Edited By Punjab Kesari, Updated: 18 Sep, 2017 01:30 AM
यह मंडी का दुर्भाग्य ही रहा है कि सकारात्मक परिस्थितियों के बावजूद मंडी से मुख्यमंत्री पद के दावेदार सभी बड़े नेता ऐन मौके पर इस पद से हाथ धो बैठे और मंडी आज दिन तक मुख्यमंत्री पद का स्वाद नहीं चख पाई।
जोगिंद्रनगर: यह मंडी का दुर्भाग्य ही रहा है कि सकारात्मक परिस्थितियों के बावजूद मंडी से मुख्यमंत्री पद के दावेदार सभी बड़े नेता ऐन मौके पर इस पद से हाथ धो बैठे और मंडी आज दिन तक मुख्यमंत्री पद का स्वाद नहीं चख पाई। वर्ष 1963 में जब टैरिटोरियल परिषद को विधानसभा में तबदील कर दिया तो परिषद के अध्यक्ष के पद पर मंडी के कद्दावर नेता कर्म सिंह ठाकुर इस परिषद के अध्यक्ष थे और यह करीब करीब निश्चित हो चुका था कि प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री मंडी से ही होंगे लेकिन डा. यशवंत सिंह परमार और उनके सहयोगियों की सियासत ने मंडी को मुख्यमंत्री पद के नजदीक होते हुए भी इतने दूर धकेल दिया कि आज दिन तक मंडी उस पद तक पहुंचने में कामयाब नहीं हो पाई है।
शतरंज की ऐसी बिछी बिसात
उस समय हुई प्रथम बैठक में यह तय था कि कर्म सिंह के नाम का चयन हो जाएगा लेकिन जब बैठक चली तो शतरंज की बिसात ऐसी बिछी कि डा. परमार अचानक उठे, कर्म सिंह ठाकुर के कंधे पर हाथ रखा और हंसते हुए उन्हें बाथरूम की ओर ले गए। दोनों बड़े नेता जब बाथरूम से बाहर निकले तो डा. परमार ने वहां बैठे कश्मीर सिंह की पीठ थपथपाते हुए कहा कि बधाई हो, मुख्यमंत्री का फैसला हो चुका है। कर्म सिंह भी मुस्कराए तथा एक ओर बैठ गए।
दूसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बन चुके थे डा. परमार
डा. यशवंत परमार दूसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बन चुके थे। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा तथा बाद में उन्हें हिमाचल निर्माता के तौर पर भी जाना गया। बाथरूम में ऐसा क्या हुआ इसकी तो किसी को भनक तक नहीं लगी, लेकिन कर्म सिंह ठाकुर की इस भूल ने मंडी को जो दर्द उस समय दिया, उसके जख्म आज भी नासूर बन ताजा हैं तथा मंडी आज भी मुख्यमंत्री के पद पर बैठने के लिए तिलमिला रही है।
कर्म सिंह के हाथ नहीं लगा मुख्यमंत्री का पद
डा. परमार के इस मंत्रिमंडल में कर्म सिंह ठाकुर को भी मंत्री पद हासिल हुआ लेकिन इतिहास के जानकार बताते हैं कि ईमानदार, मेहनती व योग्य होने के बावजूद उनके हाथ मुख्यमंत्री बनने का मौका फिर कभी नहीं लगा। उनकी काट के लिए डा. परमार द्वारा ही बाद में मंडी से पंडित सुखराम को आगे किया गया। वर्ष 1993 में एक बार फिर मंडी का भाग्य जागा और मंडी से पंडित सुखराम को मुख्यमंत्री बनाए जाने की चर्चा होने लगी।
वीरभद्र की सियासी चालों के आगे सुखराम भी हुए ढेर
बताते चलें कि तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने पंडित सुखराम को मुख्यमंत्री की हैसियत से ही प्रदेश का रुख करवाया और विद्या स्टोक्स भी तब सुखराम के पक्ष में थीं लेकिन विद्या स्टोक्स चुनाव हार गईं और वीरभद्र सिंह की सियासी चालों के आगे सुखराम की एक नहीं चली। तीसरी बार मंडी से कौल सिंह ठाकुर 2012 के चुनावों में मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजैक्ट हुए लेकिन वीरभद्र सिंह ने यहां भी मंडी की एक नहीं चलने दी और केंद्र से मंत्री पद छोड़ कर ऐसी सियासी पारी खेली कि प्रदेश में कांग्रेस की कमान संभाल कर बैठे कौल सिंह को मुख्यमंत्री की गद्दी तो दूर, प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी भी छोडऩी पड़ गई।