ब्यास नदी किनारे गोपीपुर में डेरा डालते थे व्यापारी, बाद में नाम पड़ा देहरा गोपीपुर

Edited By prashant sharma, Updated: 04 May, 2021 01:19 PM

traders used to camp in gopipur on banks of beas river named dehra gopipur

देहरा के नाम को लेकर बुद्धिजीवी वर्ग के अलग-अलग विचार हैं। कुछ लोगों का कहना है कि पुराने समय में व्यापारी व्यापार करने आते थे तो गोपीपुर में ब्यास नदी के किनारे डेरा डाल कर रहते थे, जिसके चलते इस जगह का नाम डेरा गोपीपुर पड़ गया

देहरा (राजीव) : देहरा के नाम को लेकर बुद्धिजीवी वर्ग के अलग-अलग विचार हैं। कुछ लोगों का कहना है कि पुराने समय में व्यापारी व्यापार करने आते थे तो गोपीपुर में ब्यास नदी के किनारे डेरा डाल कर रहते थे, जिसके चलते इस जगह का नाम डेरा गोपीपुर पड़ गया और धीरे-धीरे यह नाम देहरा गोपीपुर हो गया। कुछ लोगों का कहना है कि यहां से बहने वाली ब्यास नदी के पास देहरियां थीं। फिर देहरियां से देहरा हो गया, लेकिन ज्यादातर बुद्धिजीवियों के अनुसार व्यापारियों का डेरा होने के कारण इस जगह का नाम डेरा गोपीपुर और बाद में देहरा गोपीपुर हो गया। पूर्व में 3 विधानसभा क्षेत्रों ज्वालामुखी, परागपुर व जसवां का केंद्र बिंदु रहा है। पुर्नसीमांकन के बाद देहरा विधानसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया व जसवां व परागपुर को मिलाकर जसवां परागपुर बनाया गया और ज्वालामुखी को अलग उपमंडलाधिकारी मिल गई, लेकिन देहरा व जसवां परागपुर विधानसभा क्षेत्र का अभी भी उपमंडल देहरा ही है। देहरा के साथ बसे नूरपुर व पालमपुर आदि शहरों की अपेक्षा देहरा विकास के मामले में इनसे कोसों दूर रह गया।

नई तहसीलें बनने से कम हुई देहरा की रौनक

देहरा का पुलिस थाना अंग्रेजो के समय का थाना है। इसकी स्थापना सन् 1865 में कई गई थी और 1868 में देहरा तहसील बनी थी। पूर्व में यहां पर ज्वालामुखी विस के खुंडिया से लेकर जसवां परागपुर विस के टैरेस तक देहरा तहसील थी, लेकिन समय की मांग के अनुसार नई तहसीलें बनीं और कई सरकारी दफ्तर खुले और देहरा की रौनक कम होती गई।

2 साल पहले हुआ सी.यू. भवन का शिलान्यास, अब तक नहीं लगी एक ईंट

पूरा देहरा शहर ब्यास नदी के किनारे बसा है। पर्यटन की दृष्टि से इसे संवारा जा सकता है, लेकिन कोई भी सरकारें देहरा को पर्यटन के क्षेत्र में विकसित नहीं कर पाई है। शिक्षा के क्षेत्र में भी देहरा पिछड़ा ही रह गया। यहां के लिए वर्ष 2009 में केंद्रीय विश्वविद्यालय की घोषणा की गई लेकिन राजनीति के चलते यह शिक्षण संस्थान भी आजदिन तक देहरा में स्थापित नहीं हो पाया। लगभग 2 वर्ष पूर्व सी.यू. के भवन का शिलान्यास भी सरकार द्वारा कर दिया गया, लेकिन सेंट्रल यूनिवर्सिटी के नाम की एक ईंट तक भी देहरा में नहीं लग पाई है। देहरा का डिग्री कॉलेज स्कूल के 3 कमरों में चल रहा है। सरकार 4 वर्षों से कॉलेज के लिए जमीन फाइनल नहीं कर पाई है। यहां पर कोई भी बड़ा शिक्षण संस्थान नहीं है। यहां से विद्यार्थियों को हिमाचल के अन्य हिस्सों या फिर दूसरे प्रदेशों में उच्च शिक्षा ग्रहण करने जा पड़ता है।

देहरा अस्पताल में 3 साल से नहीं रेडियोलॉजिस्ट

देहरा में आधुनिक बस स्टैंड नहीं है। यहां पर इंटर स्टेट बसें आती जाती हैं लेकिन इस बस स्टैंड में यात्रियों को बैठने की उचित व्यवस्था नहीं है। बस स्टैंड में आधुनिक शौचालय तक नहीं है। देहरा में जो अस्पताल है उसे सिविल अस्पताल का दर्जा दिया गया है। अस्पताल कहने को तो 100 बिस्तर का अस्पताल है लेकिन यहां भी सुविधाओं की कमी है। यहां पर अल्ट्रासाउंड मशीन तो है लेकिन लगभग 3 वर्ष से यहां पर रेडियोलॉजिस्ट नहीं है। सप्ताह में दो दिन दूसरे अस्पताल से डॉक्टर आता है। अस्पताल में तैनात हड्डी रोग विशेषज्ञ के पास रोजाना 70 . 80 मरीज आतें है लेकिन सुबह दस बजे एक्स रे करवाने बाले को भी रिपोर्ट दो बजे मिलती है जिसके चलते मरीज या तो बाहर एक्स रे करवाने को मजबूर होते है या फिर 2 बजे तक का इंतजार कर परेशान होते हैं।

पार्किंग की समस्या से जूझ रहा देहरा

देहरा शहर की प्रमुख समस्या पार्किंग है। यहां एस.डी.एम. कार्यालय, तहसील कार्यालय, न्यायालय व अन्य सरकारी कार्यालयों और बाजार में रोजाना सैंकड़ों लोग अपने कामों के लिए आते हैं, लेकिन पार्किग न होने के चलते सड़क किनारे अपने वाहनों को पार्क करते हैं। जिसके कारण कई बार बाजार में जाम की समस्या का सामना करना पड़ता है। पूर्व सैनिकों के लिए लिए देहरा में सी.एस.डी. कैंटीन की सुविधा है, लेकिन सी.एस.डी. कैंटीन व ई.सी.एच.एस. पॉलीक्लीनिक भी किराए के भवन में चला है।

वर्षों से हो रही जिला बनाने की मांग

देहरा को कई बार जिला बनाने की बातें उड़ती हैं। पूर्व की भाजपा सरकार ने यहां पर ए.डी.सी. तक बैठा दिया था, लेकिन यह देहरा का दुर्भाग्य ही होगा सरकार बदली और यहां सेे एडीसी दफ्तर भी उठ गया। देहरा को जिला बनाना चुनावी स्टंट और बातों तक ही सीमित रह गया।

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