मंदिरों का पैसा कहीं और खर्च करने पर HC ने लगाई रोक, 10 सालों का ब्यौरा मांगा

Edited By Ekta, Updated: 09 Aug, 2018 09:05 AM

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प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रथम अनुसूची में आने वाले मंदिरों की धनराशि कानून के तहत मिली छूट के अलावा किसी अन्य कार्य के लिए खर्च करने पर रोक लगा दी है। प्रदेश के मंदिरों पर हिन्दू पब्लिक रिलीजियस इंस्टीच्यूशन्स एंड एंडोमैंट्स अधिनियम के प्रावधानों की...

शिमला (मनोहर): प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रथम अनुसूची में आने वाले मंदिरों की धनराशि कानून के तहत मिली छूट के अलावा किसी अन्य कार्य के लिए खर्च करने पर रोक लगा दी है। प्रदेश के मंदिरों पर हिन्दू पब्लिक रिलीजियस इंस्टीच्यूशन्स एंड एंडोमैंट्स अधिनियम के प्रावधानों की अनुपालना सुनिश्चित किए जाने को लेकर याचिका में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय करोल व न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने ये आदेश पारित किए। हाईकोर्ट ने इस अधिनियम के तहत नियुक्त सभी आयुक्तों को उनके अधीन आने वाले मंदिरों की संख्या व सबके नाम बताने के आदेश दिए। कोर्ट ने उन सभी मंदिरों की पिछले 10 वर्षों की आय का ब्यौरा भी मांगा है।

कोर्ट ने पूछा है कि क्या मंदिरों की आय उपरोक्त अधिनियम के प्रावधानों के तहत दर्शाए गए जनहित कार्यों पर ही खर्च की जा रही है या नहीं। यदि खर्ची जा रही है तो कितनी। कोर्ट ने आयुक्तों से यह भी पूछा है कि क्या मंदिरों की आय कानून के प्रावधानों के विपरीत भी खर्च की जा रही है। कोर्ट ने मंदिरों में नियुक्त पुजारियों सहित अन्य कर्मियों की पूरी जानकारी भी मांगी है। क्या मंदिरों के ट्रस्टी कानून के अनुसार नियुक्त हैं। क्या मंदिरों की आय का ऑडिट किया जाता है। मंदिरों की भूमि को अवैध कब्जों से छुड़ाने के लिए उठाए जा रहे कदमों की जानकारी भी मांगी गई है। 

10 वर्षों में प्रदेश के मात्र 12 मंदिरों की आय 361 करोड़ रुपए से ज्यादा 
उल्लेखनीय है कि उपरोक्त अधिनियम के तहत मंदिरों की आय को श्रद्धालुओं के लिए बेहतर सुविधाएं प्रदान करने के लिए खर्च करने के लिए छूट दी गई है। यह आय शिक्षण संस्थानों की स्थापना और उनके रखरखाव पर भी खर्च की जा सकती है। विद्याॢथयों के प्रशिक्षण के लिए भी मंदिरों की आय का इस्तेमाल किया जा सकता है। हिन्दू धर्म के विस्तार हेतु भी इस आय का इस्तेमाल किया जाना जरूरी है। कोर्ट ने मुख्य सचिव को ये आदेश दिए हैं कि क्या पहली अनुसूची में दर्ज सभी मंदिर उपरोक्त काम कर रहे हैं। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि पिछले 10 वर्षों में प्रदेश के मात्र 12 मंदिरों की आय 361 करोड़ रुपए से ज्यादा हुई। इसलिए यह मुद्दा वास्तव में पैदा होना लाजिमी है कि क्या यह राशि कानूनन खर्च भी की जा रही है या नहीं। कोर्ट ने कहा कि इस अधिनियम के तहत सामाजिक बुराइयों से निपटने के लिए काम करना जरूरी है। समाज के पिछड़े व दबे कुचले वर्गों के उत्थान के लिए जरूरी कदम उठाने की आवश्यकता है। क्या सभी मंदिर यह दायित्व निभा रहे हैं। मामले पर सुनवाई 13 अगस्त को निर्धारित की गई है।

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