बिना पार्टी सिंबल के ही होंगे चुनाव, जानिए क्यों

Edited By Updated: 04 May, 2017 09:22 AM

without party the symbol only will be elections know why

निगम के चुनाव पार्टी सिंबल पर करवाने की संभावनाएं अब खत्म हो गई हैं।

शिमला: निगम के चुनाव पार्टी सिंबल पर करवाने की संभावनाएं अब खत्म हो गई हैं। कैबिनेट की बैठक में इस पर कोई नया फैसला नहीं हो पाया है। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस संगठन के तमाम तर्कों को सरकार ने ‘वीटो’ कर दिया है। सरकार को मोदी लहर चलने का साफ-साफ खतरा नजर आ रहा है। इसे सरकार हालांकि काफी पहले ही भांप चुकी है लेकिन बीच में कांग्रेस के नेता इस मसले को अपने तरीके से उठाते रहे। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के दरबार में इसकी गूंज सुनाई दी। ना-नुकर के बीच अब तय हो ही गया है कि चुनाव पंचायती राज संस्थाओं की तर्ज पर होंगे। राजनीतिक दल चुनाव में प्रचार भी करेंगे और पार्टी समर्थित उम्मीदवार भी उतारेंगे। प्रत्याशियों को पार्टी का सिंबल नहीं मिलेगा। उन्हें कोई और सिंबल मिलेगा, जैसा पंचायती राज प्रतिनिधियों को मिलता है। बाद में इन पर हर कोई दल समर्थक होने का लेबल चस्पां कर लेता है। लोकतंत्र में पार्टियों के लिए सिंबल का काफी महत्व होता है। 


कांग्रेस सरकार ने अपना फैसला नहीं बदला
निगम में इसके ज्यादातर प्रयोग कांग्रेस के ही पक्ष में रहे हैं। बावजूद इसके कांग्रेस सरकार ने अपना फैसला नहीं बदला है। कांग्रेस सरकार ने सत्ता में आते ही नगर निगम निर्वाचन एक्ट में संशोधन किया। इसमें 2 तरह के प्रावधान को खत्म किया गया। पहला पार्टी सिंबल पर चुनाव करवाने की व्यवस्था को बदल डाला, दूसरा मेयर और डिप्टी मेयर के प्रत्यक्ष चुनाव की नई प्रणाली को भी खत्म किया। इसमें सरकार ने पुराने पैटर्न को बहाल किया। इस फैसले का काफी विरोध हुआ। हालांकि मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव सीधे जनता के माध्यम से करवाने का निर्णय पूर्व भाजपा ने लिया था लेकिन पार्टी पर यह उल्टा पड़ा। इसका लाभ माकपा को हुआ। माकपा नेता संजय चौहान ने मेयर पद पर कांग्रेस और भाजपा दोनों को धूल चटा दी थी। उन्होंने बड़े अंतर से चुनाव जीता। इसी तरह से डिप्टी मेयर पद पर टिकेंद्र पंवर भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों पर भारी पड़े। अब इनका कार्यकाल पूरा हो रहा है लेकिन इन्होंने वामपंथियों के लिए शिमला में सियासी जमीन तो तैयार कर ही दी है। अब मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव पार्षद करेंगे। 


पार्षदों के चुनाव में भुगतना पड़ सकता है इसका खमियाजा
पार्षदों के पास पहले से ज्यादा ताकत आएगी। पार्षद जिसे चाहेंगे, वही मेयर बनेगा। हालांकि ऐसा आरक्षण रोस्टर के दायरे में ही हो सकेगा। कुल मिलाकर कांग्रेस सरकार ने जनता से ही पावर छीन ली है। इसका खमियाजा उसे पार्षदों के चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। इस बारी पार्षदों को पार्टी टिकट नहीं मिलेंगे, इससे पार्टियों की सिरदर्दी प्रत्यक्ष तरीके से तो कम हो गई परंतु अप्रत्यक्ष तरीके से नहीं। पार्टियां समर्थित प्रत्याशियों की अधिकृत सूचियां तो जारी करेंगी ही। इसमें भी लगभग वैसी ही माथापच्ची होगी, जैसे पार्टी सिंबल पर चुनाव होने की सूरत में होती है। फर्क सिर्फ इतना है कि पार्टियों की भूमिका में थोड़ा बदलाव आया है। वे पर्दे के पीछे कार्य करेंगी। सामने रण में कार्यकर्ता पहले की तरह ही भिड़ेंगे। सियासी सेनाएं रण में पूरा दमखम लगाएंगी। पार्टी सिंबल पर चुनाव न करवाने से फिलहाल कांग्रेस बैकपुुट पर है। कांग्रेस के लिए भी ऐसे हालात सही नहीं हैं। कांग्रेस के भीतर भी एक वर्ग ऐसा है जो पार्टी सिंबल पर ही चुनाव चाह रहा था लेकिन इनके नेताओं की खास सुनवाई नहीं हुई। 


चुनावी रणनीति में पिछड़ी कांग्रेस
नगर निगम में चुनावी रणनीति बनाने में कांग्रेस काफी पिछड़ गई है। लगता है कि कांग्रेस में रणनीतिकारों की कमी है। इसी कारण सुनियोजित तरीके से रणनीति नहीं बन पा रही है। इस कार्य में भाजपा और माकपा आगे रही हैं। भाजपा ने चुनाव की कमान पहले ही डा. राजीव ङ्क्षबदल के हवाले कर रखी है। वह पार्टी के मुख्य प्रवक्ता हैं। उन्होंने अपनी पूरी टीम तो गठित नहीं की है लेकिन पार्टी ने 2 पदाधिकारियों को भी अपने साथ तैनात कर रखा है। पार्टी ने चुनाव का ब्लू प्रिंट्र तैयार कर रखा है। सियासी नक्शा खींचने में पार्टी आगे रही है। भाजपा शुरू से ही आक्रामक दिखाई दे रही है। मोदी की शिमला की सफल रैली के बाद तो पार्टी के हौसले और बुलंद हो गए हैं। रैली के जरिए जिस तरह की हवा शिमला में बनी, पार्टी उसका पूरा लाभ उठाएगी। पार्टी को अब चुनाव घोषणा का इंतजार है। जैसे ही चुनाव की औपचारिक घोषणा होगी, पार्टी अपने समर्थक योद्धाओं को चुनावी रण में उतार देगी। 


वामपंथियों को मिलेगी सत्ता विरोधी रुझान से निजात!
नगर निगम में वामपंथियों की ‘सत्ता’ है। पार्टी सिंबल पर चुनाव होने की स्थिति में वामपंथियों को सत्ता विरोधी रुझान झेलना पड़ता लेकिन अब कामरेडों को इससे निजात मिलने के आसार हैं। एक तो मेयर और डिप्टी मेयर के चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से नहीं हो रहे हैं, दूसरा पार्टी सिंबल भी नहीं होगा। वाम नेताओं पर कांग्रेस और भाजपा ने 5 साल में खूब हल्ला बोला। इन दलों का कहना था कि 5 साल पहले वामपंथी हर मुद्दे पर सड़कों पर उतर आते थे। जब से निगम में इनकी ‘सरकार’ बनी है, तब से प्रदर्शन करने ही बंद कर दिए हैं। इस सवाल पर माकपा पूरी तरह से अनुत्तरित बनी हुई है। चुनाव आते देख माकपा की विचारधारा से जुड़े संगठनों की सक्रियता बढ़ गई है जबकि लंबे समय पर ये खामोश ही रहे। कांग्रेस और भाजपा माकपा को बड़ी चुनौती नहीं मानते हैं। इन 2 प्रमुख दलों का मानना है कि वामपंथियों का सीमित प्रभाव क्षेत्र है। ये चंद वार्डों में ही राजनीतिक प्रभाव रखते हैं। पिछले चुनाव में माकपा के 3 पार्षद चुने गए थे। समरहिल वार्ड इनका गढ़ माना जाता है। 3 में से एक ने बाद में कांग्रेस का हाथ थाम लिया। 


कांग्रेस अध्यक्ष सुक्खू ने किया भाजपा पर हमला
कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू ने भाजपा पर करारा हमला बोला है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा विपक्ष की भूमिका निभाने में पूरी तरह से नाकाम रही है। सुक्खू के अनुसार भाजपा ने कांग्रेस सरकार के साढ़े 4 साल के कार्यकाल में एक भी आंदोलन नहीं किया है। उन्होंने दावा किया कि प्रदेश में मोदी की कोई लहर नहीं है। उन्होंने कहा कि नगर निगम के चुनाव में भी कांग्रेस की ही जीत होगी। पंजाब केसरी के साथ बातचीत के दौरान सुक्खू ने कहा कि भाजपा झूठा प्रचार कर रही है। निगम चुनाव में भाजपा को कोई लाभ नहीं होगा। यहां कांग्रेस जीत की पुरानी कहानी को दोहराएगी। उन्होंने कहा कि चुनाव पार्टी सिंबल पर नहीं हो रहे हैं। बावजूद इसके कांग्रेस चुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार है। कांग्रेस अध्यक्ष का कहना है कि भाजपा के पक्ष में नहीं, कांग्रेस के पक्ष में लहर चलेगी। शिमला की जनता विकास में विश्वास रखती है। कांग्रेस का गौरवमयी इतिहास रहा है जबकि भाजपा झूठ की बुनियाद पर खड़ी हुई पार्टी है। जनता बिना पार्टी सिंबल के भी भाजपा को हराएगी। सुक्खू का कहना है कि कांग्रेस एक-दो दिनों में वार्डों की कमेटियां गठित कर लेगी। इसके लिए स्थानीय नेताओं के साथ सलाह-मशविरा किया जा रहा है।  

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