3 किलो सोने से जड़ित रथ पर विराजे सुनाह निहरी के आराध्य श्री देव तुंगासी

Edited By Vijay, Updated: 17 Jan, 2024 10:00 PM

shri dev tungasi sit on chariot decorated with 3 kg gold

सराज के सुनाह निहरी के आराध्य श्री देव तुंगासी के सोने से जड़ित नए देव रथ की प्राण-प्रतिष्ठा बुधवार को संपन्न हो गई। 2 दिनों से चले इस धार्मिक कार्यक्रम में सराज समेत नाचन और कुल्लू से हजारों की संख्या में लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई और देवता...

गोहर/जंजैहली (ख्यालीराम): सराज के सुनाह निहरी के आराध्य श्री देव तुंगासी के सोने से जड़ित नए देव रथ की प्राण-प्रतिष्ठा बुधवार को संपन्न हो गई। 2 दिनों से चले इस धार्मिक कार्यक्रम में सराज समेत नाचन और कुल्लू से हजारों की संख्या में लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई और देवता से आशीर्वाद प्राप्त किया। देवता कमेटी के सचिव नरेश कुमार ठाकुर ने कहा कि शिव अवतार के रूप से प्रख्यात श्री देव तुंगासी के नए रथ का निर्माण अढ़ाई दशक बाद एक बार फिर से किया गया है। पूर्व में देवता का रथ चांदी से निर्मित था, लेकिन अबकी बार देवता स्वर्ण धातु से बने रथ में विराजित हुए हैं। देवता के रथ में देव हारुओं और अन्य भक्तजनों से सहयोग से लगभग 3 किलो से अधिक का सोना जड़ित किया गया है। नवनिर्मित देव रथ को बालीचौकी के मिस्त्री द्वारा तैयार किया है और 5 माह तक इसका निर्माण जारी रहा। आराध्य पहली बार मंडी की महाशिवरात्रि मेला उत्सव में सोने के रथ विराजित होकर शरीक होंगे। उन्होंने कहा कि देवता का इतिहास प्राचीन काल से माना गया है।
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देव तुंगासी ने बचाई थी राजा बाणसेन की रियासत
किवदंती के अनुसार मंडी रियासत के राजा बाणसेन की 13वीं-14वीं सदी से लेकर शिवरूपी देव तुंगासी के प्रति गहरी आस्था रही है। जब कुल्लू के राजा ने मंडी रियासत को अपने अधीन करने के लिए धावा बोला तो उसमें राजा बाणसेन के कई सैनिक मारे गए थे। इसके बाद राजा अंततः युद्धभूमि को छोड़कर तुंगासी गढ़ पहुंचे और देव तुंगासी से अपनी सेना की सुरक्षा के लिए गुहार लगाई। देव तुंगासी ने रियासत के राजा को आश्वस्त किया कि वे रणभूमि में लौट जाएं और विरोधी राजा की सेना का डटकर मुकाबला करें। जब रियासत का राजा देवता का आशीर्वाद लेकर रणभूमि में लौटा तो वह उस समय दंग रह गया जब कुल्लू के राजा की सेना के वार को एक अदृश्य शक्ति रोक कर निष्क्रिय कर रही थी। युद्ध के दौरान मंडी की सेना ने कुल्लू के राजा की सेना को उलटे पांव लौटने पर मजबूर कर दिया। मंडी के राजा को रणभूमि में इतनी शक्ति प्राप्त हो गई कि कुल्लू के राजा की सेना अपने राज्य की सीमा को नहीं बचा पाई और युद्ध के बाद जब मंडी ने कुल्लू की रियासत का आधा हिस्सा फतह कर लिया तो देव तुंगासी ने राजा को आदेश दिया कि रणभूमि में जीती हुई सीमा को शृंगा ऋषि को सौंप दें। इसी कारण आज भी यह प्रथा जगजाहिर है कि जब भी शृंगा ऋषि के दर पर विशेष पूजा मूल मंदिर में होती है तो उसकी काश (अरदास) आराध्य तुंगासी के सुपुर्द की जाती है। युद्ध में विजय पताका हासिल करने के बाद रियासत के राजा द्वारा देव तुंगासी को विशेष निमंत्रण दिया गया। राजा द्वारा देवता को गढ़पति की मान्यता से भी अलंकृत किया है।

प्राण-प्रतिष्ठा में ये देवता हुए शामिल
देवता के रथ की प्राण-प्रतिष्ठा में सराज के आराध्य श्री देव शैटीनाग, श्री देव काला कामेश्वर, श्री देव विष्णु मतलोड़ा, श्री देव चुंजवाला, श्री देव बिठु नारायण, श्री देव तुंगासी खाऊली, श्री देव रेलूनाग सांघी, माता दलवासन, श्री देव चुंजवाला शालागाड़, श्री देव माहुनाग तरौर, श्री देव बालू नाग, माता गौरी बसूंघी, श्रीदेव मगरू महादेव, श्री देव बाला कामेश्वर, श्रीदेव खुड्डी जहल, श्रीदेव वायला नारायण, श्री देव भूमासी बखलवार, माता रावला कोट योगिनी, श्रीदेव मतलोड़ा शिकावरी, माता हिडिम्बा सुरागी, श्रीदेव काला कामेश्वर लेह, माता बगलामुखी भराड़ी, माता दुलासन माहिधार, श्रीदेव चहाडू करशली, श्रीदेव घड़वालु, श्री देव रैनगलू, श्री देव गरीजनू, श्री देव बाड़ा कंचूट, श्री देव चुंजवाला शिलीगाड़, श्री देव झाकड़ू झुगांद, श्री देव कमरूनाग रुहाड़ा, माता महामाया रुहाड़ा, श्री देव शृंगा ऋषि तुंगाधार, श्री देव गिहीनाग, माता दुलवासन घुमराला, माता गुशैन वायला, श्री देव बलगाड़ी हलीन, श्री देव शंकरी रूशाड़ा गाड़, श्री देव मतलोड़ा झुगांद घूमराला, श्री सुमुनाग नगलवाणी सुमली, माता हिडिम्बा घाट चिऊणी, श्री देव भरमंक्ष व श्री देव काला कामेश्वर गुणास समेत 45 से अधिक देयोठियों के कारदारों, कामियों और देव कमेटियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।
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