नाग की पालकी में विराजमान रहते हैं।
कहते हैं कि उसी समय हलाण क्षेत्र में टुंडा राक्षस का आतंक था। जब क्षेत्र के सभी देवी-देवता टुंडा राक्षस से युद्ध में हार गए तो इसके आतंक से बचने के लिए सभी देवता वासुकी नाग के पास आए। देवता वासुकी नाग ने टुंडा के आतंक से छुटकारा पाने के लिए टुंडा राक्षस का विवाह टिबंर शाचकी से करने की सलाह दी। देवी-देवताओं ने जब टिबंर शाचकी से यह प्रस्ताव रखा तो इसके बदले में उसने शर्त रखी कि साल में एक बार इस उल्टे वृक्ष के पास आऊंगी और मुझे जीवन यापन करने के लिए खाद्य सामग्री पहुंचनी चाहिए। इस शर्त को मानने पर टिबंर शाचकी का विवाह टुंडा राक्षस से करवाया गया। कहते हैं कि ऐसा करने पर जब टुंडा राक्षस देवता के वश में नहीं हो सके तब वासुकी नाग ने टुंडा को इस देवदार के समीप बांध दिया था। वासुकी नाग के पुजारी शिशु, सिकंदर ठाकुर और शेर सिंह कहते हैं कि आज भी हर साल फागली उत्सव में यह प्राचीन परंपरा निभाई जाती है।
प्राकृतिक विपदा आने पर पेड़ पर गिरती है बिजली
मान्यता है कि जब हारियान क्षेत्र में कोई प्राकृतिक विपदा आती है तो देवता आई हुई विपदा को टालने के लिए इस चमत्कारी पेड़ पर बिजली गिरा कर क्षेत्र की रक्षा करता है। कहते हैं कि 8-10 साल पहले क्षेत्र में सूखा पड़ा था तथा कई बीमारियां फैली थीं, इन सब को रोकने के लिए देवता ने इस पेड़ पर बिजली गिराई थी, जिसके निशान आज भी मौजूद हैं। इस पेड़ की खासियत यह है कि भारी बर्फबारी में भी यह पेड़ टूटता नहीं है।
देवता जमलू का भी है चमत्कारी वृक्ष
मनाली और क्लाथ के बीच सटे जंगलों में एक चट्टान के ऊपर एक ऐसा ही देवदार का वृक्ष है। देवदार के वृक्ष को स्थानीय भाषा में केलो कहा जाता है। इस चमत्कारिक पेड़ को जमलू केलो का नाम दिया गया है। इसकी परिधि 21 फुट, ऊंचाई 75 फुट है। इसकी आयु 1500 साल से पुरानी बताई जा रही है। देखने पर यह चमत्कार बड़ी छतरी की तरह दिखाई देता है।