लाहौल की बुनाई का जादू! विदोशों तक जुराबों के दीवाने हैं लोग...पर्यटकों की 'नंबर 1' डिमांड

Edited By Jyoti M, Updated: 23 Oct, 2025 10:43 AM

the magic of lahaul s weaving socks are loved even abroad

हिमाचल प्रदेश के ढालपुर मैदान में कुल्लू दशहरा का उल्लास भले ही थम गया हो, लेकिन लाहौल स्पीति के पारंपरिक ऊनी उत्पादों का बाजार अभी भी अपनी रौनक बिखेर रहा है। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) द्वारा स्थापित किसान उत्पादक संगठनों के...

हिमाचल डेस्क। हिमाचल प्रदेश के ढालपुर मैदान में कुल्लू दशहरा का उल्लास भले ही थम गया हो, लेकिन लाहौल स्पीति के पारंपरिक ऊनी उत्पादों का बाजार अभी भी अपनी रौनक बिखेर रहा है। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) द्वारा स्थापित किसान उत्पादक संगठनों के स्टॉलों पर, लाहौल-स्पीति की मेहनती महिलाओं द्वारा हस्तनिर्मित ऊनी जुराबें और दस्ताने खरीदारों को खूब आकर्षित कर रहे हैं।

इन विशिष्ट उत्पादों को 'जियोग्राफिकल इंडिकेशन' (जीआई) टैग मिलने के बाद इनकी पहचान और मांग में अभूतपूर्व उछाल आया है। अब ये उत्पाद न केवल देश के विभिन्न राज्यों में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी अपनी धाक जमा रहे हैं। यह सफलता स्थानीय महिलाओं के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता का मजबूत आधार बनी है और उनके पारंपरिक व्यवसाय को एक नई गति दे रही है।

अटल टनल: पर्यटन और व्यापार का नया द्वार

ढालपुर के नाबार्ड स्टॉलों में सजी इन जुराबों, शॉल, टोपियों और दस्तानों की बढ़ती लोकप्रियता का एक बड़ा श्रेय अटल टनल को भी जाता है। टनल बनने के बाद लाहौल घाटी तक पर्यटकों की पहुँच आसान हुई है, जिससे पर्यटन कारोबार को पंख लगे हैं। सर्दियों में पर्यटक गर्म ऊनी उत्पाद ज़रूर खरीदते हैं, जिससे स्थानीय महिलाओं को साल भर अच्छा-खासा रोजगार मिलता है। अब तो लाहौल घाटी के होटलों, होम स्टे और ढाबों तक में स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी ग्रामीण महिलाएं इन उत्पादों को बेचकर अपनी आय बढ़ा रही हैं।

पारंपरिक हुनर, अब सशक्तिकरण का माध्यम

अटल टनल के निर्माण से पहले, रोहतांग दर्रे के बर्फ से ढके रहने के कारण लाहौल स्पीति जिला कुछ महीने तक बाहरी दुनिया से कट जाता था। उस समय, इन ग्रामीण महिलाओं के लिए जुराबें और दस्ताने बुनना समय बिताने का मुख्य जरिया होता था। यह हुनर सदियों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी चला आ रहा है, जहाँ पारंपरिक त्योहारों और शादियों में इन ऊनी वस्तुओं का लेन-देन किया जाता था।

लाहौल की 'सेव संस्था' ने इस अनमोल विरासत को बचाने और पहचान दिलाने के लिए जुराबों और दस्तानों को जीआई टैग दिलाने की पहल की, जो वर्ष 2021 में सफल रही। आज 10-10 महिलाओं के छोटे-छोटे समूह मिलकर ये बेहतरीन ऊनी उत्पाद तैयार कर रहे हैं। ये महिलाएं नाबार्ड और स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से इन स्टॉलों पर अपने उत्पाद सीधे बेचकर न केवल अच्छी आय अर्जित कर रही हैं, बल्कि आर्थिक रूप से सशक्त होकर अपनी नियति खुद लिख रही हैं।

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