Edited By Ekta, Updated: 05 May, 2019 03:45 PM
पहाड़ से ही होते हैं पहाड़ के लोगों के हौसले। जिम्मेदारी निभानी बखूबी जानते हैं। मुसीबतें इनके रास्ते नहीं रोक सकती। यह जानते हैं कैसे जीना है। उम्र के 7 दशक पार और शरीर दुबला-पतला... लेकिन 70 वर्षीय काली देवी रोज 16 किलोमीटर दूर से 40 से 50 किलो का...
कुल्लू (प्रियंका): पहाड़ से ही होते हैं पहाड़ के लोगों के हौसले। जिम्मेदारी निभानी बखूबी जानते हैं। मुसीबतें इनके रास्ते नहीं रोक सकती। यह जानते हैं कैसे जीना है। उम्र के 7 दशक पार और शरीर दुबला-पतला... लेकिन 70 वर्षीय काली देवी रोज 16 किलोमीटर दूर से 40 से 50 किलो का बोझा उठाए पहुंच जाती है शहर में सब्जी बेचने। काली देवी 16 किलोमीटर दूर बस्तोरी से अपने खेतों में उगी साग-सब्जियों को ढालपुर लाकर सड़क किनारे फुटपाथ पर बेचती है। सांझ ढलने तक सब्जी बिक जाए तो ठीक वरना अपने सब्जी के 40-50 किलो के थैलों को वापस घर ले जाती है।
ऐसा कोई एक या दो दिन का क्रम नहीं लगातार हर दिन यूं ही होता है। काली देवी ने बताया कि उनके पति का नाम राम दास है जो करीब 75 वर्ष के हैं। इस उम्र में शारीरिक कमजोरी कई दर्द देती रहती है। उन्होंने बताया कि उन्हें भी घुटनों व कमर में दर्द रहता है तथा वह रोजाना दवाई खाकर ही सब्जी बेचने शहर पहुंचती हैं। यह सिर्फ एक काली देवी की कहानी नहीं बल्कि उनके जैसी 60 वर्षीय रेती देवी सहित आधा दर्जन से अधिक ग्रामीण बुजुर्ग महिलाओं की है, जो दुर्गम गांव से कभी पैदल तो कभी बसों का सहारा लेते हुए ढालपुर-सरवरी तक पहुंचती हैं और सब्जियां बेचकर परिवार का लालन-पालन करती हैं।
6 बेटियां, 5 की हो चुकी शादी, एक की अभी करवानी
70 वर्षीय काली देवी बताती हैं कि उनकी 6 बेटियां हैं। 5 की शादी हो चुकी है लेकिन एक बेटी की शादी करवाना बाकी है। उनके पति भी शारीरिक रूप से कमजोर हो चुके हैं इसलिए घर पर ही रुक कर अन्य कामों में मदद कर देते हैं। खेती-बाड़ी के लिए जमीन भी गुजारे लायक ही है। वह बताती हैं कि सुबह 4 बजे उठकर खेतों में जाकर काम करती है ताकि 10 बजे तक सब्जी लेकर शहर पहुंच सके। शाम को घर पहुंच कर कुछ देर के आराम के बाद घर के अन्य कार्यों में जुट जाती हैं।
2 बेटे छोड़ चुके, तीसरा न छोड़ जाए इसलिए खुद ही करती है काम
वहीं 60 साल की रेती देवी बताती हैं कि उनके पति का देहांत हो चुका है। बेटे को पढ़ाया-लिखाया। उम्र के इस पड़ाव पर भी हार नहीं मानती और घर के काम से लेकर रोजगार तक कमाने में लगी हुई हैं। वो कहती हैं कि उनके लिए काम ही जिंदगी बन चुकी है। सब्जी बेचने आई कई ग्रामीण महिलाओं का कहना है कि अब तो जीप या अन्य वाहनों के सहारे कुछ सफर कट जाता है लेकिन सड़कें ठीक न होने से जब वाहन सुविधा नहीं मिल पाती है तो उन्हें पीठ पर आधा क्विंटल भार उठाकर शहर पहुंचना पड़ता है। रेती देवी ने कहा कि उसके 3 बेटे हैं। 2 बेटे शादी करने के बाद घर छोड़ कर जा चुके हैं व अपने परिवार के साथ अन्य जगह पर अलग रहते हैं जबकि छोटा बेटा ही वर्तमान में उनके साथ रह रहा है कहीं वह भी उसे छोड़कर दूर न चला जाए इस डर से बेटे पर रोजगार करने के लिए ज्यादा जोर नहीं दे पाती और इसलिए खुद ही काम कर लेती हैं।
प्रशासन चाहे तो कर सकता है मदद
शहर का बुद्धिजीवी वर्ग ठाकुर दास राणा, किशोर लाल, सुख राम ठाकुर, टी.डी. ठाकुर, पीज पंचायत के प्रधान चुनेश्वर ठाकुर, बुआई पंचायत के उपप्रधान मोहर सिंह ठाकुर, उत्तम चंद, कार सेवा दल के अध्यक्ष मनदीप सिंह, चुन्नी लाल, पुरुषोत्तम शर्मा व दयानंद सारस्वत आदि का कहना है कि उन्हें वर्षों हो गए इन ग्रामीण महिलाओं को संघर्ष करते हुए देखते। उनके अनुसार इन ग्रामीण महिलाओं को जहां रोजगार की उम्मीद दिखाई देती है, वहीं अपनी सब्जी लेकर बैठ जाती हैं। यदि फुटपाथ से इन्हें उठा दिया जाए तो पीठ पर ढोकर घर-घर जाकर सब्जी बेचने का काम करती हैं। ऐसे में यदि प्रशासन चाहे तो इनकी मदद कर सकता है। लोगों के अनुसार दुर्गम गांव से सब्जी लेकर आने वाली ग्रामीण महिलाओं के लिए कम से कम एक शैड मुहैया करवाया जा सकता है ताकि यह लोग आराम से बैठकर अपने खेतों के उत्पादों को बेच सकें।